चाय की आत्म-कथा
Tea ki Atmakatha
मैं आपको अच्छी
लगती हूँ ना, जी हाँ मैं हूँ
चाय। मुझे आप दिन में कई बार पीते है। मैं सबकी पसंद हूँ। किन्तु किसी ने मुझसे
मेरे दिल का हाल नहीं जानना चाहा। आज मैं आपसे अपनी आत्म-कथा कहना चाहती हूं। आप
मेरे चाहने वाले हो, आप ही मेरी कहानी
नहीं सुनोगे तो कौन सुनेगा।
मेरा घर आसाम में
है। वहां मैं पैदा हुई हूं। चाय के पौधे पहाड़ो पर पैदा होते है। मुझे बहुत पानी की
आवश्यकता होती है। किन्तु मुझे पानी में रहना अच्छा नहीं लगता। पानी से मेरे पौधों
की जडें गलने लगती है। भारी वर्षा से नई कोंपले आ जाती है। उसके बाद कोंपले चुनने
के लिए मजदूर पहुंच जाते है। चाय के खेतों में पुरूषों की अपेक्षा स्त्रियां अधिक
काम करती हैं वे मेरी पत्तियों को तोड़कर अपनी टोकरियों में डालती है। और इस तरह
मुझे इकट्ठा किया जाता है। यह हमारा प्रारंभिक रूप होता है। हमारे इस रूप से हमें
कोई भी नहीं पहचान सकता। हमें एक लम्बी प्रक्रिया के लिए इकट्ठा किया जाता हैं
ताकि उससे सुखाकर वास्तविक स्वरूप प्रदान किया जा सके।
हमें लगता है कि
हमारा प्राकृतिक स्वरूप समाप्त हो रहा है। हम धरती और प्रकृति से दूर होते जा रहे
है। हमारी इच्छा होती है। कि हम भाग चले। किंतु कहां और कैसे। हमारे बस में तो कुछ
भी नहीं है। हम तो मात्र बेबस होकर रह जाती है। सुखाने भर से हम बहुत दुखी है।
किन्तु हमें पता चला कि यह दुख तो कुछ भी नहीं है। हमारे भारी कष्ट की घड़ी तो आने
वाली थी। उस समय हम बहुत पीड़ा से चिल्लाने लगते है। जब हमें भूना जाता हैं हमारा
विलाप देखने योग्य था। ठंड और बरसात से हम पलने वाली थी।गर्मी तो हमारे लिए
कष्टप्रद ही होती है। हमारी पुकार कौन सुने। मनुष्य के स्वार्थ का शिकार तो हम
पहले ही हो रही है।
हम कराहती रही और
हमें भूना जाता रहा। मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए बकरे और मुर्गे को भी हलाल करता
है वैसी ही स्थिति भी हमारी ही है। मुझे भूना जा चुका था। मैं अपने वास्तविक रूप
में पहुंच गई। गुणवत्ता के आधार पर हमारी किस्में निर्धारित की गई। हमारी पत्तियां
जितनी कोमल होती है। चाय उतनी ही स्वादिष्ट बनती है। हमें पेटियों में बंद करके
देश विदेश में भेजा जाता हैं मैं अपनी कम्पनी के गोदाम से निकलकर मोहल्ले की दुकान
में पहुंच गई। वहां से मुझे आपका लड़का आपके घर ले आया। मुझे कागज के पैकेट में से निकालकर
डिब्बे में डाल दिया। आज उबलते पानी में मुझे डालने के लिए डिब्बा खोला गया तो मैं
बहुत खुश हुई मैंने सोचा कि मुझे अपनी कहानी बताने का मौका मिल गया। लेकिन मुझे यह
देखकर दुख भी बहुत हुआ कि, आपकी पत्नी को तो
चाय बनाना ही नहीं आता। उसने मुझे पानी में डाल दिया और बहुत देर तक उबाल कर और
फिर कप में डालकर आपको दे दिया। चाय बनाने की यह विधि गलत है। उबलते पानी में चाय
डालकर आग से उतार लेना चाहिए। और कुछ समय तक पतीले में ढ़ककर रखना चाहिए। उसके बाद
जरूरत के अनुसार दूध और चीनी डालकर प्रयोग करे। तो स्वाद और खुशबू दोनो का मजा
आएगा। याद रखे राज की बात बता रही हूँ।
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