आत्मछिद्रं न जानाति परच्छिद्राणि पश्यति |

स्वच्छिद्रं यदि जानाति परच्छिद्रं न पश्यति  ||




अर्थ:

जो व्यक्ति स्वयं के दोषों (चरित्र में छेद) को नहीं जानता, वह दूसरों के दोषों को जानने के लिए उत्सुक रहता है। लेकिन, जो व्यक्ति अपने दोषों को जानता है (अपने दोषों को सुधारने का प्रयास करता है), वह कभी भी दूसरे के दोषों की परवाह नहीं करेगा।


Meaning:

A person who doesn't know the defects(holes in the character) of his/her own, is eager to know the defects of others. But, a person who knows the defects of his/her own(tries to correct his/her own defects), will never care about other's defects.