श्री पंचमी 
Shri Panchmi Vrat and Katha

(चैत्र शुक्ल पंचमी)


इस दिन भगवान विष्णु ने लक्ष्मीजी को अपनी प्राण वल्लभा (प्रिया) स्वीकार किया था। इस दिन भगवान विष्णु तथा भगवती लक्ष्मी का एक साथ पजन करने से अपार वैभव तथा अतुल सम्पत्ति की प्राप्ति होती है।

इस उत्सव की सफलता के लिए सौभाग्यवती, सुंदर, सुलक्षणा विप्र पत्नी को वस्त्रालंकार देकर आशीर्वाद लेना चाहिए तथा स्वयं भी कुटुम्ब के लोगों सहित भगवती लक्ष्मी से सत्य धर्म से उपलब्ध होने वाले कीर्ति, वैभव, सुख प्राप्ति की प्रार्थना करनी चाहिए। इस दिन भागवत दशम स्कन्ध उत्तरार्ध की कथा, लक्ष्मी अवतार, रुक्मणी हरण तथा श्रीकृष्ण विवाह आदि सुनना चाहिए।

व्रती को चाहिए कि तृतीया को स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करे। वस्त्र यदि श्वेत हों तो अच्छा है। माला भी सफेद लें। इस दिन सारा समय व्रत करके, दही, घी और भात का भोजन किया जाता है।

एक दिन पूर्व अर्थात चतुर्थी को स्नान करके यह व्रत रखें और पंचमी को प्रात: स्नानादि करके लक्ष्मीजी का पूजन करें। पूजन में धान्य, हल्दी, अदरक, गन्ने, गुड़ और लवण आदि अर्पित करें। तत्पश्चात कमलपुष्पों से लक्ष्मीसूक्त से हवन करें।

यदि कमल पुष्प न मिले तो बेल के टुकड़ों का और यदि वे भी उपलब्ध न हा तो केवल घी का हवन करें। कमलयक्त तालाब में स्नान करके यदि स्वर्ण का दान करें तो 'श्री' अर्थात 'लक्ष्मी' की प्राप्ति होती है।