सदाचार का महत्व
Sadachar ka Mahatva
कोई आपकी
ईमानदारी, सच्चाई, बुद्धिमत्ता के बारे में नहीं जान सकता। जब तक
आप अपने कार्यों से उदाहरण प्रस्तुत करे। प्रत्येक परिवार तथा उसके सदस्य एक समाज
के अंग है। इस समाज से संबंधित कुछ नियम और मर्यादाएं है। इन मर्यादाओं का पालन
करना प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी सीमा तक अनिवार्य होता है। सत्य बोलना, चोरी न करना, दूसरों का भला सोचना और करना, और सबके साथ प्रेम पूर्वक व्यवहार करना, तथा स्त्रियों का सम्मान करना कुछ ऐसे गुण है।
जो सदाचार के अंतर्गत आते है। सदाचार का अर्थ यह है कि व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की
स्वतंत्रता का अतिक्रमण किए बिना अपना गौरव बनाए रखे।
सदाचार का अर्थ
है उत्तम आचरण। सदाचार सदाचार दो शब्दों से मिलकर बना है- सत् $आचरण। सदाचार शब्द में सत्य आचरण की ओर संकेत
किया गया है। ऐसा आचरण जिसमें सब सत्य हो। और बिल्कुल भी असत्य न हो। जिस व्यक्ति
में सदाचार होता है। उसे संसार में सम्मान मिलता है। सदाचार की चमक के आगे संसार
समस्त दौलत की चमक फीकी पड़ जाती है। सदाचार एक ऐसा अनमोल हीरा है। जिसकी कीमत
नहींे लगाई जा सकती है। ईसा मसीह, गुरू नानक,
रवीन्द्र नाथ टैगौर, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर तथा महात्मा गांधी के पास कोई दौलत
नहीं थी फिर भी वे बादशाह थे। उनके पास सदाचार रूपी अनमोल हीरा था। जब वे जीवित थे
तो उन्हें पूरे विश्व का सम्मान प्राप्त था। सदाचार और सदव्यवहार के कारण ही वे
संसार में हमेशा के लिए अमर हो गए। जहां सदाचार मनुष्य को सम्मान दिलाता है। वहीं
दुराचार मनुष्य को घृणा दिलाता है। भारत में ही नहीं अपितु पूरे संसार में राम की
पूजा होती है। राम जैसे सदाचारी का उदाहरण संसार में नहीं मिलता। जबकि रावण जगत
प्रसिद्ध दुराचारी था। आज भी संसार उससे घृणा करता है और इस घृणा को अभिव्यक्त
करने के लिए हर वर्ष रावण का पुतला जलाया जाता है। दुराचारी की आयु अल्प होती है।
और वह सदैव रोगग्रस्त रहता है। किन्तु सदाचारी व्यक्ति स्वस्थ एवं प्रसन्न रहता
है। और दीर्घ आयु को प्राप्त करता है। और सदाचारी में सहिष्णुता, क्षमा, और अहिंसा और धैर्य जैसे गुण होते है। जिनके कारण वे कभी तनावग्रस्त नहीं
रहता।और हमेशा आनन्द में रहता है। दूराचारी व्यक्ति सदैव पाप में संलिप्त रहता हैं
इसलिए वह रोगग्रस्त, व्याकुल और दुखी
रहता है।
सदाचारी बनना
आसान नहीं है। सदाचारी बनने के लिए घोर प्रयत्न करने पड़ते है। सदाचार के बीज बचपन
में ही डाले जाते हैं। इसलिए भारतीय जीवन-शैली में ब्रह्मचर्य आश्रम की व्यवस्था
है। आठ से 25 वर्ष की आयु तक
बालक गुरू के पास रहकर ही शिक्षा ग्रहण करता हैं और सदाचार के गुणों पर चलने का
अभ्यास करता हैं। वह विद्वान लोगों की संगति करता है। और बुरे वातावरण से दूर रहता
है। क्योंकि अच्छे चरित्र के निर्माण में वातावरण और संगति का बहुत प्रभाव पड़ता
है। सत्संगति अगर एक वृक्ष हैं तो सदाचार उस वृक्ष का फल है। इसलिए बुरी संगति की
अपेक्षा अकेले रहना अच्छा है। एक तरफ सत्संगति तो दूसरी तरफ अभ्यास तथा प्रभू की
सहायता से धैर्य, संतोष, अहिंसा, संयम, क्षमा, मन और वचन से एकता, विद्या, विनम्रता और
क्रोध न करना आदि सदाचार के गुण उत्पन्न होते है। परिवार, समाज तथा देश की उन्नति के लिए प्रत्येक मनुष्य में सदाचार
के गुण अनिवार्य रूप से उत्पन्न किए जाएंगे। दुख की बात यह हैं कि आज वातावरण बहुत
दूषित हो गया हैं। हिंसा से भरपूर फिल्में वातावरण को खराब कर रहीं है। अनीश्वरवाद
भी सदाचार के मार्ग में बाधा उत्पन्न करता है। सदाचार का विचार पूर्ण रूप से
भारतीय है।
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