मेरी प्रिय
पुस्तक
Meri Priya Pusatak
मेरी प्रिय पुस्तक रामचरित मानस है। लोकनायक
तुलसीदास की इस रचना में वे सभी तत्त्वसार विद्यमान हैं जिनसे केवल मैं ही नहीं
अपितु भारतीय जनजीवन सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। इस महत्त्वपूर्ण कृति ने भारतीय
आदर्शों, नीति और संस्कृति की
रक्षा की है।
मेरी प्रिय पुस्तक में मर्यादा पुरुषात्तम
श्रीराम के लोकचरित्र का चित्रांकन किया गया है।श्रीराम ‘रामचरितमानस‘ के प्रिय प्रमुख नायक है। वे परब्रह्म होते हुए भी एक गृहस्थ जीवन जीये। इसमें
एक ओर जहां श्रीराम एक धीर, वीर, और गंभीर व्यक्तित्व के दिखाई देते है वही वे
आज्ञाकारी पुत्र, आदर्श भाई,
एक आदर्श पति, मित्र और राजा के रूप में भी दिखाई पड़ते है। इसके सभी
पात्रों का व्यक्तित्व अनुकरणीय है। इन चरित्रों के माध्यम से तुलसीदास ने समाज को
ऐसे मानवीय मूल्य दिये है, जो राष्ट्र और
काल दोनों की परिधि से परे है।
तुलसीदास की इस कृति में कला पक्ष और भाव पक्ष
का समन्वय है। इसमें मानव हृदय की विभिन्न और परस्पर विरोधी भावनाओं का अत्यन्त
सजीव और मनोहारी चित्रांकन किया गया है।
इस महाकाव्य में
हर्ष, शोक, करुणा, पे्रम, क्षोभ, चिन्ता,क्रोध,और शौर्य आदि का अनूठा
वर्णन किया गया है। इससे बहुत सी शिक्षायें भी मिलती है। इसमें वर्णित चरित्र
हमारे लिए प्रेरणा के स्त्रोत है। इसमें हमें पति धर्म,मित्र धर्म, राजधर्म आदि
निभाने की सीख मिलती है। राजा और जनता के मध्य कैसे हो इसका इसमें विशद वर्णन
मिलता है और इनके क्या-क्या कत्र्तव्य होने चाहिए इसके बारें में भी इसमें वर्णन
किया गया है।
रामचरितमानस का
कलापक्ष भी भाव पक्ष की तरह ही उत्कृष्ट होना चाहिए। इसकी अलंकार योजना सरल और
स्वाभाविक है। यह महाकाव्य अवधी भाषा में लिखा गया है। इसमें दोहा और चैपाइ्र्र छंदों
का प्रयोग किया गया है जो इसकी सुन्दरता को दुगुना कर देता है।
इस महाकाव्य की
जितनी प्रशंसा की जाये कम ही होगी। यह एक अमर कृति है जो कि साहित्य,दर्शन, राजनीति धर्म और समाजशास्त्र की दृष्टि से सर्वोत्तम है। इसमें मानव जीवन में
आने वाली सभी समस्याओं का हल मिल जाता है। इन सब गुणों के कारण ही मैं इस अमर कृति
का नियमित पाठक बन गया हूँ।
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