प्रवास पर गए पति का पत्नी को पत्र ।



कन्याकुमारी, 

केरल । 

दिनांक 6 अगस्त, 


प्रिय अर्चना,

अभी तुम्हारा 2 अगस्त का भेजा हुआ पत्र मिला है । तुम्हारे पत्र में तुम्हारे सुंदर से मुखड़े के दर्शन हो जाते हैं । यह 'भारत दर्शन' की यात्रा वास्तव में बहुत ही आनंददायक है, पर कभी-कभी ऐसा महसस होता है कि तुम और कविता साथ होती, तो इसका आनंद कुछ और ही होता । पर संयोग ही ऐसा बना कि सभी ने बिना परिवार के इस यात्रा का कार्यक्रम बनाया । देखो, अगले वर्ष तुम्हें लेकर फिर इन स्थलों के दर्शन करूँ।

तुमने जो 'निष्ठुर प्रियतुम' से संबोधित किया है, वह कुछ सीमा तक सत्य ही है। किंतु मैं हृदय से निष्ठर नहीं हूँ। उसे चीर कर देखोगी तो उसमें तम्हारी सलोनी छवि के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देगा । अब हमारी यात्रा समाप्ति पर है। एक दो दिन में हम यहाँ से रामेश्वरम जा रहे हैं और वहीं से सीधे घर वापस आएँगे । तुम्हारे बिना अब यह यात्रा मुझे भी कुछ बोझिल-सी लगने लगी है। शीघ्र ही घर पहुँचकर मेरा मन रूपी भ्रमर तुम सरीखी कली का रसपान करना चाहता है। तुम्हारे लिए सुंदर-सुंदर साड़ियाँ और कविता के लिए सुंदर-सुंदर फ्रॉक व खिलौने ले लिए हैं । शेष कुशल है । कविता को मेरा प्यार देना ।

केवल तुम्हारा ही, 

पवन कुमार