नव संवत्सर (नववर्षारम्भ)
(चैत्र शुक्ल प्रतिपदा)

Nav Samvatsar Vrat Katha



चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा 'वर्ष प्रतिपदा' कहलाती है। भारतीय धर्मशास्त्रों के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नए वर्ष का औरम्भ माना जाता है।

ब्रह्म पुराण में ऐसा प्रमाण मिलता है कि ब्रह्माजी ने इसी तिथि को (सूर्योदय के समय) सृष्टि की रचना की थी।' स्मृति कौस्तुभकार के मतानुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रेवती नक्षत्र के 'निष्कुंभ योग' में भगवान विष्णु  ने मत्स्यावतार लिया था। भारत के प्रतापी, महान सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के संवत्सर का यहीं से औरम्भ माना जाता है। इस प्रकार न केवल पौराणिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस तिथि का बहुत महत्व है।

संसार के हर देश में नए वर्ष का प्रारम्भ दिवस बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। भिन्न-भिन्न देशों के लोग नववर्ष को अपने-अपने ढंग से मनाते हैं। हम भारतीय आज योरोप की सभ्यता से प्रभावित होकर पहली जनवरी, वास्तव में इकतीस दिसम्बर की मध्यरात्रि में बारह बजते ही नववर्ष मनाते हैं। जबकि हमारा भारतीय नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है।

हम भारतीय सूर्योदय से नवीन दिन का प्रारम्भ मानते  हैं। अतः चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में स्नानादि से निवृत्त होकर ईश-आराधना से हमारा नववर्ष प्रारम्भ होता है। यहां एक अन्य विशेषता और भी है। हमारा भारतीय मास तो पूर्णमासी के दूसरे दिन अर्थात शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर पूर्णिमा के दिन पूर्ण होता है और इस प्रकार अमावस्या माह के मध्य में आती है। परन्तु हमारा नववर्ष मास के प्रथम दिवस अर्थात शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नहीं वरन आधा चैत्र मास बीत जाने के बाद चत्र की अमावस्या के दूसरे दिन अर्थात चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होता है।

इस प्रकार चैत्र मास का प्रथम पर्वार्द्ध अर्थात होली की पडेवा से चेत्र का अमावस्या तक के पन्द्रह दिन तो गत वर्ष के अंतिम पंद्रह दिन होते हैं और चत्र मास का उत्तरार्द्ध अर्थात अमावस्या की प्रतिपदा से पूर्णिमा तक के पंद्रह दिन नवीन वर्ष के अंतर्गत आते हैं।

व्रत फल और विधि

यह व्रत चिर सौभाग्य प्राप्त करने की कामना से किया जाता है। इस व्रत के करने से वैधव्य दोष नष्ट हो जाता है।

इस दिन प्रात: नित्यकर्मों से निवृत्त होकर नवीन वस्त्र धारण कर, तत्पश्चात हाथ में गंध, पुष्प, अक्षत तथा जल लेकर संकल्प करना चाहिए। स्वच्छ चौकी या बालुका वेदी पर शुद्ध श्वेत वस्त्र बिछाकर हल्दी या केसर से रंगे अक्षत (चावल) का एक अष्टदल (आठ दलों वाला) कमल बनाएं। तत्पश्चात निम्नलिखित मंत्र से ब्रह्माजी का आवाहन करें-

ओ३म् ब्रह्मणे नमः'

इसके बाद धूप, दीप, पुष्प व नैवेद्य से पूजन करना चाहिए। इसी दिन नए वर्ष के पंचाग का वर्षफल सुनें एवं गायत्री मंत्र का जाप कर पूजन करें।

"ओ३म् भूभुर्व:स्वः संवत्सराधिपतिमावाहयामि पूजयामि।'

आज से भगवती भवानी के नवरात्र तो प्रारम्भ हो ही जाते हैं साथ ही जगउत्पादक ब्रह्माजी की विशेष पूजा-आराधना का भी विशेष विधान है।

आज के दिन नए वस्त्र धारण करने, घर को सजाने, नीम के कोमल पत्ते खाने, ब्राह्मणों को भोजन कराने और प्याऊ की स्थापना कराने का भी विशेष विधान है।

इस दिन पवन परीक्षा से वर्ष के शुभाशुभ फल का ज्ञान भी होता है। इसके लिए एक लम्बे बांस (डण्डे) में नवीन वस्त्र से बनी हुई लम्बी पताका को किसी ऊंची वायु की रोक से रहित शिखर या वृक्ष की चोटी से बांधकर ध्वज का पूजन करना चाहिए।

आओ वायु कुरंगपति ले नव वर्ष संदेश
प्रगट करो फल वर्ष का ले गति दिशा प्रवेश॥

इसके बाद ध्वज के उड़ने से दिशा का निश्चय करें कि वायु किस दिशा को जा रही है। वायु का फल इस प्रकार है पूर्व-धन उन्नति, अग्निकोण-धन नाश, दक्षिण-पशुओं का नाश, नैर्ऋत्य कोण-धान्य हानि, पश्चिम-मेघवृद्धि, वायव्य-स्थिरता, उत्तर-विपुल धान्य, ईशान-धन आगमन का फल होता है।