नशाबन्दी 
Nashabandi

जब नशीली आँखे, बदबू से भरा मुख, लड़खड़ाते कदम,कीचड़ में सना शरीर वाले व्यक्ति दिखाई पड़ते है तो एक अच्छे मानव की आत्मा उसके हृदय को कचोटते है। वह सोचता है कि मदिरा का सेवन मानव को मानव नही रहने देता। मद्य सेवन मादकता के साथ-साथ व्यक्तित्व के विनाश, निर्धनता की वृद्धि और मृत्यु का कारण भी है। अतः इस प्रवृत्ति का अंत अत्यावश्यक है।

मद्यपान से व्यक्ति कुछ क्षणों के लिए स्वयं को और संसार को भी भूल जाता हैै। मजदूर वर्ग अधिकतर इसी प्रवृत्ति के कारण मद्यपान करता हैै। दीपावली,होली, ईद जैसे त्यौहारों पर लोग विशेष रूप से मदिरा का सेवन करते है। निम्न श्रेणी के लोग गन्ने के रस से या शीरे से बनी शराब का सेवन करते है तो धनी लोग अंग्रेजी शराब को बड़ी शान सेे पीते है। कुछ लोग तो छोटे बच्चों को भी शराब पिलाकर उनकी भी बुरी आदत डाल देते है।

आज देशी और विदेशी शराब की खपत अपनी चरम सीमा तक पहुँच चुकी है। यूरोप और अमेरिका के देशों में मद्यपान एक सामाजिक समस्या बन चुका है। शराब उनके जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुकी है। भारत में पहले ऋषि या देवता सोमरस का पान करते थे तो आज भारत की लगभग 52 प्रतिशत जनता शराब का सेवन करती हैं।

मद्यपान से धन अपव्यय और शारीरिक शक्ति के हृास के अतिरिक्त सामाजिक अव्यवस्था और अराजकता का विकास भी होता है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने कहा था कि - ‘‘शराब सब बुराइयों की जननी है। इसकी आदत राष्ट्र को विनाश की कगार पर लाकर खड़ा कर देती है।‘‘

थोड़ी मात्रा में शराब टाॅनिक का कार्य करती है, औेर हमारी पाचन शक्ति बढ़ाती है यह लोगो की भ्रान्ति है। सच तो यह है कि शराब के लगातार सेवन से मानव शरीर में कई रोग हो जाते है। शराब के आॅक्सीकरण की क्रिया मुख्य रूप से यकृत में होती है इससे यकृत पर बुरा असर पड़ता है। इसलिए मद्यपान करने वाले लोगो को सिरासिसस नामक बीमारी होती है जिसमें यकृत सड़ जाता है। इस बीमारी में मृत्यु निश्चित होती है।