अंगूर खट्टे हैं
Angoor Khatte Hai
मनकी नाम की एक लोमड़ी थी। वह बहुत ही मनमौजी थी। वह हर काम अपने मन मुताबिक ही करती। उसका किसी से बात करने का मन हुआ तो कर ली वरना जय रामजी की। फिर चाहे अगला कितना भी बोलता रहे। वह दिन भर इधर-उधर डोलती रहती थी। जहाँ भोजन मिल गया, वहीं खा लिया। उसे किसी बात की चिंता नहीं रहती थी।
एक दिन मनकी एक जंगल से होकर गुजर रही थी। जंगल में घूमते-घूमते उसकी नजर अँगूर की बेल पर जा पहुँची। बेल पर अंगूर के हरे-हरे गुच्छे लटक रहे थे। अंगूर देखकर मनकी के मुँह से लार टपकने लगी। वह बोली, "मनकी आज तो तेरे मजे आ गए। तुझे रसीले अँगूर खाने को मिलेंगे। चल, अब देर मत कर। झट से लपक ले।"
और वह अंगूर तोड़ने के लिए उछल पड़ी। लेकिन वह अंगूरों तक नहीं पहुंच पाई।
वह बोली, "मनकी ! थोड़ा और उछलेगी तो तुझे रसीले अँगूर जरूर मिलेंगे। चल पूरी ताकत से उछल!"
मनकी फिर उछली, पर इस बार भी अँगूरों तक नहीं पहुँच सकी। लेकिन उसने हार नहीं मानी और वह लगातार उछल-उछलकर अंगूरों तक पहुँचने की कोशिश करती रही। वह लगातार कूदने से थक गई थी, अत: वहीं पर बैठ गई। उसने अंगूरों की ओर देखा और निराश होकर बोली, "चल, मनकी चल। तू इन अंगूरों को तोड़ने का बेकार ही प्रयास कर रही है। अंगूर तो खट्टे हैं। भला खट्टे अंगूरों को खाकर तू अपना मुँह क्यों खट्टा करने लगी।"
और निराश होकर वह वहाँ से चली गई।
शिक्षाः हमें लालच नहीं करना चाहिए।
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