ईद का त्योहार 
Eid Ka Tyohar


ईद मुसलमानों के लिए सबसे बड़ा आनन्दपर्व है। हिन्दुओं के लिए जिस प्रकार होली मोज और मस्ती का त्योहार है, उसी प्रकार मुसलमानों के लिए ईद। 'ईद' शब्द का अर्थ होता है-सामयिक स्थिति-परिवर्तन। मुसलमानों का महीना हमारे चैत-बैसाख या अँगरेजों के जनवरी-फरवरी से भिन्न होता है। वे चन्द्रमास मानते हैं। उनके बारह महीनों में एक महीने का नाम है रमज़ान'। 'रमज़ान' का महीना बड़ा ही पवित्र माना गया है। इस महीने में मुसलमान रोज़ा रखते हैं, अर्थात् दिनभर का उपवास करते हैं। इस्लाम की चार बुनियादी पाबन्दियाँ (फराएज़) हैं-1. नमाज अर्थात् प्रार्थना, 2, रोज़ा अर्थात् दिनभर उपवास, 3. जकात (जकात) अर्थात् अपनी आय का अनिवार्य रूप से चालीसवाँ भाग कर-दान तथा 4. हज अर्थात् इस्लामधर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद की जन्मभूमि मक्का की यात्रा। जब रमजान के महीने में तीस दिनों का उपवास चला लिया जाता है, उसके अगले महीने 'शव्वाल' की पहली तारीख को ईद का त्योहार मनाया जाता है। इसे ईद-उल-फितर भी कहते हैं।

ईद के दिन दोपहर के पहले लोग शहर के बाहर ईदगाहों में जाते हैं। जहाँ खुली जगह अर्थात् जनसामान्य की प्रार्थना के उपयुक्त ईदगाह नहीं है, वहाँ मस्जिदों में नमाज पढ़ने की प्रथा है। क्या बच्चे, क्या बूढ़े, क्या जवान-सभी रंग-बिरंगे नये कपड़ों में वहाँ उत्साह के साथ पहुंचते हैं। सभी दो रिकअत यानी चार सिजदों में नमाज अदा करते हैं। नमाज के बाद इमाम अर्थात धर्मोपदेशक खतबा (उपदेश) पढ़ता है, जिसमें वह मुसलमानों को 'फित्रा' (स्वेच्छया दान या खैरात) की महत्ता समझाता है। खुतबा अर्थात् प्रवचन समाप्त होने के बाद ईदगाह में एकत्र लोग आपस में गले मिलते हैं, एक-दूसरे पर अपने आन्तरिक प्रेम की वर्षा करते हैं। यह दृश्य इतना लुभावना होता है कि क्या कहा जाय ! लगता है, मनुष्य-मनुष्य के बीच वैमनस्य की कोई दीवार, फूट की कोई खाई है ही नहीं। यदि किसी-किसी के बीच अदावत हो भी, पुरानी दुश्मनी हो भी, तो ईद की इस घडी में सभी खत्म हो जाती है। लाल के बीच एक नया रिश्ता, एक अभिनव प्रेम-सम्बन्ध का आरम्भ हो जाता है।

इस दिन लोग अपने मित्रों, सम्बन्धियों, परिचितों एवं पड़ोसियों को दावत देते हैं। जो जिससे मिलता है, बस 'ईद मुबारक', 'ईद मुबारक' कहकर मुबारकबाद देता है। घर आये मेहमानों का मुंह मीठा कराया जाता है-सेंवई तथा मिठाइयों से। फिर अंगों और वस्त्रों पर इत्र लगाया जाता है। इत्र लगाना मुसलमानों के लिए 'सुन्नत' है। 'सुन्नत' वह कार्य है जिसे पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने किया है। मिठाइयों द्वारा केवल मन की मिठास ही व्यक्त नहीं होती, वरन इत्र से अन्तःकरण की सुगंधि भी वितरित की जाती है। ईद का दिन मेहनत-मजदूरी का दिन नहीं, किनारे बैठकर आँसू बहाने का दिन नहीं; दोस्तों से मिलने, दोस्तों की खातिर करने तथा खुशियाँ मनाने का दिन है। यह चहल-पहल बहुत रात तक चलती है। नगरों में जिधर देखिए, आने-जानेवालों की भीड़ है, रिक्शों-ताँगों की आमदरफ है।

नज़ीर अकबराबादी ने 'ईद' पर अच्छी नज्म लिखी है। उनका कहना है कि जैसी खुशी ईद में देखी जाती है, वैसी न 'शबे-बरात' और न 'बकरीद' में ही। उनकी पंक्तियाँ देखें-

पिछले पहर से उठके नहाने की धूम है 

शीरो-शकर' सिवय्याँ पकाने की धूम है 

पीरो-जवाँ को नेअमतें खाने की धूम है 

लड़कों में ईदगाह के जाने की धूम है

ऐसी न शवे-बरात, न बकरीद की खुशी

जैसी हर एक दिल में है इस ईद की खुशी ! 

कोई तो मस्त फिरता है जामे-शराब से 

कोई पुकारता है कि छूटे अजाब से 

कल्ला किसी का फूला है लड्डू की चाव से 

चटकारे जी मे भरते है नानो कबाब से

ऐसी न शबे-बरात, न बकरीद की खुशी

जैसी हर एक दिल में है इस ईद की खुशी ! 

क्या ही मुआनके' की मची है उलट-पुलट 

मिलते हैं दौड़-दौड़के बाहम झपट-झपट 

फिरते हैं दिलबरों के भी गलियों में गट' के गट 

आशिक मजे उड़ाते हैं हरदम लिपट-लिपट

ऐसीन शबे-बरात, न बकरीद की खुशी

जैसी हर एक दिल में है इस ईद की खुशी ! 

ईद आती है, खुशियों की बहार लुटा जाती है। किन्तु क्या हमने इसके राज़ को समझा है- इसके रहस्य को जाना है? यदि हम एक महीने तक रोजा की सख्तियाँ न भुगतते, तो भला ईद की ऐसी बेहिसाब खुशी मयस्सर होती? अतः ठीक ही है, जो जाति साधना नहीं करती, तपस्या नहीं करती, उसे ईद जैसा आनन्दोत्सव मनाने का अधिकार नहीं है, अवसर भी नहीं मिलता है।

मुबारक ईद का और खुशी की सारी तुमहीदे। 

तुम रहो सलामत और मनाओ सैकड़ों ईद ॥