ईद का त्यौहार
Eid ka Tyohar
प्रतिदिन के
संघर्ष से हमारा जीवन नीरस सा हो जाता है। ऐसे में पर्व और त्यौहार ही इस संघर्ष
से हमें मुक्ति दिलाते है। नई खुशियाँ लाते है और नई आशायें जगाते है। महापुरुषों
से जुड़ेे पर्वो पर हम उनका स्मरण करते है तथा उनके जीवन से प्रेरणा लेते है। ऐसे
अवसरों पर हम आत्म निरीक्षण करते है और उन्नति हेतु अतीत में की गई गलतियों का
दुबारा न करने का संकल्प लेते है। यदि पर्व और त्यौंहार न हो तो हमारा जीवन नीरस
हो जायेगा।
ईद भी उल्लास और
खुशियों का त्योहार है। इस यह त्यौहार मुस्लिम समुदाय द्वारा विशेष रूप से मनाया
जाता है। इस दिन सरकारी छुट्टी रहती है। मुसलमानों का यह सबसे पावन त्योहार है। यह
त्योहार भाई-चारे का प्रतीक है। सभी लोग इस दिन गले लगकर सभी पुराने वैर-भाव दूर
करके मित्र बन जाते है। इस दिन न कोई अमीर होता है न ही कोई गरीब।
इस्लाम धर्म की
स्थापना हजरत मोहम्मद साहब ने की थी। उन्होंने एक माह तक भूखे-प्यासे रहकर मक्का
की एक गुफा में तपस्या की थी। और इसके बाद कुरान शरीफ की रचना की थी। ईद को कुरान
शरीफ की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। इसी उक्त घटना की याद में हर मुसलमान
रोजा रखता है। यह एक माह रमजान का महीना कहलाता है। कहा जाता है कि रोजा रखने से
मन और शरीर पवित्र हो जाता है। रमजान के महीने के बाद जब चाँद दिखाई देता है तो
अगले दिन ईद के रूप में मनाया जाता है।
इस त्योहार का
पूरा नाम ईद-उल-फितर है। ‘फितर‘ का अर्थ है खाना-पीना और ईद का अर्थ है वापस
लौटना। एक महीने के रोजो के बाद खाना-पीना वापस शुरू कर दिया जाता है। इसलिए इस
त्योहार को ईद-उल-फितर कहते है।
ईद दो होती है।
एक तो ईद-उल-फितर है और दूसरी बकरीद है। बकरीद को ईद-उल-जुहा भी कहा जाता है। यह
ईद-उल-फितर के 2 माह और 9 दिन बाद आती है। इस दिन पहले ईद-उल-जुहा लगता
था। लेकिन अब इस परिपाटी को छोड़कर नमाज पढ़ने की परिपाटी शुरू कर दी गई है। कहते है
कि इस दिन अंहकार की बलि चढ़ाई जाती है। इसलिए इस ईद को बकरीद कहते है।
ईद का त्योहार
खुशी का त्योहार है बच्चे इस त्योहार का उत्सुकता से इंतजार करते है। इस दिन वे
ईदगाह जाने को तत्पर रहते है। इस त्योहार पर बच्चे नये-नये कपड़े पहनते है। और
घरवालों से पैसे लेकर इस अवसर पर आयोजित मेलो में जाते है। वहाँ खेल-तमाशों तथा
झुलों का मजा लेते हैं। चारों तरफ चहल-पहल होती है। बाजार भी सजे रहते है। चारों
ओर हर्ष और उल्लास छाये रहते है।
सवेरा होते ही
लोग ईदगाह पहुँच जाते है। सब एक साथ नमाज पढ़ते है और अल्लाह का शुक्रिया कहते है
कि उनकी कृपा से रोजे सफल हुए। और अनजाने में उनसे कोई भूल हो गई हो तो उसके लिए
उन्हें माफ कर दे।
यह भ्रातृभाव का
त्योहार है। यह कोशिश की जाती है कि यह त्योहार सब मिलकर मनाये। इसलिए सभी बैर
भावनाओ का भूलाकर अमीर-गरीब के फर्क को मिटाकर सब मिलकर ईद मनाते है। नमाज पढ़ते
है। और ईद मुबारक कहकर सब गले मिलते है।
ईद-उल-फितर में
नमाज पढ़ने के बाद मीठी सेवईयाँ खाई जाती है। और रोजो का सिलसिला समाप्त किया जाता
है। इसके बाद मिठाईयाँ और उपहार बांटे जाते है।
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