ओणम
Onam
निबंध नंबर :- 01
भारत की सबसे बड़ी
विशेषता उसकी भिन्नता में है। अनेकता में एकता ही भारत की सुन्दरता है। भारत में
कुछ ऐसे त्यौहार एंव मेले हैं जो सभी जगह मनाये जाते हैं। जब की कुछ केवल किसी
क्षेत्र विशष में ही मनाये जाते हैं। जैसे कि वैसाखी और दुर्गा पूजा। वैसाखी पंजाब
में मनाया जाता है जबकि दुर्गा पूजा पूरे बंगाल में हर्षोल्लास के साथ मनायी जाती
है।ऐसे ही ओणम भी दक्षिण भारत में मनाया जाने वाला एक क्षेत्र विशेष है जो कि केरल
में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है।जितना उत्तर भारत में दीवाली का महत्व होता
है उतना ही ओणम केरल का प्रमुख त्यौहार हैं।
एक पौराणिक कथा
है महाबलि नाम का एक राजा केरल में राज्य करता था।वह एक आदर्श राजा थे। उनके शासन
में प्रजा सुखी थी। वे अपनी प्रजा से बहुत प्यार करते थे।वे न्यायप्रिय राजा थे।
उनके राज्य में छोटे-बड़े का भेदभाव नहीं था।सभी जगह सुख और समृद्धि थी।देवताओं से
उनकी लोकप्रियता देखी नही गयी। और उन्होनें एक षड़यंत्र रचा।राजा इन्द्र के कहने पर
विष्णु ने वामन अवतार लिया। वह बा्रह्मण का भेेष बनाकर राजा बलि के पास गए।तपस्या
करने के लिए राजा से तीन पग जमीन माँगी।राजा बलि तो पहले से दानी थे।अतः बलि ने
बिना सोचें समझे ही ब्राह्मण को हाँ कर दी और कहा कि जहाँ से वह चाहे तीन पग जमीन
ले ले। तब भगवान विष्णु ने विराट रूप धारण कर लिया। एक पग में भू लोक और दूसरें पग
में स्वर्ग लोक नाप लिया।राजा बलि अपने वचन के पक्के थे। अतः अपना वचन पूरा करने
के लिए उन्होंने अपना सिर विष्णु के आगे कर दिया।अब विष्णु ने बलि से सबकुछ ले
लिया।अतः उनको पाताल लोक में रहने का आदेश दिया।और उन्हें एक वर माँगने की अनुमति
दी। राजा बलि अपनी प्रजा को बहुत चाहते थे। अतः उन्होंने वरदान माँगा कि,उन्हें वर्ष में एक बार अपनी प्रजा के सुख-दुःख
को देखने का अवसर दिया जाए। महाबलि की प्रार्थना स्वीकृत हुई।
अतः कहते है कि
हर वर्ष श्रावण मास के श्रवण नक्षत्र में राजा बलि अपनी प्रजा को देखने आते है।
श्रवण नक्षत्र को मलयालम भाषा में ‘ओणम‘ कहा जाता है।इस दिन प्रजा अपने राजा की बहुत
श्रद्धा से प्रतीक्षा करती है। उस दिन वहाँ सुख और शान्ति का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत
किया जाता है जिससे राजा बलि को यह लगे कि उनकी प्रजा सुखी और प्रसन्न है। इस अवसर
पर धरती को सजाया जाता है।रंगोली बनायी जाती है और रंगोली से सजी धरती पर विष्णु
और राजा बलि की प्रतिमाएँ स्थापित की जाती है। ओणम पर भगवान विष्णु के साथ-साथ
राजा बलि की पूजा भी की जाती है।लोग नए-नए वस्त्र धारण करते है। गीत-संगीत तथा विभिन्न
प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। मंदिरों में उत्सव होते
है। ओणम के अवसवर पर नाव दौड़ तथा हाथियों का जुलूस निकाला जाता है।
राजा महाबलि
लोगों के आदर्श थे। वह दानी थे। इसलिए ओणम के अवसर पर धनी लोग निर्धन लोगों को
खुलकर दान देते है। ओणम के दिन लोक नृत्य भी होते है। कथकली नृत्य केरल का
लोकप्रिय खेल है। लड़कियां सफेद साड़ियां पहनती है। और बालों में फूलों की वेणियां
सजाकर नाचती है। ओणम का त्योहार सभी धर्मों के लोगो द्वारा परस्पर प्रेम और
सोहार्द्र से मनाया जाता है।
ओणम
Onam
निबंध नंबर :- 01
भारत में समय-समय पर विभिन्न पर्वो का आयोजन किया जाता है। कृषिप्रधान देश होने के कारण यहाँ के जन-जीवन का हर्ष व उल्लास प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से कृषि से जुड़ा है। ओणम भी एक ऐसा ही पर्व है। यह त्योहार केरल राज्य में श्रावण मास में हर्षपूर्वक मनाया जाता है। केरल वासी नव वर्ष का आरंभ भी ओणम से ही मानते हैं।
माना जाता है कि ओणम का त्योहार महाबलि नामक सम्राट से संबंधित पौराणिक कथा पर आधारित है। श्रीमद्भागवत के अनुसारप्राचीन काल में महाबलि नामक एक पराक्रमी सम्राट हुए। उन्हें अपनी दानशीलता पर घमंड हो गया था। महाबलि के शासन में जनता प्रसन्न थी। देवराज इंद्र से महाबलि का बढ़ता प्रभाव देखा न गया। उन्होंने विष्णु की। सहायता ली और महाबलि को समाप्त करने का षडयंत्र रचा।
एक दिन भगवान विष्णु ने ब्राह्मण का रूप धारण किया और परीक्षा हेतु राजा महाबलि के पास पहुंच गए। उन्होंने महाबलि से तीन पग भूमि देने की याचना की। महाबलि इस दान को अत्यंत तुच्छ समझकर मुसकराए। तथा उन्होंने भूमि दान में देने के लिए अपनी स्वीकृति दे दी। तब विष्णु ने विराट रूप धारण कर लिया। उन्होंने पहले कदम में पूरी धरती, दूसरे। कदम में आकाश को नाप लिया। तीसरा कदम रखने के लिए महाबलि ने अपना शरीर प्रस्तुत कर दिया। इस पर भगवान विष्णु ने उसके सिर पर पैर रखकर उसे पाताल भेज दिया। महाबलि ने पाताल जाने से पहले यह वर माँगा कि उन्हें वर्ष में एक बार अपनी प्रजा से मिलने की अनुमति दी जाए। केरलवासियों का मानना है कि ओणम के दिन महाबलि अपनी प्रजा को देखने अवश्य आते हैं । अपने राजा महाबलि का हर्ष और उल्लास से स्वागत करने के लिए केरलवासी ओणम का आयोजन करते हैं।
सावन के महीने में यह त्योहार अत्यंत धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार हर वर्ग के लोग अपने दुख-तकलीफ़ भूलकर खुशी से मनाते है। प्रकति की हरियाली भी ओणम की धूमधाम में चार चाँद लगा देती है। सावन के महीने में पूरे दस दिन तक यह पर्व चलता है। श्रवण नक्षत्र के दिन हर घर के आंगन में रंग-बिरंगे फूलों की रंगोली तैयार की जाती है।
ओणम के दिन घरों के आंगन को लीपा जाता है फिर लड़कियाँ टोकरी लेकर फूल चुनने चली जाती है। घर-घर के आंगन में सुंदर रंगोली सजाई जाती हैं। इन दस दिनों में प्रतिदिन रंगोली के आकार तथा फूलों की संख्या में वृद्धि होती जाती है। बड़ी रंगोली 'पक्कम' की सुंदरता देखने लायक होती है।
ओणम के दिन घर का मुखिया सबको नए वस्त्र देता है। इस दिन छोटे बच्चों को पीले वस्त्र पहनाए जाते हैं। यह पर्व वसंतोत्सव-सा जान पड़ता है। घर का हर सदस्य ओणम के विभिन्न कामों में जुट जाता है। कोई घर लीप रहा होता है तो कोई फूलों से सज्जा करता है, कोई विष्णु और महाबलि की मूर्तियाँ सजाने में जुट जाता है।
ओणम के दिन विष्णु तथा महाबलि की मूर्तियों को स्नान कराकर उन्हें सजाया जाता है। चावल के स्वादिष्ट पकवान से इन मूर्तियों का भोग लगाया जाता है। घरों में विभिन्न प्रकार के व्यंजन पकाए जाते हैं। इनमें खीर, केले के व्यंजन, कढ़ी, तरह-तरह के चावल के व्यंजन प्रमुख हैं। इस दिन प्रीति भोज का भी आयोजन किया जाता है। माना जाता है कि । महाबलि इस भोज को देखकर संतुष्ट और प्रसन्न होते हैं।
ओणम हर्षोल्लास का पर्व है। इस अवसर पर खेल-तमाशे तथा लोकनृत्यों का आयोजन भी किया जाता है। ओणम का प्रमुख आकर्षण है, नौका दोड़। 'आरन्मुला' नामक स्थान पर नावों की प्रतियोगिता देखने के लिए हजारों लोग एकत्रित हो जाते हैं। जब नाविक नौका गीत गाते हुए नियत ताल पर डांड चलाते हैं, तब उनका व दर्शकों का उत्साह देखते ही बनता है। इस दिन केरलभर में सुप्रसिद्ध नृत्य कथकलि का आयोजन भी होता है. महिलाएं व लड़कियां व तरह-तरह के नृत्य व खेलों क आयोजन करती है.
इस प्रकार ओणम का पर्व पकवान, नृत्य, संगीत, खेल-तमाशे से संपन्न होता है तथा नववर्ष के जोश से भरे केरलवासी फिर से अपनेअपने कार्यों में जुट जाते हैं।
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