रोमांचक बस यात्रा 
Romanchak Bus Yatra 

वर्षा का मौसम था। चारों तरफ हरियाली छाई हुई थी। रविवार के दिन छात्रावास के सभी छात्रों ने वन-विहार कर निश्चय किया। संरक्षक ने अनुमति दे दी और साथ चलने के लिए तैयार भी हो गये। हमने मिलकर भोजन आदि की व्यवस्था कर ली। बस मँगवा ली गई। हम सब भोजन और वाद्य यंत्र लेकर बस में बैठ गये।

बस गंतव्य पर पहुँचने के लिए रवाना हो गई। पावस ऋतु थी इसलिए नन्हीं-नन्हीं फुहार पड़ रही थी। कुछ ही देर में बस विंध्यावाटी पहुँच गयी। वहाँ की मनोहर छटा देखकी मल खिल गया। मंद-मंद शीतल हवा के झोंके चल रहे थे। कुछ ही समय में बादल छँट गये। और सूरज निकल आया। बरसाती नाले और झरने अपनी कल-कल ध्वनि से एक अपूर्व संगीत पैदा कर रहे थे। पर्वत मालाएँ पर हरियाली छाई हुई थी। यह दृश्य बहुत ही मनोहारी था।

सर्वप्रथम हमने वन-विहार किया। सबसे पहले हम अष्टभुजा पर्वत पर पहुँचे। कई सौ सीढ़ियाँ चढ़ने के बाद हम अष्टभुजा देवी के दर्शन पा सके। वहाँ पर एक सुन्दर सरोवर देखा। एक स्थल पर पानी पहाड़ के नीचे से आकर एक कुण्ड में एकत्रित हो रहा था। यह सीता कुण्ड कहलाता है। इसका जल शीतल तथा स्वास्थ्यवर्धक था। पर्वत शिखर पर गंगा की ओर देखा तो रजत की एक क्षीण रेखा सी दिखाई दे रही थी। दूर-दूर तक मैदान दिखाई दे रहा था। और उसमें पेड़-पौधंे और गाँव दिखाई दे रहे थे। हमने वहीं पर मन्दिर के पास दरी बिछा ली। और वहीं पर सबने मिलकर भोजन बनाया। सरोवर में स्नान करने के बाद सभी ने गरम-गरम खाने का आनन्द लिया। यह दिन बहुत ही आनन्दमय था।

थोड़ी देर विश्राम करने के बाद संगीत का कार्यक्रम चला। कुछ ही देर में सारा वातावरण संगीतमय हो गया। जंगल में मंगल होने वाली सच प्रतीत होने लगी। पास ही के चरवाहें भी वहाँ आ गये। हमारे अनुरोध करने पर वे भी संगीत के कार्यक्रम में रूचि ली। उन्होंने अपनी जातीय गजलें और गीत सुनायें। उन्हें सुनकर सभी को बहुत आश्चर्य हुआ और उनकी रसिकता का पता भी चला। अब शाम होने वाली थी हमने अपना सामान समेटा और बस में रखा।

इस प्रकार से जंगल में मंगल मनाकर हमारी बस छात्रावास की ओर बढ़ गई। हम सभी बहुत खुश थे। रास्तें में भी हम वन-विहार की बातें ही कर रहे थे। रात को हम आठ बजे तक छात्रावास पहुँच चुके थे। हम आज भी उस दिन को याद करते है तो चेहरा खिल उठता है।