जादू से दूध उबालना  
Boil Milk with Magic Trick

एक दिन एक बाजीगर सड़क के किनारे खेल दिखाकर लोगों का मनोरंजन कर रहा था। सब लोग बड़े दत्तचित्त होकर खेल देख रहे थे कि तभी जादूगर ने कहा, 'आओ, मैं अब तुम्हें बिना आग के दूध उबालकर दिखाता हूँ।' उसने लोगों के सामने कच्चे दूध से भरा हुआ लोटा रखा तथा मन-ही-मन कुछ बोलता हुआ एक सजी हुई रंग-बिरंगी जादुई छड़ी लोटे के चारों ओर घुमाने लगा। फिर एक दिशा की ओर इशारा कर जोर से चिल्लाया, 'जल्दी आ बिजली, दूध उबाल'। सभी का ध्यान एक क्षण के लिए बाजीगर द्वारा बताई दिशा की ओर गया। बिजली आती हुई तो किसीको दिखाई नहीं दी, परंतु कुछ ही क्षणों में दूध उबलने लगा था। सभी लोग आश्चर्यचकित होकर तालियाँ बजाने लगे।


इस भीड़ में एक बच्चा दसवीं कक्षा का विद्यार्थी था, जो इस तरह की कुछ रासायनिक क्रियाओं के बारे में जानता था। वह उस बाजीगर से बहस करने लगा कि लाओ, मुझे लोटा दो, मैं पीकर देखता हूँ कि दूध कैसे गरम हुआ है। वह विद्यार्थी जब तक उस लोटे को लेता, उतनी देर में बाजीगर ने लोटे को कपड़े से पकड़ा तथा पास ही रखी पानी से भरी बालटी में उड़ेल दिया और फिर नाटकीय अंदाज में बोला कि जिस उस्ताद से मैंने यह जादू सीखा था उसका कहना है कि इस विधि से गरम किया हुआ दूध किसी काम में नहीं लिया जाता है और उसे जल देवता को ही भेंट कर दिया जाता है। चूँकि यहाँ नदी या तालाब नहीं है, इसलिए मैंने इसे पानी से भरी बालटी में उड़ेल दिया।

इसके पीछे क्या वैज्ञानिक विवेचन छिपा है-आओ, मैं उसे समझाता हूँ। रासायनिक क्रियाएँ कई प्रकार की होती हैं। इनमें से कुछ में ऊष्मा (ताप) उत्पन्न होती है। ऊष्मा उत्पन्न करनेवाली रासायनिक क्रियाएँ ऊष्माक्षेपी क्रियाएँ कहलाती हैं। कुछ क्रियाएँ ऊष्माशोषी होती हैं, जिसके कारण वस्तुएँ ठंडी हो जाती हैं। चूने (कलई) के पानी से संयोग ऊष्माक्षेपी क्रिया हैं। पुतार्ड करते समय चूने को भिगोने पर भाप को निकलते आपने देखा होगा। 

उक्त क्रिया में बाजीगर ने अन्य लोगों का ध्यान दूसरी ओर आकर्षित कर दूध में चूने की डलियाँ डाल दी थीं। दूध में उपस्थित पानी से चूने की क्रिया होने से ऊष्मा निकलती है और इसी कारण दूध गरम होकर उबलने लगता है। चूना मिला दूध पीने के लिए उपयोग में नहीं लिया जा सकता। इसी कारण उसने उसे तालाब के पानी में उड़ेल देनेवाली जल देवता की कथा जोड़ दी। भभूत में मिठास कई ढोंगी साधु-महात्मा आशीर्वाद देते हुए यह कहते हैं कि लो बच्चा! भभूत ले लो, तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी। आप भोलेभाले बच्चे उस भभूत को श्रद्धापूर्वक लेकर अपने मस्तक व गले पर लगाकर कुछ खा भी लेते हैं। जीभ पर रखते ही भभूत में मिठास का अनुभव कर आप बड़े मग्न हो जाते हैं तथा प्रभु की अद्भुत महिमा में खो जाते हैं एवं सोचने लगते हैं कि ये साधु-महात्मा बहुत पहुँचे हुए संत हैं और उसकी चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर खूब आवभगत कर, दान-दक्षिणा देकर मालामाल कर देते हैं। वह साधु वहा से माल लेकर चल देता है, अन्यत्र माल बटोरने के लिए।

इस मिठास के पीछे जो सत्य छिपा हुआ है वह यह है कि इस भभूत में एक रासायनिक पदार्थ मिला होता है। इसे सैकरिन (Saccharin) कहते हैं। यह सैकरिन साधारण शक्कर (चीनी) से भी हजार गुना ज्यादा मीठी होती है। इस ‘सैकरिन' का उपयोग आजकल मधुमेह रोग से पीड़ित व्यक्ति 'चीनी' की जगह करते हैं।