भारत में महिलाओं की सुरक्षा

Bharat me Mahilao ki Suraksha



                पिछले कुछ वर्षो में महिला सुरक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है। इसके पीछे कारण है लगातार होते अपराधों में इजाफ़ा। मध्यकालीन युग से लेकर 21वीं सदी तक महिलाओं की प्रतिष्ठा में लगातार गिरावट देखी गयी है। महिलाओं को भी पुरुषों के बराबर अधिकार है। वे देश की आधी जनसँख्या का प्रतिनिध्त्वि करती है तथा विकास में भी आधी भागीदार है। इस तर्क को तो कतई नहीं नकारा जा सकता की आज के आधुनिक युग में महिला पुरुषों के साथ ही नहीं बल्कि उनसे दो कदम आगे निकल चुकी है। वे राष्ट्रपति के दफ्तर से लेकर ज़िला स्तर की योजनाओं का आधार बन चुकी है। महिलाओं के बिना दिनचर्या की कल्पना भी नहीं की जा सकती। भारतीय संविधान के अनुसार महिलाओं को भी पुरुषों के समान, स्वतंत्र, गौरवमयी जीवन जीने का हक़ है। महिलाओं को लगातार यौन हिंसा, दहेज़ हत्या और मारपीट का शिखर होना पड़ता है। तेज़ाब फेंकना, जबरदस्ती वैश्यावृति करवाना आम बात हो गयी है। ये सब एक सभ्य समाज के लिए बेहद शर्मनाक है।

                  ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं एवं पुरुषों में ज़मीन आसमान का फर्क है जबकि शहरी क्षेत्र में ऐसा नहीं है। इसका कारण है गांव में महिलाओं की कम साक्षरता दर। अगर हम केरल और मिजोरम का उदाहरण ले तो ये अपवाद की श्रेणी में आते है। इन दोनों राज्यों में महिला साक्षरता दर पुरुषों के बराबर है। महिला साक्षरता दर में कमी का मुख्य कारण है पर्याप्त विद्यालयों की कमी, शौचालयों की कमी, महिला अध्यापकों की कमी, लिंग भेदभाव आदि। आंकड़ो के अनुसार 2015 में महिला साक्षरता दर 60.6% थी जबकि पुरुष साक्षरता दर 81.3% थी।

                  भारत में महिला अपराध की फेहरिस्त देखी जाये तो यह बहुत लंबी है। इसमें तेज़ाब फेंकना, जबरदस्ती वैश्यावृति, यौन हिंसा, दहेज़ हत्या, अपहरण, ऑनर किलिंग, बलात्कार, भ्रूण हत्या, मानसिक उत्पीड़न आदि शामिल है।

                   भारत में महिला सुरक्षा से जुड़े कानून की लिस्ट बहुत लंबी है इसमें चाइल्ड मैरिज एक्ट 1929, स्पेशल मैरिज एक्ट 1954, हिन्दू मैरिज एक्ट 1955, हिंदू विडो रीमैरिज एक्ट 1856, इंडियन पीनल कोड 1860, मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1861, फॉरेन मैरिज एक्ट 1969, इंडियन डाइवोर्स एक्ट 1969, क्रिस्चियन मैरिज एक्ट 1872, मैरिड वीमेन प्रॉपर्टी एक्ट 1874, मुस्लिम वुमन प्रोटेक्शन एक्ट 1986, नेशनल कमीशन फॉर वुमन एक्ट 1990, सेक्सुअल हर्रास्मेंट ऑफ़ वुमन एट वर्किंग प्लेस एक्ट 2013 आदि।

                   इसके अलावा 7 मई 2015 को लोक सभा ने और 22 दिसम्बर 2015 को राज्य सभा ने जुवेनाइल जस्टिस बिल में भी बदलाव किया है। इसके अन्तर्गत यदि कोई 16 से 18 साल का किशोर जघन्य अपराध में लिप्त पाया जाता है तो उसे भी कठोर सज़ा का प्रावधान है (खास तौर पर निर्भया जैसे केस में किशोर अपराधी के छूट जाने के बाद)।

                   कड़े कानूनों के बनाने के बावजूद भी महिला अपराध में कमी के बजाये दिन प्रतिदिन लगातार उछाल देखने को मिल रहा है। समाज में महिलाओं की सुरक्षा गिरती जा रही है। महिलाएं अपने आप को असुरक्षित महसूस कर रही है। महिलाओं के लिए गंदे होते माहौल को बदलने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की ही नहीं अपितु हर आम आदमी की है ताकि हर महिला गर्व से अपने जीवन को जी सके।