वनों की कटाई पर भाषण
Speech on Deforestation 

सम्मानित कक्षाध्यापक और प्रिय मित्रों - आप सभी को मेरी ओर से नमस्कार !! मुझे बेहद खुशी है कि मुझे वनों की कटाई नामक विषय के बारे में बात करने के लिए कहा गया है। मैं प्रकृति प्रेमी हूं और नदियों और पेड़ों से के बीच रह कर खुद को भाग्यवान मानता हूं। 
इसलिए जब मैं प्रकृति पर हमला होता देखता हूं, पेड़ों को नष्ट होते देखता हूं और नदियों को प्रदूषित होते देखता हूं तो मुझे बहुत ख़राब लगता है और मैं सरकार से उन लोगों के खिलाफ सख्त उपाय करने के लिए आग्रह करना चाहता हूँ जो अपने स्वार्थी हितों के लिए प्रकृति को नुकसान पहुंचाते हैं। इस प्रकार क्षेत्र के संदर्भ में वनों की कटाई का मतलब वन भूमि का कम होना है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि 7,000 मिलियन हेक्टेयर की वन भूमि वैश्विक स्तर पर भारी गिरावट का सामना कर रही है और वर्ष 2000 में इस भूमि का क्षेत्र 2,400 मिलियन हेक्टेयर तक पहुंच गया था। एक अनुमान के मुताबिक उष्णकटिबंधीय क्षेत्र की भूमि के 1% नुकसान की तुलना में समशीतोष्ण क्षेत्रों में हर वर्ष लगभग 40% वन भूमि क्षेत्र कम हो जाता है। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में हमारे देश में वन भूमि का क्षेत्र पूरी भूमि का लगभग 30% था। हालांकि जब शताब्दी के अंत होने का समय आया तो यह 19.4% तक कम हो गया जबकि भारत की राष्ट्रीय वन नीति (1968) ने पहाड़ी क्षेत्रों के लिए 67% वन भूमि और मैदानी क्षेत्रों के लिए 33% वन भूमि सुझाई है। आइए समझें कि वनों की कटाई हमारे पर्यावरण को कैसे नुकसान पहुंचाता है। वनों की कटाई पर्यावरण को कैसे प्रभावित करती है: इससे हमारे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि होती है। मिट्टी की गुणवत्ता बिगड़ जाती है क्योंकि यह पहले सूखती है और फिर पानी और हवा से नष्ट हो जाती है। वनों की कटाई वर्षा को भी कम करती है और सूखे का खतरा बढ़ाती है। यह गर्मियों को ठंडा और सर्दियों को गर्म बनाकर वातावरण में असंतुलन पैदा करता है। ईंधन के लिए लकड़ी की उपलब्धता बहुत कम हो गई है। इसके अलावा गम्स, लेटेक्स, रेसिन टैनिन और लाख जैसे उत्पाद कम उपलब्ध होते हैं। जंगलों की कमी के परिणामस्वरूप मिट्टी के कटाव और अंततः बंजर हो जाएगा जो पूर्ण रूप से कोई काम का नहीं है। बारिश की मात्रा में गिरावट के चलते उपजाऊ और नम वन भूमि रेगिस्तान में परिवर्तित हो जाती है और इस प्रकार बाढ़ की कोई खबर सुनने को नहीं मिलती। रेगिस्तान और वनों की कटाई एक जैसे शब्द नहीं हैं तो चलिए दोनों के बीच अंतर को समझें: बंजर/रेगिस्तान यह एक उपजाऊ और नम भूमि का शुष्क रेगिस्तानी जगह में परिवर्तन से संबंधित है। तापमान या तो कम या उच्च हो जाता है। वाष्पीकरण से वर्षा बहुत कम हो जाती है। बाढ़ नहीं आता है। मृदा क्षरण के कारण भूमि बंजर होती है। निर्जलित भूमि पूर्ण तरीके से बंजर हो जाती है जिसे किसी भी रचनात्मक उपयोग के लिए प्रयोग में नहीं लाया जा सकता है। वनों की कटाई यह वन भूमि के क्षेत्र में कमी के बारे में है। यह मिट्टी के क्षरण का कारण बनता है। बारिश कम होने लगती हैं यह बाढ़ के संभावना को बढ़ाता है। संभावित से मध्यम तापमान प्रभावित हो जाता है। इस प्रकार जब वनों की कटाई के कारण हमारे पर्यावरण पर इतना बुरा असर पड़ता है तो हमारी सरकार को इस अभ्यास पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देना चाहिए और लोगों के बीच अधिक से अधिक पेड़ लगाने के लिए जागरूकता फैलानी चाहिए। हालांकि अतीत में बहुत प्रचार और प्रसार किया गया है जैसे प्रसिद्ध चिप्को आंदोलन, साइलेंट वैली आंदोलन और टिहरी बांध विकास जैसे आंदोलनों ने लोगों के बीच जागरूकता फैलाई है और वनों और हमारी प्रकृति के संरक्षण के नेतृत्व के लिए प्रेरित किया है। लेकिन यह अंत नहीं है क्योंकि आज की हमारी युवा पीढ़ी को स्थिति का महत्व समझना है तथा पेड़ और जंगलों की कटाई के खिलाफ लोगों के विवेक को जगाना है। धन्यवाद!- भाषण