सरहुल 
Sarhul Festival

सरहुल उराँव नामक आदिवासियों का सबसे बड़ा त्योहार है। यह त्योहार कृषि आरम्भ करने का त्योहार है। इस त्योहार को 'सरना' के सम्मान में मनाया जाता है। सरना वह पवित्र कुंज है, जिसमें कुछ शालवृक्ष होते हैं। यह पूजन-स्थान का कार्य करता है। निश्चित दिन गाँव का पुरोहित, जिसे पाहन कहते हैं, सरना-पूजन करता है। इस अवसर पर मुर्गे की बलि दी जाती है तथा हँडिया (चावल से बनाया गया मद्य) का अर्घ्य दिया जाता है।

आदिवासी, चाहे वे निकट के नगरों में, असम के चाय-बगानों में या बंगाल की जूट-मिलों में काम करने गये हों, सरहुल के समय घर अवश्य आ जाते हैं। लड़कियाँ ससुराल से मायके लौट आती हैं। ये लोग अपने घरों की लिपाई-पुताई करते हैं। मकानों की सजावट के लिए दीवारों पर हाथी-घोड़े, फूल-फल आदि के रंग-बिरंगे चित्र बनाते हैं। इनकी कलाप्रियता देखते ही बनती है। जिधर देखिए उधर ही चहल-पहल है, आनन्द-उछाल है, मौज-मस्ती है। इस दिन खा-पीकर, मस्त होकर घंटों तक इनका नाचना-नाना अविराम चलता है। लगता है, जीवन में उल्लास-ही-उल्लास है, सुख-ही-सुख है। ऐसे अवसर पर गौतुम बुद्ध भी इन लोगों के बीच आयें, तो उन्हें लगे कि न जीवन में दुःख है, न शोक है, न रोग है, न बुढ़ापा है, न उद्वेग है, न मृत्यु ही। जो कुछ सुख है, बस वह इस मिट्टी के जीवन में है और उस सुख की एक-एक बूंद निचोड़ लेना ही जैसे इनका लक्ष्य हो। नाच-गान से गाँव-गाँव, गली-गली, डगर-डगर का वातावरण झमक उठता है। इस अवसर पर युवक-युवतियाँ नगाड़े, मृदंग और बाँसुरी पर थिरक-थिरककर नाचते हैं और आनन्दविभोर हो उठते हैं। नृत्य के इन मधुमय ताजा टटके गीतों में से एक बानगी लें-

खद्दी चाँदो हियो रे नाद नौर 

फागु चाँदो दुलम रे नाद नौर 

भर चाँदो चाँदो रे नाद नौर 

मिरिम चाँदो हो-सोड ले-उना। 

खैया से-डोय हियो रे नाद नौर 

खड़ो ने-डोय हियो रे नाद नौर 

भर चाँदो चाँदो रे नाद नौर 

मिरिम चाँदो हो-सोड ले-उना। 

बंडी खरेन पिटोय रे नाद नौर 

बूचा हाँडी तदीय रे नाद नौर 

भर चाँदो चाँदो रे नाद नौर 

मिरिम चाँदो हो-सोड ले-उना।

अर्थात्, सरहुल का चाँद आया है। फूल-फल लेता आया है। भर-चाँद हम उसे सेते हैं, फिर त्याग देते हैं। भाभियों, बहुओं और स्वजनों को बुलाओ। बड़ी मुर्गी की बलि चढ़ाओ। टूटे घड़े से हैंड़िया अर्घ्य दो!

इस प्रकार के सरल नादात्मक शब्दों से निःसृत गीतों में उल्लास की रस-भीनी बयार इठलाती रहती है। जितने ये सरल, निष्कपट, आनन्दमूर्ति मनुष्य है, वैसा ही इनका सरल, निश्छल तथा आनन्द-विह्वल त्योहार है। जैसे हिन्दुओं की होली है, मुसलमानों की ईद है, ईसाइयों का क्रिसमस है, वैसे ही उराँव लोगों का सरहुल है।

आ जाय फिर शीघ्र चैत महीना कि सरहुल मनाने में मगन उराँवों के दर्शन हम फिर करें।