शेर और चूहा
Sher aur Chuha
एक बार एक शेर अपनी गुफा में सो रहा था। तभी एक चूहा कहीं से आकर शेर के ऊपर कूदने लगा । जिससे शेर की नींद टूट गयी । शेर को चूहे पर इतनी ज़ोर से गुस्सा आया कि उसने उसे अपने पंजों में जकड़ लिया और उसे मारने का सोचने लगा। चूहा बहुत डर गया।
उसने काँपते हुए शेर से कहा - "हे शेर राजा ! मुझे माफ कर दिजिये, मुझ से बहत भारी भूल हो गई। अगर आप मुझे जाने देगें तो आप का बहत उपकार होगा और आपके इस उपकार को में वक्त आने पर जरूर चुका ढुंगा।' यह सुनकर शेर को चूहे पर दया आ गई और उसने उसे जाने दिया । पर वह मन ही मन हँसा कि भला यह छोटा सा चूहा मेरा उपकार क्या चुकाएगा ।
समय बीतता गया ओर एक दिन हमेशा की तरह शेर शिकार की तलाश में जंगल में घूम रहा था कि एक शिकारी ने उसे चलाकी से अपने जाल में पकड़ लिया। शेर अपनी सहायता के लिए जोर-जोर से दहाड़ मारने लगा। शेर की अवाज सुनकर चूहा वहाँ आया। शेर को जाल में फंसा देखकर उसने तुरन्त अपने नुकीले दाँतों से शिकारी का जाल काट दिया और शेर को आज़ाद कर दिया ।
शेर ने चूहे का बहुत धन्यवाद किया। उस दिन शेर को समझ आया कि किसी भी प्राणी को काबलीयत उसके भारी रूप से नहीं लगानी चाहिए और कभी छोटे-बड़े का भेदभाव नहीं करना चाहिए। हमेशा सबकी मदद करनी चाहिए क्योकिं जो दूसरों की मदद करता है, उसकी भी सब मदद करते हैं।
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