मेरे जीवन का लक्ष्य 
Mere Jeevan ka Lakshya 

जे व्यक्ति चांदी प्राप्त करने के बारे में सोचता है वह सोना प्राप्त करने के काम नहीें कर सकता । इसलिए जीवन का लक्ष्य हमेशा बड़ा ही होना चाहिए। यह संसार कर्मभूमि है और मानव योनि कर्म योनि है। इस संसार में सभी को कुछ न कुछ कार्य करना ही पड़ता है। यह कर्म किसी लक्ष्य को समर्पित होता है बिना लक्ष्य के कर्म वास्तव में कर्म नहीं होता । अतः कर्म करने से पहले लक्ष्य निर्धारित कर लेना चाहिए।

अब प्रश्न यह है कि जीवन का लक्ष्य क्या होना चाहिए ? कर्म किस दिशा अथवा लक्ष्य को समर्पित होने चाहिए ? आज संसार में सभी अधिक से अधिक पैसा कमाना चाहते हैं। धन के लिए लोग उचित-अनुचित कोई भी मार्ग अपनाने को तैयार है। धर्म और नैतिकता के सिद्धान्त उनके लिए पुराने पड़ गये है।पैसा कमाने की होड़ सी लग गई है तो क्या पैसा कमाना ही जीवन का लक्ष्य है ? क्या पैसे कमाने से सुख और शान्ति प्राप्त हो जाती है ? क्या पैसे से वर्तमान और भविष्य संवर जाते हैं ? शायद नहीं कदापि नहीं। यह पैसा व्यक्ति को नरम बिस्तर तो दे सकता है किन्तु नींद नहीं। पैसा व्यक्ति को केवल भोग विलास की वस्तुएँ तो दे सकता लेकिन मन की शान्ति नहीं। पैसे वालों को प्रायः दुःख में देखा गया है। वे अधिक अशान्त रहते है। यदि पैसा तथा सांसारिक वैभव में सुख था तो स्वामी दयानंद,स्वामी रामतीर्थ तथा भगवान महावीर ने घर क्यों छोड़ा ? भगवान राम ने राजपाट छोड़कर वनवास जाना क्यों स्वीकार किया ? अतः यह सर्वविदित है कि पैसा ही जीवन का एकमात्र लक्ष्य नही है। यह साधन मात्र तो हो सकता है लेकिन जीवन का लक्ष्य नहीं।फिर जीवन का क्या लक्ष्य हो सकता? ऊँचा पद ? लेकिन ऊँचा पद भी पैसा कमाने की तरह ही एक साध नही है।सत्ता अथवा शक्ति जीवन का लक्ष्य नही हो सकती क्योंकि सत्ता मनुष्य को भ्रष्ट बनाती है। सत्ता से वह दुर्गुण तथा व्यसनों की तरफ जाता है और पतन की ओर ले जाता है। अर्थात् जीवन का लक्ष्य पैसा ,पद सत्ता या शक्ति नही है। हम प्रतिदिन ईश्वर से प्रार्थना करते है कि वह हमें शक्ति प्रदान करे। हम अच्छे कर्म करें।हमारा यश और कीर्ति चारों तरफ फैले। जब मैं ध्यान से देखता हुँ तो मुझे इसी प्रार्थना में ही जीवन का लक्ष्य दिखाई देता हैं। अच्छे कर्म करने के लिए परामात्मा की सहायता और अनुकूल वातावरण चाहिए। तरह-तरह के धंधों हैं जिनसे बहुत पैेसा कमाया जा सकता है।किन्तु धंधे में झूठे और बेईमानी के बिना सफलता मिलना कठिन है।

अच्छे पद व्यक्ति को भी लोग ईमानदारी से कार्य नही करने देते। भ्रष्टाचारी लोग हमेशा चाहते है कि ईमानदार भी उनकी तरह ही भ्रष्ट हो।इसीलिए कुछ लोग अपने स्वार्थ के लिए तरह-तरह के प्रलोभन देते है। मनुष्य तो जन्म से ही दूर्बल है।कभी भी पथ भ्रष्ट हो सकता है।मनुष्य तो स्वभाव से लालची है।कायर है और आत्मिक तौर पर कमजोर है। अतः आदमी कार्य ऐसा होना चाहिएजो केवल ईमानदारी से रहने के ही अवसर प्रदान करे। पढ़ने तथा तढ़ाने में मेरी रूचि है। विद्या पढ़कर ज्ञान बढ़ता है। ज्ञान प्राप्त होने पर सुख की अनुभूति होती है। मैं अपने ज्ञान को प्राप्त और उसे प्रेषित करना चाहता हुँ।किसी ने कहा है कि एक अच्छा अध्यापक हजार पादरियों के बराबर मूल्यवान होता है। अतः मैं एक अध्यापक बनकर विद्या दान करना चाहता हुँ। अच्छे कमे करके आदर्श मानव बनूंगा और दूसरों को भी ऐसा बनाने में सहायता करूंगा।अच्छे संस्कारों के प्रेषण तथा विद्या दान से उत्तम कोई कार्य नहीं है। कहा भी जाता है कि विद्वान की कलम की स्याही शहीद के खून से भी अधिक पवित्र होती है। यह व्यवसाय मुझे अच्छे कर्म करके यश और कीर्ति अर्जित करने का अवसर प्रदान करेगा।अध्यापक बनने के लिए अच्छा शैक्षणिक रिकाॅर्ड होना चाहिए।इसे प्राप्त करना कठिन है।अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मुझे कठोर परिश्रम करना होगा। मैं अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सबकुछ करूँगा।