महात्मा गाँधी 
निबंध नंबर :01

महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर सन 1869 में पोरबंदर में हुआ था। मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद वह उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए। वहां से लौटने पर उन्होंने वकालत प्रारंभ की।

गांधीजी का सार्वजानिक जीवन दक्षिण अफ्रीका में प्रारंभ हुआ। उन्होंने देखा की भारतीयों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है। उन्होंने भारतीयों की सहायता की। उन्होंने सत्याग्रह आन्दोलन प्रारंभ किया। उन्होंने अनेक कष्ट सहे। उनको अपमानित किया गया। अंत में उन्हें सफलता मिली।

गांधीजी वापस भारत आये और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। वह कई बार जेल गए। अब सारा देश उनके साथ था। लोग उन्हें राष्ट्रपिता कहने लगे। अंत में भारत को 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त हुई।

गांधीजी सादा जीवन बिताते थे। उन्होंने हमको अहिंसा का पाठ पढाया। वह एक समाजसुधारक थे। उन्होंने छुआ-छूत को दूर करने का प्रत्यन किया। 30 जनवरी, 1948 को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गयी।

निबंध नंबर :02 
महात्मा गाँधी 
Mahatma Gandhi


महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गाँधी है। उनका जन्म गुजरात के पोरबन्दर नामक स्थान पर 2 अक्टूबर 1869 को हुआ। उनके पिता जी राजकोट के दीवान थे। तथा उनकी माता एक धार्मिक महिला थी। स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लेने तथा देश को आजाद कराने मे अपना महत्त्वपूर्ण योगदान देने केे कारण राष्ट्रपिता के नाम से जाना जाता है। यह उपाधि उन्हें सुभाष चन्द्र बाॅस ने दी थी। महात्मा गाँधी मैट्रिक पास करने के बाद इंग्लैण्ड चले गये और वहां पर न्यायशास्त्र का अध्ययन किया। इसके बाद उन्होंने अधिवक्ता के रूप में कार्य करने लगे। वह बैरिस्टर बनकर भारत लौटे और मुंबई में अधिवक्ता का कार्य करने लगे। उनके एक मित्र ने कानूनी सलाह के लिए उन्हें दक्षिण अफ्रीका बुलाया। वहाँ पहुँचने के बाद उन्होंने देखा कि किस तरह से वहां भारतीयों के साथ भेदभाव किया जाता है। एक बार तो एक गोरे ने उन्हें टेªन से बाहर निकलवा दिया क्योंकि वह प्रथम श्रेणी में सफर कर रहेे थे जबकि उस श्रेणी में यात्रा करना गोरे अपना अधिकार समझते थे। तभी गाँधी जी ने प्रण लिया कि वह काले लोगों और भारतीयों के लिए संघर्ष करेंगे। उन्होने दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले लोगों के जीवन सुधार के लिए कई आंदोलन किये। इन आंदोलनों के दौरान ही उन्हें सत्य और अहिंसा का महत्त्व समझ में आया। ज बवह भारत वापस लौटे तो उन्होंने वही स्थिति यहां भी देखी जो दक्षिण अफ्रीका में देखकर आये थे। 1920 में उन्होंने सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाया और अंग्रेजों को ललकारा। 1930 में असहयोग आंदोलन और 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलनों का नेतृत्व किया। अपने इन आन्दोलनों के दौरान वह कई बार जेल भी गये। अन्ततः उन्हें सफलता मिली और 1947 में भारत आजाद हो गया। लेकिन नाथूराम गोडसे नाम के एक व्यक्ति ने 30 जनवरी, 1948 को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी जब वह संध्या प्रार्थना के लिए जा रहे थे। उनका प्रिय भजन था-

रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीता रामईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान।