खेलों का महत्व 
Khelo ka Mahatva 

खेलों का जीवन में बहुत महत्व है। खेल जीवन के लिए उतने ही आवश्यक है। जितना कि पढ़ाई। स्वस्थ मस्तिष्क स्वस्थ शरीर में निवास करता है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए खेल आवश्यक है। खेल एक अच्छा व्यायाम है। खेलों से कसरत होती है। छोटी-मोटी कसरत भी होती है। बढ़ने वाले लड़कों का शरीरिक विकास होता है। खेलों से चुस्ती-स्फूर्ति आती है। आलस्य दूर होता है। मन प्रसन्न रहता है। मन की इस अवस्था में पढ़ाई में भी रूचि मिलती है। खेल एक अच्छा मनोरंजन का साधन है। खेल खेलने वाले को भी मनोरंजन मिलता है और देखने वाले को भी। आज खेलों के लिए बड़े-बड़े स्टेडियम में हॉकी , क्रिकेट या फुटबाल के मैच खेले जाते है। तो हजारों की संख्या में लोग उन्हें देखने पहुंच जाते है। यही नहीं, मैच देखने के लिए टिकट खरीदी जाती हैं। जहां दर्शकों की इतनी बड़ी भीड़ मैच देखकर मनोरंजित होती है। वहीं इतने लोगों के सामने खेलते हुए खिलाड़ियों का उत्साह भी बढ़ जाता है। वे और अधिक शक्ति और कौशल से खेलते है। बड़ी-बड़ी कम्पनियां जीतने वाले खिलाड़ियों के लिए पुरस्कार घोषित करती है। और उनको प्रोत्साहन करती है। ऐसा करके उन कम्पनियों का खूब प्रचार होता है। और उनकी वस्तुए अधिक बिकती है। जीवन स्वयं ही एक खेल है। जिस प्रकार से खेल में उतार-चढ़ाव आते है। तथा हार-जीत होती है। ठीक वैसे ही जीवन में भी ऐसे हालत आते रहते है। खेल और खेलना हार-जीत से अधिक महत्व रखते है। जीवन में परस्पर सहयोग और प्रेम का बहुत महत्व है। इनसे ही संसार रहने योग्य बनता हैं। खेल-कूद से परस्पर सहयोग तथा प्रेम की भावना बढ़ती है। मैच टीम भावना से खेले जाते है। खेल का सबसे बड़ा उद्देश्य ही मतभेद तथा दूरियों को मिटाना है। खेल ही है।जो मानव जाति को एक सुत्र में पिरोने का कार्य कर सकता है। फिर चाहे खेल कोई सा भी हो। क्रिकेट या हॉकी  इनसे परस्पर सहयोग की भावना का विकास होता है। सहयोग एकता का ही दूसरा नाम है। एकता से समाज और राष्ट्र मजबूत होता है। अनुशासन का जीवन में बहुत महत्व है। खेलों से अनुशासन में रहने की शिक्षा मिलती है। प्रत्येक खेल अनुशासन अथवा नियमों का पाबंद रहकर ही खेला जाता है। अनुशासन से ही मनुष्य जीवन में उन्नति को प्राप्त करता है। मनुष्य को गतिशील होना चाहिए। उसे हमेशा आगे बढ़ने का प्रयास करते रहना चाहिए। खेल-कूद से प्रतिस्पर्धा की भावना जागृत होती है। प्रतिस्पर्धा की भावना के साथ-साथ खेल की भावना को भी बनाए रखना आवश्यक है। प्रायःटीवी पर देखा जाता है। कि जीती हुई और हारी हुई टीम के सदस्य एक-दूसरे से हाथ मिलाते है। जीत के लिए ही खिलाड़ी परिश्रम करता है। ताकि वह अपने खेल को सुधार सके। और दूसरी टीम को मैदान में हरा सके। इसी तरह वह जीवन में परिश्रम करता है। ताकि वह अपने प्रतिद्वंद्वी को हरा सके। वह किसी पीछे रहना नहीं चाहता।

खेलकूद से मनुष्य में संघर्ष करने की आदत पड़ती है। जीवन में उन्नति करने के लिए ही नहीं अपितु अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए संघर्ष करना आवश्यक है। संघर्ष आदमी के अस्तित्व की गारंटी है। जहां संघर्ष है। वहां जीवन है। और जहां संघर्ष नहीं है वहां मृत्यु। जो संघर्ष नहीं करते वह जीवन में सफल नहीं हो सकते। जिसे संघर्ष करने का अनुभवी होता है। वह कठिनाईयों से सरलता से जूझता है। और उन्हें आसानी से सुलझा लेता है। खेल को खेल की भावना से खेलना चाहिए। वह जीत को ही नहीं हार को भी स्वीकार करता है। इस तरह उसमें कर्म करने की भावना पैदा होती है। वह फल को अधिक महत्व नहीं देता। एक बार हार जाने पर वह हार जाने पर भी खेलना नहीं छोड़ता नहीं। वह निरन्तर कर्म ही करता है। अपने खेल को सुधारता है। परिश्रम करता है। और अंत में उसे ही विजय मिलती है।

यदि यह कहा जाए कि खेलने से जीवन जीने का प्रशिक्षण मिलता है। तो गलत नहीं होगा। खेलकूद प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनिवार्य है। खेलकूद को आजकल विकास का एक अनिवार्य अंग मानकर सरकार द्वारा स्कूलों में पढ़ाया जाता है।