संत मदर टेरेसा 

Sant Mother Teresa 

निबंध नंबर : 01
                मदर टेरेसा एक महान व्यक्तित्व थी जिन्होंने अपना सारा जीवन गरीबों की सेवा में लगा दिया। वो पूरी दुनिया में अपने अच्छे कार्यों के लिये प्रसिद्ध हैं। वो हमारे दिलों में हमेशा जीवित रहेंगी क्योंकि वो एक सच्ची माँ की तरह थीं। वो एक महान किंवदंती थी तथा हमारे समय की सहानुभूति और सेवा की प्रतीक के रुप में पहचानी जाती हैं। वो एक नीले बाडर्र वाली सफेद साड़ी पहनना पसंद करती थीं। वो हमेशा खुद को ईश्वर की समर्पित सेवक मानती थी जिसको धरती पर झोपड़-पट्टी समाज के गरीब, असहाय और पीड़ित लोगों की सेवा के लिये भेजा गया था। उनके चेहरे पर हमेशा एक उदार मुस्कुराहट रहती थी।

                उनका जन्म मेसेडोनिया गणराज्य के सोप्जे में 26 अगस्त 1910 में हुआ था और अग्नेसे ओंकशे बोजाशियु के रुप में उनके अभिवावकों के द्वारा जन्म के समय उनका नाम रखा गया था। वो अपने माता-पिता की सबसे छोटी संतान थी। कम उम्र में उनके पिता की मृत्यु के बाद बुरी आर्थिक स्थिति के खिलाफ उनके पूरे परिवार ने बहुत संघर्ष किया था। उन्होंने चर्च में चैरिटी के कार्यों में अपने माँ की मदद करनी शुरु कर दी थी। वो ईश्वर पर गहरी आस्था, विश्वास और भरोसा रखनो वाली महिला थी। मदर टेरेसा अपने शुरुआती जीवन से ही अपने जीवन में पायी और खोयी सभी चीजों के लिये ईश्वर का धन्यवाद करती थी। बहुत कम उम्र में उन्होंने नन बनने का फैसला कर लिया और जल्द ही आयरलैंड में लैरेटो ऑफ नन से जुड़ गयी। अपने बाद के जीवन में उन्होंने भारत में शिक्षा के क्षेत्र में एक शिक्षक के रुप में कई वर्षों तक सेवा की।

                  दार्जिलिंग के नवशिक्षित लौरेटो में एक आरंभक के रुप में उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत की जहाँ मदर टेरेसा ने अंग्रेजी और बंगाली (भारतीय भाषा के रुप में) का चयन सीखने के लिये किया इस वजह से उन्हें बंगाली टेरेसा भी कहा जाता है। दुबारा वो कोलकाता लौटी जहाँ भूगोल की शिक्षिका के रुप में सेंट मैरी स्कूल में पढ़ाया। एक बार, जब वो अपने रास्ते में थी, उन्होंने मोतीझील झोपड़-पट्टी में रहने वाले लोगों की बुरी स्थिति पर ध्यान दिया। ट्रेन के द्वारा दार्जिलिंग के उनके रास्ते में ईश्वर से उन्हें एक संदेश मिला, कि जरुरतमंद लोगों की मदद करो। जल्द ही, उन्होंने आश्रम को छोड़ा और उस झोपड़-पट्टी के गरीब लोगों की मदद करनी शुरु कर दी। एक यूरोपियन महिला होने के बावजूद, वो एक हमेशा बेहद सस्ती साड़ी पहनती थी।

                  अपने शिक्षिका जीवन के शुरुआती समय में, उन्होंने कुछ गरीब बच्चों को इकट्ठा किया और एक छड़ी से जमीन पर बंगाली अक्षर लिखने की शुरुआत की। जल्द ही उन्हें अपनी महान सेवा के लिये कुछ शिक्षकों द्वारा प्रोत्साहित किया जाने लगा और उन्हें एक ब्लैकबोर्ड और कुर्सी उपलब्ध करायी गयी। जल्द ही, स्कूल एक सच्चाई बन गई। बाद में, एक चिकित्सालय और एक शांतिपूर्ण घर की स्थापना की जहाँ गरीब अपना इलाज करा सकें और रह सकें। अपने महान कार्यों के लिये जल्द ही वो गरीबों के बीच में मसीहा के रुप में प्रसिद्ध हो गयीं। मानव जाति की उत्कृष्ट सेवा के लिये उन्हें सितंबर 2016 में संत की उपाधि से नवाजा जाएगा जिसकी आधिकारिक पुष्टि वेटिकन से हो गई है।

निबंध नंबर : 02

मदर टेरेसा 
Mother Teresa 

दया की देवी, दीन हीनों की माँ तथा मानवता की मूर्ति जैसे नामों से पहचानी जानी वाली मदर टेरेसा एक ऐसी सन्त महिला थी जिनमें हम ईश्वर के प्रकाश को देख सकते थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन असहाय, पीड़ित,निर्धन तथा कमजोर लोगों की सेवा करने के लिए समर्पित कर दी।जिस संगठन की स्थापना उन्होंने अपने भाई बहनों के सहयोग से गरीबोें की भलाई हेतु की थी आज एक विश्वव्यापी संगठन बन चुका है। 1979 में नोबल प्राइज फाउन्डेशन ने मदर टेरेसा को नोबल पुरस्कार से पुरस्कृत किया। यह पुरस्कार शान्ति के लिए उनकी प्रवीणता के लिए दिया गया था।


मदर टेरेसा का जन्म 1910 में युगोस्लाविया में हुआ। 12 वर्ष की आयु में ही उन्होंने एक ननबनने का निश्चय कर लिया था। और 18 वर्ष की उम्र में कलकत्ता के आइरिश नौरेटो ननमिशनरी में शामिल होने का फैसला लिया। इसके बाद वह कलकत्ता के संेट मैरी हाईस्कूल में एक अध्यापिका बनी। इसके 20वर्ष बाद वह प्रधान अध्यापक के पद पर उन्होने ईमानदारी से किया। कलकत्ता के झोपड़पट्टी में रहने वाले लोगो के दर्द ने उन्हें बैचेन कर दिया। 10, सितम्बर 1946 को उन्होनंे काॅन्वेंट छोड़कर निर्धनों की सेवा करने का निश्चय किया।


उन्होंने पटना में नर्सिंग का प्रशिक्षण लिया और कलकत्ता की गलियों में दया और प्रेम के मिशन का शुभारंभ किया। उन्होंने कलकत्ता निगम से एक जमीन का टुकड़ा लिया और वही एक धर्मशाला की स्थापना कर दी। इसके बाद उन्होंने जो प्रगति की वह तो अपने आप में ही महत्वपूर्ण थी।



मदर टेरेसा त्याग की मूर्ति थीं। जिस घर में वह रहती थी वहा वह नंगे पैर चलती थी और एक छोटे से कमरे में रहकर अतिथियों से मिलती थी। उस कमरे में केवल एक मेज और कुछ कुर्सिया होती थी। वह सभी से मिलती थी और सभी की बात प्रेम पूर्वक सुनती थी । उनके तौर तरीके बहुत ही विनम्र होते थे। उनकी आवाज में विनम्रता झलकती थी और उनकी मुस्कुराहट हृदय की गहराई से निकलती थी।सुबह से लेकर शाम तक काम में व्यस्त रहने के बाद वह पत्र पढ़ती थी। जो उनके पास आते थे। मदर टेरेसा प्रेम और शान्ति की दूत थी। उनका मानना था कि दुनिया की सभी बुराईयाँ घर में ही पनपती है। यदि घर में प्रेम होगा तो विश्व में प्रेम अपने आप ही फैल जायेगा।इसीलिए वह अकसर कहती थी कि दुनियां में शान्ति बनें।उनका संदेश था कि हम सबके साथ में इस तरह से प्यार करना चाहिए जैसे हम सब से ईश्वर करता है। तभी हम विश्व में ,अपने देश म,ें अपने घर में और अपने हृदय में शान्ति ला सकते है।