विधानपरिषद् 
Vidhanparishadh

राज्य असेम्बली में दो सदन होते हैं-पहला विधानसभा जो कि निम्न सदन है और जो जनता द्वारा निर्वाचित होता है तथा दूसर विधानपरिषद् । संविधान के अनुच्छेद 171 में विधानपरिषदों के गठन के सम्बन्ध में प्रावधान है।उत्तर प्रदेश की विधानपरिषद् का गठन निम्न प्रकान से होता है-

उत्तर प्रदेश विधानपरिषद् की कुल सदस्य संख्या 99 है। कुल सदस्यों में से 1/3 सदस्य राज्य की नगर-पालिकाओं,जिला बोर्डो तथा अन्य स्थानीय संस्थाओं द्वारा चुने जाते है। कुल सदस्यों के 1/12 सदस्य राज्य के माध्यमिक तथा उससे ऊपर के स्तर की शिक्षा में पढ़ाने वाले अध्यापकों द्वारा निर्वाचित होते है।

कुल सदस्यों के 1/3 सदस्य यु. पी. की राज्य विधानसभा के द्वारा के द्वारा निर्वाचित होते है।

शेष को उत्तर प्रदेश के राज्यपाल द्वारा विशेष ज्ञान, साहित्य, कला, विज्ञान,सहकारी आन्दोलन और समाज सेवा के आधार पर विधानपरिषद् में मनोनीत किया जाता है।

विधानपरिषद् के कार्य व शक्तियाँ-
ऽ साधारण विधेयक राज्य विधायिका के किसी भी सदन में प्रस्तावित किये जा सकते हैं और इन विधेयकों का दोनों सदनों में पारित होना जरूरी हैै। यदि विधानसभा से पारित हो जाने के पश्चात् विधानपरिषद् उसे अस्वीकृत कर दे या ऐसे संशोधन पारित करे,जो विधानसभा को मजूंर न हो, या परिषद् के सामने रखे जाने के तीन महीने बाद तक उसे पारित न करे तो विधानसभा उस विधेयक को दुबारा पारित करके विधानपरिषद् के समक्ष प्रस्तुत करती है। यदि फिर से विधानपरिषद् उसे वापस अस्वीकृत कर दे,या ऐसे संशोधन करे जो विधानसभा को स्वीकार्य न हो अथवा विधेयक को एक महीने तक पारित न करे तो विधेयक परिषद् से पारित हुए बिना ही दोनो सदनों में पारित मान लिया जाता है।अतः विधानपरिषद् किसी भी विधेयक को केवल 4 माह तक रोक सकती है।
ऽ कार्यपालिका से सम्बन्धित कार्य- विधानपरिषद् के सदस्य मन्त्रिपरिषद् के सदस्य हो सकते है। विधानपरिषद् प्रश्नों , प्रस्तावों तथा वाद-विवाद के आधार पर मन्त्रिपरिषद् को केवल नियंत्रित कर सकती है।लेकिन उसे भंग करने का अधिकार केवल विधानसभा के पास ही है।

ऽ वित्त सम्बन्धी कार्य- वित्त सम्बन्धी मामलों में विधानपरिषद् के पास कोई शक्ति नही है। धन विधेयक परिषद् में प्रस्तुत नही किये जाते है। विधानसभा से पारित होने के बाद धन विधेयक विधानपरिषद् के पास सिफारिशों के लिए भेजा जाता है।लेकिन विधानपरिषद को उसे 14 दिनों में लौटाना पड़ता है। न लौटाने पर विधेयक स्वतः ही पारित मान लिया जाता है।विधानपरिषद् की सिफारिशों को मानना या न मानना विधानसभा पर निर्भर करता है। अतः विधानपरिषद् किसी भी धन विधेयक को केवल 14 दिनों तक रोक सकती है इसके अलावा उसके पास कोई अधिकार नही है।