यदि मैं प्रधानाध्यापक होता 
Yadi mein Pradhanmantri Hota 

हमारे स्कूल के प्रधानाध्यापक का नाम श्री रामनायण जी है। वे एक कुशल प्रशासक तथा सिद्धांतवादी व्यक्ति है।विभाग उनकी प्रशंसा करता है। उनके अधीनस्थ अध्यापक तथा अध्यापिकायें उनसे डरते है।उन्हें देखकर मेरे मन में भी प्रिंसिपल बनने की अभिलाषा जागती है। मेरे मन में भी विद्यालय के सुधार से सम्बन्धित कुछ योजनाए है।यदि मैं प्रधानाध्यापक होता तो उन सभी योजनाओं को लागू करता जो स्कूल तथा विद्यार्थियों के हित में होती।लेकिन सबसे पहले मैं उन सभी अच्छी आदतों को अपनाता जिन्हें मैं विद्यार्थियों तथा अध्यापको में देखना चाहता हूँ।

मैं समय का पाबन्ध तथा अनुशासन प्रिय बनता।समय पर उठकर ईश्वर की आराधना करके सबसे पहले विद्यालय पहुँच जाता।मैं पूरी स्कूल का निरीक्षण करता और देखता कि स्कूल की सफाई अच्छे से हुई है या नही।विद्यार्थियो की कुर्सिया साफ है या नहीं, उन पर धूल तो नही है।पेशाबघर अच्छी तरह से धुले है या नही।सफाई कर्मचारियों को सर्तक करता और उनमें स्कूल की नियमित और अच्छी तरह से सफाई करने की आदत डालता।मैं स्कूल को इतना साफ रखता कि कहीं भी मच्छर,मक्खी या गन्दगी दिखाई न दे।स्कूल के समय गेट पर खड़ा हो जाता और यह देखता कि सभी विद्यार्थी निर्धारित पोशाक में है या नही । और उनकी वर्दी साफ है या नही।बच्चे नहाकर आये है, उन्होनें ब्रश किया है, नाखून कटे हुए है या नही।यदि मैं पाता कि कोई विद्यार्थी ऐसा नही कर रहा है तो मैं उसे प्यार से समझाता। मैं किसी भी बच्चे को मारता नही।मैं कभी भी किसी पर गुस्सा नही करता। सहिष्णुता ही मेरा सबसे बड़ा गुण होता। मैं विद्यार्थियों के बैठने के लिए डेस्क और कुर्सियों का प्रबन्ध करता। मैं प्रयोगशाला के लिए हर वस्तु नयी खरीदता और उसे हर प्रकान से आधुनिकतम बनाता।विज्ञान की शिक्षा के लिए प्रयोगशाला का हर प्रकार से आधुनिक होना आवश्यक है।
हमारे विद्यालय के पुस्तकालय में बहुत कम पुस्तकें हैं।कई वर्षो से पुस्तकों पूर्ति नही हुई है। मैं पुस्तकालय के लिए नयी पुस्तकें खरीदता और विद्यार्थियों की अच्छी पुस्तकें पढ़ने की आदत डालता। निर्धन तथा मेधावी छात्रों के लिए छात्रवृत्तियो की व्यवस्था करता । तथा ऐसे कार्यों के लिए धन की व्यवस्था के लिए समाजसेवी संस्थाओं तथा दानी लोगों से सहायता प्राप्त करता। शारीरिक शिक्षा को बालकों के लिए अनिवार्य करके उनके शारीरिक विकास में मैं आवश्यक सहयोग देता। मैं अपने स्कूल में क्रिकेट, हॉकी  तथा फुटबाल आदि खेलों की टीमें तैयार करता। यदि मैं प्रधानाध्यापक होता तो मेरा स्कूल, मेरे अध्यापक तथा मेरे विद्यार्थी भारत में ही नही बल्कि पूरे विश्व में आदर्श।