यात्रा का वर्णन करते हुए बड़े भाई को पत्र ।



3183, कूँचा ताराचंद, 

दरियागंज, नई दिल्ली-2 

दिनांक 25 मई,…… 


पूज्य भ्राता जी,

सादर प्रणाम !

अत्र कुशलं तत्रास्तु । कल ही में अपने सहपाठियों के साथ 'राजस्थान भ्रमण' से लौटा हूँ । इस सहयात्रा में बहुत ही आनंद आया । इस प्रकार स्वतंत्र रूप से भ्रमण के लिए जाने का मेरा पहला ही अवसर था, यह इतना भाया है कि हर बार अवकाश के दिनों में 'भारत दर्शन' की मन में ठान ली है।

हम लोग अजमेर होते हुए चित्तौड़, जयपुर और उदयपुर आदि कई स्थानों पर गए । चित्तौड़ स्तंभ, पद्मिनी महल, जयपुर के गगनचुंबी राजमहल, उदयपुर का जलमहल और सहेलियों की बाड़ी आदि अनेक इतिहास प्रसिद्ध भवन देखने को मिले । इन्हें देखकर भारत के पुरातन गौरव की याद हो आती है । किंतु राजस्थान के वास्तविक जीवन की झाँकी तो वहाँ के ग्रामों में है । हम लोग ग्रामों में भी गए । यहाँ पर चंबल बाँध से निकलने वाली नहरों का जल पहुँच गया है । यहाँ की बंजर और विरान पड़ी हुई धरती और बस्तियाँ हरियाली और आबादी में बदलती जा रही हैं । जल बोर्ड की ओर से नए-नए कुएँ बना दिए गए हैं । कृषि में नई खाद के प्रयोग किए जा रहे हैं । यहाँ के लोगों को पश पालने का बहुत शौक है। वे दूध का उपयोग उचित ढंग से करते हैं । गोबर और कूड़े की समुचित व्यवस्था है । ग्रामों में आदर्शता का साम्राज्य छा गया है। यहाँ के वासी चरित्रवान हैं। सत्कार करना अपना धर्म समझते हैं ।

एक दिन संध्या समय यहाँ के पंचायतघर में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। वहाँ पर समाचार-सूचक फिल्म दिखाई जा रही थी । बाल, वृद्ध, युवा नर-नारी सभी उसे देखकर पुलकित हो रहे थे। फिल्म शो के बाद ही, ग्राम के मुखिया ने बताया था कि बहुत जल्दी ही वे गोबर से ऐसी गैस तैयार करेंगे, जिससे ग्रामों में आने वाली बिजली बहुत ही सस्ती पडेगी । ग्रामों की परिवर्तन अवस्था तथा वहाँ के वासियों में विश्वास एवं आशा का संचार देखकर मैं और मेरे साथी बहुत ही उत्साहित हए हैं । हमें लगा, यात्रा में लगा हुआ धन तथा समय का सदुपयोग ही हुआ है । कदाचित इतनी जानकारी पुस्तकों के अध्ययन से भी इतनी शीघ्र न हो पाती ।

रंजना के लिए उदयपुर से लकड़ी के खिलौने और भाभी के लिए वहाँ की साड़ी लाया हूँ। कुछ दिनों बाद घर पहुँचने पर दूंगा । माता जी तथा पिता जी को मेरी नमस्ते व बच्चों को प्यार ।

आपका अनुज,

पंकज