कृत्रिम वर्षा 
Artificial Rain

जादूगर के जादू देखते-देखते अभी हम उठने ही वाले थे कि अचानक यह वर्षा कैसी? यह सचमुच की वर्षा से मिलती-जुलती बरसात थी। सभी दर्शकगण इस वर्षा से बचने के लिए इधर-उधर भागने लगे और थोड़ी ही देर में यह बरसात थम भी गई।


प्राचीनकाल से ही मनुष्य की यह महत्त्वाकांक्षा रही है कि वह जब चाहे, जहाँ चाहे-वर्षा उत्पन्न करने की क्षमता प्राप्त कर सके। आपने खिड़की या दरवाजे के छिद्रों से आती हुई प्रकाश किरणों की रेखा में चमकते धूल के कण देखे होंगे। इसी प्रकार वाष्प के कण वायुमंडल में सदा निलंबित रहते हैं। साधारण अवस्था में बादलों में वाष्प कण अपेक्षाकृत बड़े और सैकड़ों गुना छोटे तथा सघन होते हैं; किंतु ये वाष्प या मेघ कण इतने सूक्ष्म होते हैं कि हवाओं के प्रतिरोध के विपरीत पृथ्वी पर वर्षा के रूप में गिर नहीं पाते। जब कभी मेघ कणों को ऐसी सुविधा प्राप्त होती है कि वे एक-दूसरे से मिलकर या किसी अन्य प्रणाली द्वारा बूंदों के आकार में यथेष्ट बड़े हो जाएँ, तो वे भार के कारण भूमि की ओर बरसने लगते हैं। इस सुविधा के अभाव में बादल होते हुए भी हमें वर्षा से वंचित रह जाना पड़ता है। मेघ कणों की यथेष्ट आकार-वृद्धि ही वास्तव में वर्षा का कारण और इस वृद्धि के लिए सुविधा प्रदान कराना ही कृत्रिम वर्षा का सिद्धांत है। इस विधि को क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) कहते हैं। 

आज यह महत्त्वाकांक्षा मनुष्य ने पूरी कर ली है तथा इसी ज्ञान के सहारे जादूगर ने एक ओर से पानी की वाष्प और दूसरी तरफ से सिल्वर आयोडाइड, सिल्वर क्लोराइड या सोडियम क्लोराइड आदि रसायनों का छिड़काव कर दर्शकों के ऊपर कृत्रिम वर्षा कराकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। अत: यह कोई जादू नहीं बल्कि रासायनिक क्रिया का ही चमत्कार है।