गुड फ्राइडे 
Good Friday

लगभग दो हजार वर्ष पहले की बात है, जेरूसलम नामक प्राचीन नगर के बाहर कालवरी पर्वत पर महामानव भगवान् ईसा का निधन हुआ था। यह निधन इतिहास की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना है-ऐसी हृदयद्रावक घटना, जब महाप्रभु ईसा ने आत्मबलिदान किया था। यह घटना शुक्रवार को घटित हुई थी। यह घटना इतना महती थी कि इसकी स्मृति में 'पुण्य शुक्रवार' यानी 'गुड फ्राइडे' का पर्व मनाया जाने लगा। इस घटना की पुनीत स्मृति में संसारभर के ईसाई बड़े ही प्रेम और श्रद्धा के साथ यह त्योहार मनाते हैं।

महाप्रभु ईसा जीवनभर प्राणियों के बीच प्यार लुटाते रहे। दलितों और दोनों पर तो उनकी विशेष कृपा रहती थी। फिर भी, उनके अपने लोगों ने ही उनका क्रूसीकरण, सलीब पर वध किया। बड़ी विचित्र बात है। उन्हें सलील पर लटकाने की कथा बडी ही मर्मभेदी है। फिलिस्तीन के धर्मगुरुओं को ईसा की लोकप्रियता साह्य न हो सकी। उन्हें लगा कि यह व्यक्ति उनका आसन छीन रहा है। ईसा के बारह प्रधान शिष्य थे। प्रधान याजकों ने ईसा के उन्हीं बारह शिष्यों में एक को बहकाया। उस शिष्य का नाम यूदस था। यूदस ने चाँदी के तीस सिको के लोभ में ईसा के विरोधियों से कहा कि मैं जिसे चूमूंगा, उसे तुमलोग ईसा समझ लेना। यूदस के लिए महाप्रभु ईसा ने कहा था, "धिकार है उस मनुष्य को, जो मानवपुत्र के साथ विश्वासघात करता है। उसके लिए भला होता, यदि वह जन्मा न होता।" इस तरह, पास्का त्योहार के अवसर पर ईसा कलेवा करने के बाद शहर के बाहर जैतून के बाग में प्रार्थना करते समय यहूदियों द्वारा पकड़े गये। उन्हें देशद्रोही बतलाया गया और बन्दी बनाया गया। वहाँ का राज्यपाल पिलात्स नहीं चाहता था कि ऐसे धर्मात्मा को प्राणदंड दिया जाय। उसने यहूदियों से कहा कि "पास्का त्योहार के अवसर पर हम एक बन्दी को मुक्त करेंगे। यदि आप कहें, तो मैं ईसा को मुक्त कर दूं।" यहूदियों ने इसका विरोध किया और उन्होंने कहा कि ईसा के बदले बराब्बस को छोड़ दिया जाय। बराब्बस बड़ा ही कुख्यात डाकू तथा हत्यारा था।

ईसा को काँटों का मुकुट पहनाया गया। उन्हें कोड़ों से क्रूरतापूर्वक पीटा गया। प्यास लगने पर लाठी के एक सिरे पर बरतन टाँगकर उनके ओठों तक पहुंचाया गया। उनपर थूका गया। क्रूस पर हाथों और पाँवों में कीलें ठोंकी गयीं। इस तरह, संसार के ऐसे महान पुरुष को इतनी घोर यातना दी गयी। किन्तु उपहासों और पीड़ाओं में भी महाप्रभु मुस्कुराते रहे। उन्होंने किसी को कोई दुर्वचन न कहा, किसी को किसी प्रकार का अभिशाप न दिया। सलीब पर झूलते हुए भी उन्होंने अपने उत्पीड़कों के लिए इतना ही कहा, "हे पिता, इन्हें क्षमा कर दीजिए, क्योंकि ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं।" उनके भक्त अविरल आँसू बहा रहे थे, वे प्राणघाती पीड़ा से कराह रहे थे, किन्तु उनके प्राणपखेरुओं को उनका यह आश्वासन निकलने नहीं देता था कि तीन दिन बाद कब से मैं स्वयं जी उठूगा। महाप्रभु ईसा का यह बलिदान ईसाईधर्म में सबसे गम्भीर माना जाता है। इस दिन ईसाइयों के सबसे बड़े गिरजाघर 'सेंट पीटर्स' से लेकर छोटे-छोटे गिरजाघरों तक शोक छाया रहता है। ईसाई पुजारी शोक के रंगवाली पोशाक पहनते हैं। सिपाही हथियार उलटा कर चलते हैं। महाप्रभु का देहान्त दिन के लगभग तीन बजे हुआ था, इसलिए उस समय संसारभर के ईसाई पूजापाठ करते हैं।

ईसा सचमुच मरे थे क्योंकि वे मनुष्य थे क्योंकि वे पापों से रहित थे, इसलिए ईश्वर थे। ईसाइयों का विश्वास है कि वे परिस्थितियों के चक्रव्यूह में फंसकर नहीं मरे थे। जो स्वयं मरते को जीवन दे सकता था, वह भला कैसे मर सकता था? जो स्वयं अपार लोगों को अभयदान दे सकता था, उसे कौन भयभीत कर सकता था? उन्होंने मृत्यु का स्वयं वरण किया था। समन मानव और मानवता के पापों के प्रायश्चित्त, के लिए उन्होंने अपना प्राणोत्सर्ग किया था। उनका सारा जीवन ही यश था, हवन था, उत्सर्ग था।

ईसा मसीह का जन्म एक विशेष समय फिलिस्तीन के एक विशेष स्थान बेथेलहम में हुआ था तथा निधन जेरूसलम में। किन्तु वे न तो किसी विशेष समय के व्यक्ति थे, न विशेष स्थान के। उन्हें और उनके कार्यों को दिकाल की परिधि में बाँध रखना असंगत होगा। वे ऐसे पुरुषोत्तुम थे, जिन्होंने स्थान और समय की सीमाओं का अतिक्रमण किया था। ईसा सारी मानवजाति के हैं। मानवजाति जो उनके पहले थी, उनके समय थी और उनके बाद आयी तथा आयेगी। वे सभी वर्गों, सभी जातियों, सभी स्थानों के लिए समान रूप से पूज्य हैं। उनका बलिदान सबके लिए था। उनका पुनरुत्थान सबके लिए हुआ। उन्होंने मनुष्य में भेदभाव किया ही नहीं। उन्होंने अपना सन्देश सभी को सुनाया। जिन फरीसियों ने उन्हें सूली पर चढ़ाने के लिए ढूँढा, उन्हें भी अपना सन्देश सुनाया; जिन यहूदियों ने उनपर अविश्वास किया, उन्हें भी अपना सन्देश सुनायाः जिन यहूदियों ने उन्हें सूली पर लटकाया, उन्हें भी सन्देश सुनाया तथा उन असंख्य भक्तों को भी उन्होंने अपना सन्देश सुनाया जिनका वे आदर पाते रहे। उन्होंने अपनी अनुकम्पा का अभिषेक न मालूम किसे-किसे कराया। बीमारों को चंगा करने, मृतकों को प्राण लौटाने तथा निराश व्यक्तियों को उत्साहित करने में उन्होंने कोई कसर न की। वे पापियों को सदा क्षमा करते रहे। यही कारण है कि उनके बलिदान के बाद ही बारथोलोमि, थॉमस, पॉल, पीटर जैसे शिष्य संसार के कोने-कोने में उनके अमर सन्देश सुनाकर मानवता का कल्याण करते रहे।

महाप्रभु ईसा ने सारे संसार का पाप अपने पर ओढ़ लिया और उसके परिशोधन के लिए उन्होंने अपना बलिदान किया। यही कारण है कि उनका बलिदान-दिवसगुडफ्राइडे-केवल ईसाइयों के लिए ही नहीं, समन मानवजाति के लिए महान पुण्यदिवस बन गया है।