एक कुली की आत्मकथा 
Kuli ki Atmakatha 

भारत के प्रत्येक शहर और टाउन में कुली एक बहुत चर्चित चेहरा है। उसका सम्बन्ध समाज के सबसे निम्न वर्ग से होता है। और यह पेशा पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। हर कुली का एक पंजीकृत नम्बर होता है और वह रेलवे विभाग में पंजीकृत होता है।
वह बहुत परिश्रमी होता है। सुबह से लेकर देर रात तक वह अपने कार्य में लगा रहता है ।सवारियों के भारी-भारी सामान को अपने सिर पर उठाकर उनके गंतव्यों तक पहुँचाता है। और इस तरह से दो वक्त की रोटी कमा पाता है। हर कुली के कंधों से एक मजबूत रस्सी लटकी रहती है जिसका प्रयोग वह भारी सामान को उठाने के लिए सहायक के रूप में करता है। सामान्य तौर पर कुली बड़ी संख्या में ताँगा स्टैण्ड, बस स्टैेण्ड, और रेलवे स्टैण्ड पर दिखाई देते हैं। सामान्यतः कुली कई तरह के होते है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण श्रेणी रेलवे कुली की मानी जाती है। रेलवे कुली केवल सामान ही नही उठाते अपितु एक गाइड के रूप अपनी सेवा भी देते हैै। कभी-कभी वे सवारियो को सीट दिलाने मे सहयोग भी करते है। कुली हमेशा मटमैले कपड़े पहनते है। वह एक नीली और लाल ड्रेस पहनता है तथा एक ब्रास बिल्ला भी बाजू पर बाँधकर रखता है जिसके ऊपर उसका नम्बर लिखा हुआ होता है।

कुछ कुली चालाक और बेईमान भी होते है । वे ग्रामीण लोगो और महिलाओं से अधिक मजदूरी माँगते और कोई रियायत भी नही देते । धन्धे को लेकर ये लोग कभी-कभी आपस में झगड़ने भी लगते है। एक कुली की इच्छाएं भी बहुत कम होती है और उसे जीवन मे आनन्द लेने के अवसर भी बहुत कम मिलते है। उसके पास बीड़ी व चिलम हमेशा रहती है। फूर्सत में ये लोग आपस मेे भद्दे चुटकुले सुनाते है। तथा ताश खेलते है। अन्ततः हम यह कह सकते है कि कुली समाज का एक महत्त्वपूर्ण सदस्य होता है हमे उनके साथ विनम्र व्यवहार करना चाहिए। नये रेलमंत्री ने कुलियों की दशा सुधारने के लिए कुछ कदम उठाये हैे जैसे- बुढ़े कुलियो की जगह उनके बच्चे काम कर सकते है। और कुछ परिस्थितियों में कुलियों की मजदुरी बढ़ाने का भी प्रस्ताव है। लेकिन से कदम पर्याप्त नही है । सरकार को कुछ और कदम भी उठाने चाहिए जिससे कुली समाज में सम्मानपुर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सके।