चालाक खरगोश
Chalak Khargosh
एक बार एक चौकू नाम का खरगोश था । एक दिन वह अपनी पत्नी के साथ बाग में धूम रहा था जब उसकी पत्नी ने पेड़ पर मीठे-मीठे फल लटके देखे तो उसके मुंह में पानी आ गया । उसने चीकू से फल तोड़कर लाने को कहा । इस पर चीकू ने कहा कि यह बाग एक भेड़िये का है जो बहुत ही खूखार है । अगर उसे पता चल गया कि हमने फल तोड़े है तो वह हम दोनों को मार कर खा जायेगा । परन्तु चीकू की पत्नी उसके समझाने पर भी ना मानी । हारकर चीकू को फल तोड़ने जाना पड़ा। चीकू ने जैसे ही फल तोड़ने शुरू करे, वहाँ भेड़िया आ गया । चीकू फौरन फल लेकर भगा और पास पड़े एक ड्रम में घुस गया और उस ड्रम में फल रखकर बाहर आकर चुपचाप खड़ा हो गया । तभी भेड़िया वहाँ आ गया और उसने चीकू से पूछा कि क्या उसने किसी खरगोश को वहाँ से फल ले जाते हुए देखा है। चीकू फौरन समझ गया कि भेड़िये ने उसे पहचाना नहीं । उसने भेड़िये से कहा कि - अभी-अभी एक खरगोश को मैने इस ड्रम में घूसते हुए देखा है । उसके पास बहुत से फल थे ।
भेडिया डम के पास गया तो उसे उसमें से फलों की खशब आ रही थी। भेडिया खरगोश को मारने के लिए उस ड्रम में घूस गया । चालाक चीकू के फटाफट ड्रम का ढकन बंद कर दिया । भेडिया डम के अन्दर ही मर गया । चीक और उसकी पत्नी उस बाग के मालिक बन गए। इस तरह चीकू ने अपनी बुद्धि से न सिर्फ अपनी जान बचायी बल्कि उस बाग का मालिक भी बन गया।
उस गुफा में एक गीदड़ रहता था। थोड़ी देर बाद वह वापस आया तो उसे गुफा के बाहर किसी के पैरों के निशान दिखाई दिये । उसे यह निशान किसी बड़े एवं खतरनाक जानवर के प्रतीत हुए। उसे किसी खतरे का एहसास हुआ। गीदड़ बहुत चालाक और सयाना था। उसने सोचा कि गुफा में जाने से पहले देखे मामला क्या है। उसने जोर से गुफा को आवाज़ लगाई – “गुफा ! ओ गुफा !" लेकिन जवाब कौन देता? गीदड़ ने फिर आवाज़ लगाई, “अरे मेरी गुफा, तू जवाब क्यों नही देती ? आज तुझे क्या हो गया ? हमेशा मेरे लौटने पर तू मेरा स्वागत करती है। आज क्या हो गया। अगर तूने जवाब न दिया तो मैं किसी दूसरी गुफा में चला जाऊंगा।" गीदड़ की बात सुनकर शेर ने सोचा कि यह गुफा तो बोलकर गीदड़ का स्वागत करती है। आज मेरे यहां होने की वजह से शायद डर गई है। अगर गीदड़ का स्वागत नहीं किया तो वह चला जाएगा। ऐसा विचार कर शेर अपनी भारी आवाज़ में जोर से बोला“आओ, आओ मेरे दोस्त, तुम्हारा स्वागत है।" शेर की आवाज़ सुनकर गीदड़ वहां से भाग गया।
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