वसंत ऋतु 
Vasant Ritu


धीरे-धीरे उतर क्षितिज से आ वसंत रजनी 
तारकमय नववेणी बन्धन, शीश फूल शशि का कर नूतन 
रश्मिवलय, सित धन, अवगुंठन मुक्तातल अभिराम बिछा दे,
चितवन से अपनी, पुलकती आ वसंत रजनी।। 

जब प्रकृति का कण-कण उल्लास से भर अपने पूर्ण यौवन में निखर उठता है, चारों तरफ़ मंद, शीतल और सुगंधित बयार चलने लगती है, पशु-पक्षी। भाव-विभोर हो गाने-इठलाने लगते हैं तो ऋतुओं के सम्राट का आधिपत्य चहुँ ओर परिलक्षित होने लगता है। यह ऋतु वसंत का मादक व मोहक दृश्य है। वसंत का अर्थ है-दीप्तिमान। माघ शुक्ल पक्ष से फाल्गुन पूर्णिमा तक चलने वाली इस ऋतु की शोभा का वर्णन शब्दों में करना असंभव है।
पौराणिक मत के अनुसार वसंत को कामदेव का पुत्र कहा गया है. वसंत आते ही कवि का हृदय गा उठता है-

तुम आओ तुम्हारे लिए वसुधा हदय पर मंच बना दिया, 
पथ में हरियाली के सुंदर मोहक पावड़े बिछा दिए। 

वसंत ऋतु मसूखे पते पड़ जाते है तथा वृक्ष नवीन किसलय का आँचल ओढ़ लेते हैं। सरसों के खेत बासंती बल ओढ़कर थिरकने लगते हैं। जलाशयों में कमल ही कमल खिल उठते हैं। पक्षीगण मधुर कलरब कर वसंत राजा के स्वागत के गीत गाने लगते हैं।
बागों में कोयल की कृक गूंज उठती है। चारों तरफ हरियाली छा जाती है। यहाँ-वहाँ रंग-बिरंगे फूल मुसकाने लगते हैं। मौलसिरी के फूल झड़कर धरती को कोमल आँचल पहना देते हैं। माधवी की लताएँ झूमने-नाचने लगती हैं। तितलिया लंबी उड़ान भरती यत्र-तत्र डोलती रहती हैं। अमर फूलों का रसपान कर गुंजार करते हैं।
गुलमोहर, सूरजमुखी, चंपा, गुलाब, चमेली आदि पयों का सौंदर्य सबको अपने आकर्षण में बांध लेता है। बागों में आप्रमंजरियों की सुगंध अपनी और मोहित करती है। गीतगोविन्द के लेखक जयदेव ने वसंत का मनोहारी चित्रण करते हुए लिखा है-

विहरति हरिरिह सरस वसंते 
ललित लवंगलता परिशीलनि कोमलवलय समीर

कवि देव ने भी वसंत को कामदेव रूपी राजा का शिशु कहा है, जिसे प्रकृति पालना झुलाती है तथा गुलाब चिटकारियाँ देकर नींद से जगाते हैं-

डार द्रुम पलना बिछौना नव पल्लव के 
सुमन श्रृंगला सहि तन छति भारी दै 
पवन झुलावै, केकी करी बहराव देव कोकिल हलावै।

वसंत ऋतु का आगमन प्राणी जगत में नव चेतना का संचार कर देता है। जड़, चेतन सभी अलौकिक शक्ति और स्फूर्ति से परिपूर्ण हो उठते हैं। सब दिशाएँ निर्मल हो उठती हैं। पकी फसलें देखकर किसान झूम उठते।

'वसंत भ्रमण पथ्यम्' अर्थात वसंत ऋतु में घूमना लाभकारी माना गया। है। चारों तरफ़ का स्वच्छ वातावरण तन-मन के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। वसंत में खुले स्थानों पर भ्रमण से तन-मन में उल्लास, उत्साह और उमंग का संचार होता है। इन दिनों सूर्य की उष्णता भी अधिक नहीं होती तथा जलवायु उत्तम होती है। मनुष्य ही नहीं, समस्त प्राणी जगत के लिए वसंत ऋतु अत्यधिक लाभकारी होती है। यही कारण है कि वसंत को ऋतुराज माना जाता है।

भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है 'ऋतुओं में स्वयं वसंत हूँ।' वसंत ऋतु निश्चित रूप से प्रकृति का वरदान है। इसी माह वसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। लोग वसंत पंचमी के दिन पीले वस्त्र पहनकर पूजन करते हैं।

वसंत ऋतु की महिमा के गान से समस्त संस्कृत व हिंदी काव्य परिपूर्ण है। इसे मधुमास भी कहा गया है। दक्षिण से आनेवाली मंद समीर, चारों तरफ़ छाई हरियाली, रंग-बिरंगे फूल, कोयल की सुरीली तान मानो सब वसंतोत्सव की शहनाई बजा रहे हों। वसंत प्रकृति की अनुपम भेंट है।