पेड़-पौधों और पर्यावरण 
Ped-Paudhe aur Paryavaran 

पेड़- पौधों को प्रकृति की सुन्दर और सुखदायक संतान माना जाता है। मनुष्य तथा अन्य सभी जीवों का जीवन इन्हीं पर निर्भर करता है। तथा ये उनके सभी अभावों को दूर करने के साधन भी है। पेड़- पौधे हमें फल-फूल, औषधियाँ, छाया तथा विश्राम देते है। ये प्राणवायु का भी असीमित भण्डार है। जिसका अभाव होने पर कोई भी जीव क्षणभर भी जीवित नही रह सकता है।

पेड़-पौधो से हम ईंधन भी प्राप्त करते है। और उनके पत्तों ,घास-फूंस आदि से हमें खाद की प्राप्ति भी होती है। पेड़ों से हमें इमारती और फर्नीचर बनाने के लिए लकड़ी प्राप्त होती है। तथा कागज आदि बनाने के लिए कच्चा सामान भी मिलता है। इसी प्रकार से ये हमारे पर्यावरण के संरक्षक भी है। इनकी पत्तियां तथा शाखाएँ सूर्य की किरणों के लिए धरती के अंदर से आर्द्रता या जलकण पोषण करने के लिए नलिका का कार्य करती है। जलकणों का शोषण करके ये वर्षा होने की प्रक्रिया में अपना योगदान देते है। और यह तो सभी जानते है कि पर्यावरण की सुरक्षा तथा हरियाली के लिये वर्षा होना बहुत आवश्यक है।

पेड़- पौधें वर्षा का कारण होकर तो पर्यावरण की रक्षा करते है तथा ये कार्बन डाई आॅक्साइड जैसी विषैेली और घातक गैसों का शोषण भी करती है। पेड़ पौधे वर्षा की वजह से होने वाली पहाड़ी चट्टानों केे कारण नदियों की तहों और मिट्टी भरने से तलो को बचाती है। वर्तमान समय में नदियों का पानी उथला या कम गहरा होकर गंदा होता जा रहा है इसका एक कारण पेड़-पौधों की अंधाधंुध कटाई भी है। इसी कारण स ेजल स्त्रोतों के प्रदुषित होने के साथ ही पर्यावरण भी प्रदूषित होकर घातक बनता जा रहा है।

आजकल नगरों, महानगरों, कस्बों तथा देहातों में भी छोटे-बड़े उद्योग - धंधो की बाढ़ सी आ रही है। पेड़-पौधे इन जहरीली गैसों को वायुमण्डल में घुलने से रोक कर पर्यावरण को प्रदुषित हाने से बचाते है और राख तथा रेत के कणों को ऊपर जाने से रोकती भी है। इन सब बातों को जानते हुए भी मानव कुछ रुपये के लालच में पेड़ो की अन्धा-धुंध कटाई करता जा रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप पर्यावरण भी प्रदुषित हो रहा है और ओजोन परत के क्षरण का संकटा भी बढ़ता जा रहा है। जिसका कि पृथ्वी की सुरक्षा के लिए बना रहना बहुत जरूरी है। पेड़-पौधों का अभाव स्पष्ट रूप से धरती पर बसी हुई समस्त सृष्टि के विनाश का कारण बन सकता है।
धरती पर ऐसा दिन कभी न आ पाये, इसीलिए प्राचीन भारत के वनों ,आश्रम,तपोवनों और सुरक्षित अरण्यों की संस्कृति को बढ़ावा दिया गया।उस समय पेड़-पौधे लगाना तथा उनका पोषण और रक्षा करना मानव अपना कत्र्तव्य समझता था। लेकिन आज हम इसके विपरीत बस्तिया बसाने, उद्योग-धन्धों लगाने के लिये पेड़ो को अंधा-धुंध काटते जा रहे है, और नये पौधे लगाकर उनकी रक्षा करने की ओर कोई ध्यान नही देते है।

यदि हमें इस धरती और इस पर निवास करने वाले प्राणियो का बनाये रखना है तो हमें पेड़-पौधों की रक्षा और उनके नवरोपण को प्राथमिकता देनी होगी।यदि हम चाहते है कि धरती हरी-भरी रहे,नदियाँ अमृत जल धारा बहाती रहे ,और मानवता बनी रहे तो हमारे पास पेड़-पौधें उगाने तथा उनका संरक्षण के अलावा कोई विकल्प नही है।