पिता को परीक्षा के पश्चात के कार्यक्रम के विषय में पुत्र का पत्र ।


दिल्ली । 

दिनांक 25 अप्रैल, 


पूज्य पिता जी,

सादर प्रणाम । 

अत्र कुशलं तत्रास्तु । कल मेरी परीक्षा समाप्त हो चुकी है । सभी पर्चे बहुत अच्छे हुए हैं । आशा है कि प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो जाऊँगा ।

परीक्षा का परिणाम घोषित होने के बाद मेरा चित्रकार बनने का विचार है। कदाचित मेरी यह इच्छा आपके स्वप्नों को धूमिल कर दे । हर पिता की इच्छा होती है कि उसका पुत्र डॉक्टर या इंजीनियर बने । आपने भी गत वर्ष इस ओर संकेत किया था । किंतु मैं उसके बाद एक वर्ष में भी इस ओर रुचि न बना सका। कारण है मेरी कला के प्रति आसक्ति । आपने भी कुछ मास पूर्व चित्र प्रदर्शनी में मेरे चित्र देखे थे और आश्चर्य के साथ प्रशंसा भी की थी । वे ही चित्र विद्यालय की ओर से शिक्षा अधिकारियों द्वारा आयोजित शिक्षा मेले में भेजे गए थे। सभी दर्शकों ने उनकी मुक्त कंठ से प्रशंसा की । शिक्षा मेले की समाप्ति पर शिक्षा निदेशक महोदय ने उन चित्रों पर मुझे परस्कार के साथ विशेष प्रमाणपत्र भी प्रदान किया है । इन सबने मुझे ललित कला महाविद्यालय में प्रवेश लेने के लिए विवश-सा कर दिया है।

चित्रकला में उपाधि प्राप्त कर मैं इसे साधना एवम व्यवसाय के रूप में अपनाऊँगा । पुरातन युग से ही यह कला भारतवासियों का प्राण रही है । आज भी इसकी प्रगति में भारतीय सरकार पूर्ण रूप से संलग्न है।

कला व्यवसाय के आरंभ में मुझे आर्थिक कठिनाइयों का अवश्य सामना करना पड़ेगा; किंतु समय आने पर अर्थ व यश दोनों ही इससे प्राप्त होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है ।

आएका आशीर्वाद इस योजना को कार्यावित करने में मेरी पूरी सहायता करेगा । संगीता कैसी है ? माता जी को मेरा नमस्कार कहना।

पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में ।

आपका स्नेहपात्र, 

प्रखर