महिला सशक्तिकरण
Mahila Sashaktikaran
महिला सशक्तिकरण को बेहद आसान
शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है कि इससे महिलाएँ शक्तिशाली बनती है जिससे वो
अपने जीवन से जुड़े हर फैसले स्वयं ले सकती है और परिवार और समाज में अच्छे से रह
सकती है। समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिये उन्हें सक्षम बनाना
महिला सशक्तिकरण है।
जैसा कि हम सभी जानते है कि
भारत एक पुरुषप्रधान समाज है जहाँ पुरुष का हर क्षेत्र मंक दखल है और महिलाएँ
सिर्फ घर-परिवार की जिम्मेदारी उठाती है साथ ही उनपर कई पाबंदीयाँ भी होती है।
भारत की लगभग 50 प्रतिशत आबादी
केवल महिलाओं की है मतलब, पूरे देश के
विकास के लिये इस आधी आबाधी की जरुरत है जो कि अभी भी सशक्त नहीं है और कई सामाजिक
प्रतिबंधों से बंधी हुई है। ऐसी स्थिति में हम नहीं कह सकते कि भविष्य में बिना
हमारी आधी आबादी को मजबूत किये हमारा देश विकसित हो पायेगा। अगर हमें अपने देश को
विकसित बनाना है तो ये जरुरी है कि सरकार, पुरुष और खुद महिलाओं द्वारा महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया जाये।
महिला सशक्तिकरण की जरुरत इसलिये
पड़ी क्योंकि प्राचीन समय से भारत में लैंगिक असमानता थी और पुरुषप्रधान समाज था।
महिलाओं को उनके अपने परिवार और समाज द्वार कई कारणों से दबाया गया तथा उनके साथ
कई प्रकार की हिंसा हुई और परिवार और समाज में भेदभाव भी किया गया ऐसा केवल भारत
में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी दिखाई पड़ता है। महिलाओं के लिये प्राचीन
काल से समाज में चले आ रहे गलत और पुराने चलन को नये रिती-रिवाजों और परंपरा में
ढ़ाल दिया गया था। भारतीय समाज में महिलाओं को सम्मान देने के लिये माँ, बहन, पुत्री, पत्नी के रुप में महिला देवियो को पूजने की
परंपरा है लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं कि केवल महिलाओं को पूजने भर से देश के
विकास की जरुरत पूरी हो जायेगी। आज जरुरत है कि देश की आधी आबादी यानि महिलाओं का
हर क्षेत्र में सशक्तिकरण किया जाए जो देश के विकास का आधार बनेंगी।
भारत एक प्रसिद्ध देश है जिसने ‘विविधता में एकता’ के मुहावरे को साबित किया है, जहाँ भारतीय समाज में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग
रहते है। महिलाओं को हर धर्म में एक अलग स्थान दिया गया है जो लोगों की आँखों को
ढ़के हुए बड़े पर्दे के रुप में और कई वर्षों से आदर्श के रुप में महिलाओं के
खिलाफ कई सारे गलत कार्यों (शारीरिक और मानसिक) को जारी रखने में मदद कर रहा है। प्राचीन
भारतीय समाज दूसरी भेदभावपूर्ण दस्तूरों के साथ सती प्रथा, नगर वधु व्यवस्था, दहेज प्रथा, यौन हिंसा,
घरेलू हिंसा, गर्भ में बच्चियों की हत्या, पर्दा प्रथा, कार्य स्थल पर यौन शोषण, बाल मजदूरी,
बाल विवाह तथा देवदासी प्रथा आदि परंपरा थी। इस
तरह की कुप्रथा का कारण पितृसत्तामक समाज और पुरुष श्रेष्ठता मनोग्रन्थि है।
पुरुष पारिवारिक सदस्यों
द्वारा सामाजिक राजनीतिक अधिकार (काम करने की आजादी, शिक्षा का अधिकार आदि) को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया।
महिलाओं के खिलाफ कुछ बुरे चलन को खुले विचारों के लोगों और महान भारतीय लोगों
द्वारा हटाया गया जिन्होंने महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण कार्यों के लिये अपनी
आवाज उठायी। राजा राम मोहन रॉय की लगातार कोशिशों की वजह से ही सती प्रथा को खत्म
करने के लिये अंग्रेज मजबूर हुए। बाद में दूसरे भारतीय समाज सुधारकों (ईश्वर चंद्र
विद्यासागर, आचार्य विनोभा
भावे, स्वामी विवेकानंद आदि) ने
भी महिला उत्थान के लिये अपनी आवाज उठायी और कड़ा संघर्ष किया। भारत में विधवाओं
की स्थिति को सुधारने के लिये ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने अपने लगातार प्रयास से
विधवा पुर्न विवाह अधिनियम 1856 की शुरुआत
करवाई।
पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के
खिलाफ होने वाले लैंगिक असमानता और बुरी प्रथाओं को हटाने के लिये सरकार द्वारा कई
सारे संवैधानिक और कानूनी अधिकार बनाए और लागू किये गये है। हालाँकि ऐसे बड़े विषय
को सुलझाने के लिये महिलाओं सहित सभी का लगातार सहयोग की जरुरत है। आधुनिक समाज
महिलाओं के अधिकार को लेकर ज्यादा जागरुक है जिसका परिणाम हुआ कि कई सारे
स्वयं-सेवी समूह और एनजीओ आदि इस दिशा में कार्य कर रहे है। महिलाएँ ज्यादा खुले
दिमाग की होती है और सभी आयामों में अपने अधिकारों को पाने के लिये सामाजिक बंधनों
को तोड़ रही है। हालाँकि अपराध इसके साथ-साथ चल रहा है।
कानूनी अधिकार के साथ महिलाओं को
सशक्त बनाने के लिये संसद द्वारा पास किये गये कुछ अधिनियम है - एक बराबर
पारिश्रमिक एक्ट 1976, दहेज रोक अधिनियम
1961, अनैतिक व्यापार (रोकथाम)
अधिनियम 1956, मेडिकल टर्म्नेशन
ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1987, बाल विवाह रोकथाम
एक्ट 2006, लिंग परीक्षण तकनीक
(नियंत्रक और गलत इस्तेमाल के रोकथाम) एक्ट 1994, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण एक्ट 2013।
भारतीय समाज में सच में महिला
सशक्तिकरण लाने के लिये महिलाओं के खिलाफ बुरी प्रथाओं के मुख्य कारणों को समझना
और उन्हें हटाना होगा जो कि समाज की पितृसत्तामक और पुरुष प्रभाव युक्त व्यवस्था
है। जरुरत है कि हम महिलाओं के खिलाफ पुरानी सोच को बदले और संवैधानिक और कानूनी
प्रावधानों में भी बदलाव लाये।
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