पुस्तकालय के लाभ
Vyavam ke Labh
पुस्कालय का
शाब्दिक अर्थ होता है पुस्तकों का घर। पुस्तकालय तीन प्रकार के होते हैं-
ऽ व्यक्तिगत
ऽ वर्गगत और
ऽ सार्वजनिक
व्यक्तिगत
पुस्तकालयों के अन्तर्गत लेखक, वकील, डाॅक्टर, अध्यापक, राजनीतिज्ञ आदि
के पुस्तकालय आतेे है। वर्गगत पुस्तकालयों का मालिक कोई संस्था,संप्रदाय अथवा कोई वर्ग होता है। जबकि
सार्वजनिक पुस्तकालय संस्थागत या राजकीय होते हैंै। इनका प्रयोग कोई भी कर सकता
है।
हमारे देश में
पुस्तकालयों का इतिहास बहुत प्राचीन है। प्राचीन काल में राजा जनक, अशोक, चन्द्रगुप्त, चाणक्य, युधिष्ठिर आदि के व्यक्तिगत पुस्तकालयों का
वर्णन मिलता है। मुगलकाल में भी पुस्तकालयों का प्रचलन रहा है। दाराशिकोह द्वारा
निर्मित एक पुस्तकालय कश्मीरी गेट में था। पण्डित जवाहरलाल नेहरू का पुस्तकालय तो
अभी भी तीनमूर्ति भवन पर ‘नेहरू संग्रहालय‘
है। इसी तरह से विश्व विद्यालय नालंदा का
पुस्तकालय, नागार्जुनी कोंडा का जैन
पुस्तकालय और बनारस के देवालयों के विशाल पुस्तकालय विश्व प्रसिद्ध है। वर्तमान
में दिल्ली पब्लिक लायब्रेरी, नागरी प्रचारिणी
सभा पुस्तकालय और विश्वविद्यालयों के पुस्तकालय आादि सार्वजनिक पुस्कालयों के
उदाहरण है।
पुस्तकालय ज्ञान
प्राप्त करने का सबसे अच्छा साधन होता है। पुस्कालय के शांत वातावरण में अध्ययन
करके व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करता है। विभिन्न विषयों पर अपनी-अपनी रूचि की
पुस्तकें पुस्तकालयों से ली जा सकती है। इसके अलाव प्राचीन ग्रन्थों को भी इन
पुस्तकालयों में प्राप्त किया जा सकता है। इनका अध्ययन करके हम अपना ज्ञान बढ़ा
सकते है। इनमें विभिन्न भाषाओं में विभिन्न देशों के विभिन्न विद्वानों के ग्रंथ
उपलब्ध होते है। इनके अध्ययन से समय के सदुपयोग के साथ-साथ मनोरंजन भी होता है।
पुस्कालय हमारे शैक्षिक, सामाजिक, मानसिक, सांस्कृतिक और आत्मिक विकास में सहायक होते है। महात्मा
गाँधी के अनुसार हर घर में एक पुस्तकालय अवश्य होना चाहिए। बाल गंगाधर तिलक
पुस्तकालय के बारें में कहा है कि ‘‘मैं नरक में भी उत्तम पुस्तकांे का स्वागत करूंगा,क्योंकि जहाँ पुस्तकें होंगी,वहीं स्वर्ग बन जायेगा।‘‘
पुस्तकालयों का
महत्त्व न समझ पाने तथा निर्धनता की अधिकता के कारण भारत में आज भी इनकी बेहद
दीन-हीन दशा है। विद्यालयों तथा सार्वजनिक पुस्तकालयों में अव्यवस्था, पुस्तकों की दुर्दशा तथा असुविधाएँ इस बात का
प्रमाण है। शिक्षा के प्रसार, योग्य सेवा भाव,
सरकारी अनुदान एवं अच्छे साहित्य के चयन से ही
हम पुस्तकालयों की स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।
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