होस्टल का जीवन
Hostel ka Jeevan
होस्टल का जीवन
बहुत ही अलग तरह का होता है।अपने घरवालों से अलग रहना पड़ता है। घरवालों का कोई
नियंत्रण नही रहता है।उनकी तरफ से पूरी स्वतंत्रता होती है। बचपन में दिये हुए
संस्कार ही बहुत प्रबल होते है।घरवालों से दूर रहकर भी उनके आदेशों का पालन करते
है। अपने पर अनुशासन खुद को ही लागू करने पड़ते है। ऐसा करके उनसे दूर रहकर भी उनसे
जुड़े रहते है और उनका सान्निध्य प्राप्त करते हैं।
शिक्षा सत्र के
बीच में ही मेरे पिताजी का स्थानान्तरण हो गया था और मेरे लिए स्कूल से
स्थानान्तरण-पत्र लेना सम्भव न था। अतः मेरा होस्टल में प्रवेश करवा दिया गया। और
मुझे होस्टल में कमरा मिल गया। मैं अपनी पुस्तकें, बिस्तर और अन्य सामान लेकर होस्टल पहुँच गया।मुझे ऐसा लगा
कि मैं अल्प आयु में ही घरवालों से स्वतंत्र और आत्मनिर्भर हो गया हुँ।जब मेरे
माता-पिता मुझे छोड़ने होस्टल आये और होस्टल के लड़के उनसे मिले तो मुझे बहुत अजीब
लगा। मेरे मम्मी- पापा उदास थे। तब उन्होने मेरे मम्मी-पापा को विश्वास दिलाया
िकवे मेरी फिक्र ना करें।वे मेरा पूरा ध्यान रखेंगे। मम्मी-पापा के जाने के बाद
मैं रोने लगा तो उन्होनें मुझे सांत्वना दी और काफी देर तक मेरे पास बैठे रहे।
अगले दिन जब मैं
सोकर उठा तो ऐसा पहली बार हुआ जब कोई भी मेरे पास नही था। वहाँ क्या वे तो शहर में
ही नही थे। वे रात की गाड़ी से ही चले गये थे। मुझे उनकी बहुत याद आई। मम्मी मुझे 6 बजे उठा दिया करती थी। घड़ी में समय देखा तो छः
बजने में 10 मिनट थे । मैं उठ गया।
मुझे लगा कि जल्दी उठकर मैंने उनकी अनुपस्थिति में मैंने उनकी आज्ञा का पालन किया
है। तभी होस्टल के 2-3 लड़के आ गये।
उनके हाथों में ब्रश, साबुन, वस्त्र आदि थे। वे नहाने जा रहे थे और मुझे
बुलाने आये थे।वे सामूहिक स्नानघर जा रहे थे और उनका कहना था कि जल्दी नहाना ही
ठीक रहेगा। देर होने पर भीड़ होे जायेगी। मैं उनके साथ चला गया। वहाँ बिल्कुल भी भीड़
नही थी और हम जल्दी ही नहाकर कमरे में आ गये।
होस्टल की सुबह
बहुत सुहावनी लग रही थी। कुछ लड़के अभी उठे नही थे।कुछ कमरो में टेप रिकार्डर बज
रहे थे और बाहर पार्क में कुछ लड़के व्यायाम कर रहे थे। 2-3 लड़के सुबह के सुहावने मौसम में पढ़ते हुए नजर आ रहे थे ।
कमरे में जाकर कुछ उपासना की। कुछ ही देर बाद वे लड़के नाश्तें के लिए बुलाने आ गये
।हम विद्यालय के भोजनालय पहुँच गये। वहां एक बड़ा हाॅल था। जिसमें कुर्सिया और मेज
लगे थे। हमें आलु के पराठे परोसे गये। मुझे आलू के पराठे पसन्द नही थे। पर स्कूल
के होस्टल में दोस्तों के साथ वहीं पराठे अच्छे लगे। नाश्ते के बाद हम सभी अपने-
अपने कमरे में आ गयेे।कुछ देर बाद वे लड़के फिर बुलाने आ गये स्कूल का समय हो गया
था।
मुझे घरवालों की
याद आ रही थी लेकिन होस्टल में सब कुछ रोचक था। दोपहर का भोजन हमने जल्दी-जल्दी
किया क्योंकि इसके बाद भी कक्षाएँ लगती है। स्कूल से आकर हमने कुछ देर विश्राम
किया। इसके बाद उठकर हम होस्टल के मनोरंजन कक्ष में चले गये। वहाँ टी.वी. देखते।
इसी बीच रात्रि के भोजन का समय हो जाता। हम खुशी-खुशी फिर भोजन करते। रविवार या
अन्य छुट्टी के दिन खूब खेेेलते और घूमने निकल जाते। सभी त्यौहार हम सभी मिलकर
मनाते । किसी के भी घर से कोई खाने की वस्तु आती तो हम सब मिलकर खाते। लेकिन
कभी-कभी होस्टल में झगड़ा भी हो जाता तो दूसरें लड़के मेल मिलाप करवा देते।यदि कोई
बीमार हो जाता तो सभी उसकी देखभाल करते। यदि रात को बातें करने बैठ जाते तो सारी रात
गुुजर जाती।
होस्टल में अच्छा
मन लगा। बीच में एक-दो बार हम अपने घर भी गये। घर जाने पर मेरा मन शीघ्र ही होस्टल
पहुँचने का करता । होस्टल के दिन बहुत याद आते है।
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