बलूत का पेड़ व नरकट के पौधे
Balut Ka Ped, Narkat Ke Paudhe
एक झील के किनारे पर एक विशाल बलूत का वृक्ष था। उसका तना बहुत मोटा। था और शाखाएँ बहुत बड़ी-बड़ी थीं। उसकी जड़ें धरती में बहुत अंदर तक गई हुई थीं। जिनकी सहायता से वृक्ष बहुत मजबूती से धरती पर खड़ा था। वृक्ष को अपनी कद-काठी पर बड़ा घमंड था। बलूत के वृक्ष के पास ही नरकट के कुछ पौधे थे। उनके तने बहुत नर्म व लचीले थे।
एक दिन अचानक बहुत तेज हवा चलने लगी। थोड़ी ही देर में हवा ने आँधी का रूप ले लिया। हालाँकि बलूत के वृक्ष का तना बहुत मजबूत था, परंतु वह आँधी के जोर के आगे खड़ा नहीं हो पा रहा था। हवा वैसे ही चलती रही और कुछ ही समय में बलूत के वृक्ष का तना बीच से टूट गया। आश्चर्य की बात यह थी कि इतनी तेज आँधी के बावजूद भी नरकट के पौधों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा था।
इस रहस्य को बलूत का वृक्ष समझ नहीं पा रहा था। आश्चर्यवश उसने नरकट के पौधों से पूछ ही लिया, "भाईयो! मैं यह जानने के लिए उत्सुक हूँ कि इतने नाजुक पौधे होते हुए भी आप इतनी तेज आँधी में कैसे बच गए। जबकि इतना मजबूत शरीर होते हुए भी मैं टूट गया। मुझे तो अपने मजबूत तने पर बड़ा भरोसा था।" नरकट के पौधे बोले, “यह समझना तो बहुत आसान है, बलूत भाई। बुरा मत मानना पर आपको अपनी मजबूती पर घमंड था। इसलिए आपने आँधी के आगे झुकने से इंकार कर दिया और आप पहले की तरह घमंड में खड़े रहे। यह देखकर आँधी क्रुद्ध हो गई और पूरे जोर से चलने लगी।
आखिरकार उसके बल ने आपको पराजित कर दिया। यदि आप भी अपनी मजबूती पर गर्व न करते और आँधी चलने पर थोडा झुक जाते तो तेज आँधी आपको तोड़ नहीं पाती। और आप सुरक्षित रहते। आपको हमसे सीख लेनी चाहिए। हमारे तने बहुत लचीले हैं। जब हवा तेज चलने लगी तो हमने आँधी की प्रभुता को स्वीकार कर लिया और हम उसके आगे झुक गए। इस तरह हम सुरक्षित बच गए।"
नरकट के पौधों की बात सुनकर बलूत के वृक्ष को अब अपनी गलती का अहसास हुआ और वह अफसोस से बोला, "तुमने सही कहा। हमें कभी भी अपनी शक्ति पर घमंड नहीं करना चाहिए। वरना परिणाम बुरा ही होता है।"
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