अशोकाष्टमी 
Ashoka Ashtmi Vrat Vidhi and Katha

(चैत्र शुक्ल अष्टमी)


इस दिन अशोक वृक्ष का पूजन किया जाता है। प्रातः स्नानादि के बाद अशोक के वृक्ष की पूजा करके उसके पुष्पों अथवा कोंपलों से भगवान शिवन करें और आठ कलिकाएं खाकर व्रत करें। ऐसा करने से व्रत सदैव शोक रहित रहता है अर्थात उसे शोक नहीं होता।

यदि उस दिन बुधवार या पुनर्वसु हो या दोनों हों तो व्रती को किसी भी प्रकार का शोक नहीं होता। इस संबंध में एक प्राचीन कथा है।

उसी दिन रावण की नगरी लंकापुरी में अशोक वृक्ष के नीचे निवास करने वाली चिरवियोगी सीता को हनुमानजी द्वारा रामजी का संदेश और मुद्रिका (अंगूठी) प्राप्त हुई थी।

इसलिए इस दिन हनुमानजी द्वारा सीता की खोज कथा रामायण से सननी चाहिए। इस दिन अशोक वृक्ष के नीचे जानकी तथा हनुमानजी की प्रतिमा स्थापित कर विधिवत पूजन करना चाहिए। ऐसा करने से सौभाग्यवती स्त्रियों को अचल सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

इस दिन अशोक वृक्ष की कलियों का रस निकालकर पान करना चाहिए। इससे शरीर के रोग-विकार का समूल नाश हो जाता है। इसका मंत्र इस प्रकार  है-

'त्वम शोक कराभीष्ट मधुमासं समुद्भव।
जानकी दुःखहर्ता त्वं मामशोकं सदा कुरू॥'

अर्थात हे अशोक! मन के क्लेशों का हरण करो क्योंकि अब बसन्त ऋतु आ गई है। जैसे जानकी (सीता) के संकट को तुमने हरा था, उसी प्रकार मेरे दुखों का हरण करो तथा आशा को पूर्ण करो।

इस व्रत को करने से पतिव्रता नारी को कोई भी शक्ति धर्म से विचलित नहीं कर सकती। अत: विपत्ति और क्लेश के समय सत् को नहीं छोड़ना चाहिए। विपत्ति और क्लेश के समय ही धर्म की परीक्षा होती है और दृढ़निश्चयी नारी का धर्म उसे सब संकटों पर विजयी बनाता है।