वधू का सास को औपचारिक पत्र ।



मुंबई। 

दिनांक 16 जनवरी 


श्रद्धेया माता जी,

सादर नमस्ते ।

अत्र कुशलं तत्रास्तु । मैं यहाँ पर सकुशल पहुंच गई हूँ। पिता जी का स्वास्थ्य अब पहले से बहुत अच्छा है। किंतु कमज़ोरी अभी बहुत है । प्रमिला का विवाह अगले मास कर देने की उनकी लालसा है। उन्हें इस असाध्य रोग के कारण अपने ऊपर से विश्वास-सा उठ गया है । हरदम उन्हें मृत्यु ही सामने दिखाई देती है। परिवार के सभी लोग तथा डॉक्टर महोदय उनके मन से इस धारणा को निकालने का भरसक प्रयास कर रहे हैं । वे अपने सामने ही प्रमिला के हाथ पीले करना चाहते हैं। इसी से उनके मन को शांति मिल सकती है । यदि आपकी अनुमति हो, तो मैं प्रमिला के विवाह तक यहाँ रुक जाऊँ । यदि मेरे कारण किसी प्रकार की आपको असुविधा हो तो मैं अगले सप्ताह में वापस लौट आऊँ। वैसे माता जी और पिता जी की इच्छा मुझे प्रमिला के विवाह तक रोकने की है। मैं रंजना का स्वेटर अगले सप्ताह तक बुनकर भेज दूंगी । जैसी आज्ञा हो, उससे सूचित कीजिएगा।

आपकी लाडली अनुपमा आपको बहुत याद करती है। आपके दवारा याद कराये हुए गीता के 'श्लोक' सबको गा गाकर सुनाती है। जल्दी में मैं, आभूषणों का डिब्बा ऊपर वाली अटैची में भूल आई हूँ। उसे आप अपने पास संभाल रखिएगा।

घर में सबको यथायोग्य नमस्ते कहें। आपकी अनुपमा सबको नमस्कार। 

मेरे योग्य सेवा अवश्य लिखें । पूज्य पिता जी व माता जी आपको नमस्ते लिखा रहे हैं।

पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में । 

आपकी आज्ञाकारिणी,

सरिता