विज्ञान: वरदान
या अभिशाप
Vigyan Vardan ya Abhishap
धूप-छावँ,
रात-दिन की तरह हर कार्य के दो पहलू होते है।
इसी तरह ज्ञान-विज्ञान के भी दो पहलू देखे जा सकते है। हमारे वर्तमान जीवन में हर
कार्य में हम विज्ञान के अच्छे और बुरे दोनो पहलू देख सकते है। उदाहरण के लिए हम
जिस में बस में सफर करके अपने गंतव्य पर समय पर पहुुँच जाते है यह विज्ञान का
वरदान ही तो है। लेकिन दूसरी ओर उसी बस से निकलने वाला धुआँ हमारे पर्यावरण को
दूषित कर रहा है । यह हमारे लिए किसी अभिशाप से कम नही है।
वरदान रूप में एक
ओर बिजली रात के अँधेरे को भी दिन की तरह रोशनी से भर देेती है तो दूसरी और यही
बिजली किसी बेचारे को छूकर उसकी मौत का कारण भी बन जाती है तो यह किसी अभिशाप के
समान ही प्रतीत होती है। अतः यह स्पष्ट है कि जिस प्रकार से अच्छाई के साथ हमेशा
बुराई होती है उसी प्रकार से विज्ञान के वरदान है तो अभिशाप भी है। सच तो यह है कि
विज्ञान की खोज और आविष्कार मानव कल्याण के लिए ही किये गये थे। और विज्ञान ने
मानव को इतना कुछ दिया है कि मानव का जीवन आज पूर्ण रूप से परिवर्तित हो गया है।
विज्ञान के कारण ही आज मानव धरती ही नही बल्कि वायुमण्डल, अन्तरिक्ष, जल और दूसरे
ग्रहों का भी स्वतंत्र होकर विचरण कर रहा है। वह घर पर बैठे-बैठे किसी भी स्थान पर
रहने वाले व्यक्ति से बात कर सकता है। किसी भी स्थान के दर्शन कर सकता है।विज्ञान
की सहायता से वह रक्त जमाने वाली सर्दी में रह सकता है तो झुलसा देने वाली गर्मी
में भी रह सकता है। ये सब आधुनिक विज्ञान के वरदान ही तो है।
लेकिन दूसरी तरफ विज्ञान
की सहायता से बनायी गई वस्तुएँ एक ही पल में लाखों लोगो के प्राण भी ले सकती है।
इसके अलावा आज जो भयानक अस्त्र-शस्त्र बनाये जा रहे है, जैविक और रासायनिक शस्त्रों का निर्माण किया जा रहा है,
युद्ध के नये-नये तरीके विकसित किये जा रहे है,
उनसे मानव ही नही अपितु वनस्पितियां , नदियाँ, पहाड़ आदि का क्षण भर में नामों निशान मिटाया जा सकता है।
अतः यह स्पष्ट हो जाता है कि अपनी खोजों से विज्ञान वरदान के रूप में मनुष्य को
जितना दे रहा है तो उससे कही अधिक तेजी से अभिशाप बनकर मनुष्य का सर्वस्व छीन भी
सकता है। इसलिए विज्ञान वरदान है तो उससे कहीं अधिक अभिशाप है , इसमें कोई संदेह नही है।
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