चैत्री पूर्णिमा -चैती पून्यो 
Chaitri Purnima or Chati Punyo Vrat Vidhi and Pujan Katha 
(चैत्र पूर्णिमा)


हिंदू धर्म में बारह मास की सभी पूर्णिमाओं को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। प्रत्येक मास की पूर्णिमा तिथि पवित्र मानी गई है। परंतु जहां तक चैत्र मास की पूर्णिमा का प्रश्न है, इसका अत्यन्त विशिष्ट स्थान है।

इस दिन देव नदी, तीर्थ, सरोवर आदि में स्नान, दान करने से एक मास तक स्नान का फल प्राप्त होता है। हिंदू परिवारों में स्त्रियां भगवान लक्ष्मीनारायण को प्रसन्न करने के लिए आज के दिन यह व्रत धारण करती हैं तथा सत्यनारायण की कथा सुनती हैं।

चैत्र की पूर्णिमा को 'चैती पूनम' भी कहा जाता है। चैत्र की पूर्णिमा को ही भगवान योगेश्वर श्रीकष्ण ने ब्रज में गोपियों के साथ अंतिम भव्य महारास का आयोजन किया था। इस महारास में हजारों गोपियों ने भाग लिया था और प्रत्येक गोपी के साथ नटवर नागर भगवान श्रीकृष्ण रातभर नाचे थे। उन्होंने यह कार्य अपनी योगमाया के द्वारा किया था।

अर्थात इस दिन श्रीकृष्ण ने अपनी अनन्त योग शक्ति से असंख्य रूप धारण कर जितनी गोपी उतने ही कान्हा का विराट वैभव विस्तार कर विषय लोलुपता के देवता कामदेव को योग पराक्रम से आत्मराम और पूर्ण काम स्थिति प्रगट करके विजय किया था। श्रीकृष्ण की योगनिष्ठा बल की यह सबसे कठिन परीक्षा थी जिसे उन्होंने अनासक्त भाव से निस्पृह रहकर योगारूढ़ पद से विजय प्राप्त की थी।