आसामाई व्रत
Asmai Vrat Pujan, Katha and Vidhi
(वैशाख कृष्ण द्वितीया)
वैसे वैशाख, आषाढ़ और माघ इन तीन
महीनों में किसी भी रविवार के दिन आसमाई की पूजा की जा सकती है। किसी-किसी परिवार
में यह पूजा वर्ष में दो या तीन बार भी होती है। यह व्रत संतान की मंगल कामना व सुख-सौभाग्य के लिए किया जाता है।
यह व्रत घर की बुजुर्ग स्त्री को ही करना
चाहिए। प्राय: लड़के की मां यह व्रत करती है। व्रत रखने वाली स्त्री इस दिन पूजा
के बाद दिन में (दोपहर के समय) केवल एक बार बिना नमक का भोजन करती है। शाम को फलाहार किया जाता है। इसमें एक पान पर सफेद चंदन से एक पुतली का चित्र बनाया जाता है और उस
पर चार कौड़ियां रखकर पूजा की जाती है। चौक पूर कर उस पर कलश स्थापित किया जाता
है। उसी केपास एक चौकी पर आसामाई की स्थापना की जाती
है। इसके उपरान्त पण्डित पंचांग पूजन कराकर कलश और आसमाई का विधिपूर्वक पूजन करता
है। पूजन के बाद पण्डित बारह गांठ वाला एक गंडा व्रत करने वालीस्त्री को देता है। उसी गंडे को हाथ में
पहनकर आसमाई को भोग लगाया जाता है। पजा के बाद सब सामग्री जल में सिराई जाता है, साथ ही वह गंडा भी सिरा दिया जाता है। पजा वाली कौडिया रख ला जाती हैं
और वे ही फिर पूजा के काम आती हैं। यदि उनमें
से कोई कौड़ी खा जाए तो उसके स्थान पर नई कौड़ी पूजा में रख ली जाती है। खीर आदि पकवान बनाए जाते हैं। पजा के लिए 'आसें' (लंका के नक्शे का आकृति के पुए) विशेष रूप से बनाई जाती हैं।
पुतली पर रक्षा के लिए कच्चा धागा चढ़ाया जाता है जिससे मां अपनी संतान की मंगल
कामना करती है।
कथा चान समय में एक राजा का एक ही पत्र
था। इकलौता होने के कारण लाड़-प्यार में पला था. इसलिए बडा शरारती हो गया था।
मा-बाप लाडला था, अत: उधम मचाता रहता
था। वह अक्सर पनपा वह बहुत लाड़-प्यार में पल का वह बहुत
लाड़ला का टेला फेंककर तोड़ पर बैठ जाता तथा जल भरने आई स्त्रियों के
घड़े गुलेल से ढेला फेंकता देता। उसके व्यवहार से परेशान होकर प्रजा राजा के पास
पहुंची और आ व्यथा सनाई। उनकी फरियाद सुनकर राजा ने कहा-'कोई भी घडारी पानी भरने न जाए।' सभी स्त्रियां तांबे व पीतल के बर्तन लाने लगी। राजकुमार अपनी हरकतों
से बाज न आया।
अब वह उनके बर्तनों को उलटाकर पानी बिखेर देता। बर्तनों को भमिण फेंक देता, जिससे बर्तन टेढ़े-मेड़े हो जाते व पिचक जाते। जनता फिर राजा पास शिकायतों का पुलिंदा लेकर गई।
राजा ने प्रजा को किसी प्रकार समझा-बुझाकर
वापस भेज दिया तथा । स्वयं सोचने लगा कि यदि राजकुंवर की शरारतें इसी प्रकार चलती
रहीं तो प्रजा राज्य छोड़कर चली जाएगी। राजा ने पुत्र को बहुत समझाया पर उसकी शैतानियां कम न हुईं। एक दिन
राजकुमार जब शिकार खेलने गया था तो बहुत सोच-विचार के बाद राजा ने अपने
हस्ताक्षरों से युक्त एक आज्ञा-पत्र फाटक पर टांग दिया, जिसमें राजकुमार को देश निकाले का आदेश था। लौटने पर आज्ञा-पत्र पढ़कर
राजकुमार अपने घोड़े पर सवार होकर जंगल की तरफ चला गया।
राजकुमार अपने घोड़े पर बैठकर चला जा रहा
था कि जंगल में कुछ दूरी पर उसे चार बूढ़ी स्त्रियां रास्ते में एक जगह बैठी
मिलीं। तभी अचानक राजकुमार का चाबुक वहां गिर गया। वह घोड़े से उतरा और चाबुक उठाकर फिर से घोड़े पर सवार हो गया। वे
चारों स्त्रियां यह समझीं कि राजकुमार ने उन्हें प्रणाम किया है। उन्होंने राजकमार
से पछा कि उसने घोडे से उतरकर उनमें से किसको प्रणाम किया है। इस पर राजकुमार ने
कहा-'तुममें जो सबसे बड़ी है, मैंने उसे ही प्रणाम किया है।'
वे चारों बोलीं-'यह उत्तर तो ठीक नहीं है, क्योंकि हम सब समान अवस्था वाली हैं। अपनी-अपनी जगह सब बड़ी हैं। तुम्हें किसी एक को बताना चाहिए।'
राजकुमार ने एक स्त्री से उसका नाम पूछा
तो वह बोली-'मेरा नाम भूखमाई है।' राजकुमार ने कहा-'तुम्हारा कोई खास लक्ष्य नहीं है। भूख
रूखे-सूखे टुकड़ों से भी मिट सकती है तथा 56 प्रकार के व्यंजनों से भी। मैंने
तुम्हें प्रणाम नहीं किया।'
उसने दूसरी स्त्री से उसका नाम पूछा तो
उसने कहा-'मुझे प्यासमाई कहते हैं।' इस पर राजकुमार बोला-'तुम भी भूखमाई की तरह हो। प्यास गंगाजल से
भी शांत हो जाती है और पोखर के गंदे पानी से भी। मैंने तुम्हें
प्रणाम नहीं किया।'
तीसरी स्त्री ने अपना नाम 'नीदमाई' बताया। राजकुमार कहने लगा-'तुम मनस्य रहित हो। पुष्पों की शैय्या की तरह ही पत्थरों पर भी नींद आ
जाती है। मैंने तुम्हें भी प्रणाम नहीं किया।'
अंत में चौथी स्त्री ने अपना नाम 'आसामाई' बताया। राजकमार बोला-'ये तीनों (भूख-प्यास-नींद) मनुष्यों को व्याकुल कर देती हैं। लेकिन
तुम उन्हें शांति प्रदान करती हो। मैंने तुम्हें ही प्रणाम किया है।' * राजकुमार की
यह बात सुनकर आसामाई बड़ी प्रसन्न हुई तथा
उसे चार कौडियां देकर बोली-'जब तक ये तुम्हारे पास रहेंगी, तुम्हें युद्ध व जुए में कोई नहीं हरा सकता। तुम जो भी कार्य करोगे उसी
में सफलता मिलेगी। तुम्हारी इच्छित
वस्तु तुम्हें मिल जाएगी।' आसामाई का आशीर्वाद शिरोधार्य कर राजकुमार चल दिया।
घूमते-घूमते राजकुमार एक नगर में पहुंचा।
वहां के राजा को जुआ खेलने का शौक था। राजा के नौकर भी इस व्यसन से बच न सके थे।
राजा का धोबी जिस घाट पर राजा के कपड़े धो रहा था, वहीं राजकुमार अपने
घोड़े को पानी पिलाने के उद्देश्य से
पहुंचा।
तब धोबी कहने लगा-'पहले मेरे साथ जुआ खेलो, जीत गए तो राजा के कपड़े भी ले जाना और
घोड़े को पानी भी पिला लेना। हार गए तो घोड़ा यहीं छोड़ जाना, उसे मैं खुद पानी पिला दूंगा।'
यह सुनकर राजकुमार
जुआ
खेलने को राजी हो गया। आसामाई की कृपा से
वह जुए में जीतता ही गया। परंतु राजकुमार ने शर्त के अनुसार राजा के कपड़े नहीं
लिए। बस घोड़े को पानी पिलाकर चल दिया। __धोबी ने जाकर राजा से कहा-'मैंने जुए
का एक ऐसा खिलाड़ी देखा है, जिसे हराना सरल नहीं।' धोबी की बात सुनकर राजा की इच्छा भी उससे
जुआ खेलने की हुई। दोनों जुआ खेलने बैठ गए। राजकुमार ने थोड़ी ही देर में सजा का
धन-दौलत. राज-पाट
सबकछ जीत लिया। राजा अपना सबकुछ हार गया।
उसने अपने मंत्रियों और मित्रों से सलाह की-अब क्या करना चाहिए?
परबार के कुछ चापलुस सदस्य राजा से कहने
लगे-'महाराज! इसे मरवा
राजा का एक बूढ़ा मंत्री था। उसने सलाह दी
कि राजकुमारी का इसके साथ विवाह कर दिया जाए तो लडका अपना ही हो जाएगा।
राजा की समझ में बढे मंत्री की बात आ गई
और उसने राजकुमारी का १ उसके साथ कर दिया। विवाह के बाद एक अलग महल भी उनके रहन
दिया गया। राजकमार और राजकमारी अलग महल
में आनंदपूर्वक रहन को दे दिया गया। राजकुमार और राजक्
। राजकुमारी बड़ी सदाचारिणी तथा विनयशीला
थी। यहां उसका सा ननदें तो थी नहीं, इसलिए उसने कपड़े का कई गुड़ियाएं बनाकर
रखी प्रतिदिन प्रात: वह उन्हें सास-ननद मानकर उनके पैर छूती और अपना पसारकर
उनका आशीर्वाद लेती।
एक दिन राजकुमार ने उसे गुड़ियों के पांव
छूत देखकर पछा-'तुम क्या करती हो?' राजकुमारी ने उसे
सारी बात बता दी। उसने कहाधर्म का पालन कर रही हूं। यदि मैं आपके घर में होती तो
नित्यप्रति सास-नना आदि के
चरण छूती और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करती।
किंतु यहां सास-नकट कोई नहीं है, इसलिए मैं इन्हें ही सास-ननद मानकर अपना
धर्म पालन करती
यह सुनकर राजकुमार ने कहा-'गुड़ियों के चरण छूने की क्या जरूरत है. हमारे परिवार में तो सभी हैं।
तुम्हारी इच्छा हो तो पिताजी से आज्ञा ले ली और मेरे घर चलो।' राजकुमारी तैयार हो गई और उसने अपने पिता
की आज्ञा ली। राजा ने उनकी यात्रा का पूरा
प्रबंध करके बेटी को विदा कर दिया।
राजकुमार नई बहू को लेकर सेना सहित अपने
पिता के राज्य के निकट पहुंचा तो प्रजा ने सोचा कि कोई राजा हमारे राज्य पर आक्रमण
करने आया है। राजा-रानी तो पुत्र वियोग में रो-रोकर अंधे हो गए थे।
राजा को जब आक्रमण की सूचना मिली तो वे
स्वयं ही बिना लड़े राज्य-त्यागने की इच्छा से आक्रमणकारी राजा के पास जाने को
तैयार हो गए। तभी राजकुमार ने महल के द्वार पर आकर अपने आने की सूचना दी।
पुत्र के लौटने का समाचार पाकर उनकी आंखों
की रोशनी वापस आ गई। कुल की परम्परा के अनुसार रानी ने विधिपूर्वक पहले अपनी बहू
को महल में प्रवेश कराया। महल में पहुंचकर बहू ने सास-ससुर के चरण छुए
तथा आशीर्वाद लिया।
कुछ दिनों बाद बहू के गर्भ से एक सुंदर
बालक ने जन्म लिया। इस प्रकार जिस घर में और राज्य में राजकुमार के चले जाने के
कारण अंधकार-सा हो गया था, वहां आसामाई की कृपा से आनंद छा गया। तभी
से
आसामाई की पूजा व व्रत का विधान है।
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