रेल यात्रा का
वर्णन
Rail Yatra ka Varnan
मैंने अपने मित्र
सुरेश के साथ दिसंबर माह में ‘हिमपात‘ देखने का मन बनाया। इसके लिये हमने शिमला जाने
को निश्चय किया। इस बार सर्दी भी बहुत तेज पड़ रही थी। ठंड होने के कारण परिवार
वालों ने जाने से रोकने की बहुत प्रयास किये, लेकिन हम नही रुके। हमने अपना सामार तैयार किया और स्टेशन
की ओर चल दिये। स्टेशन पर बहुत भीड़ थी। हम जैसे बहुत से सैलानी दिखाई दे रहे थे।
टी-स्टाॅल पर और भी अधिक चहल-पहल थी। लोग वहाँ खड़े होकर चाय का स्वाद ले रहे थे।
हम दोनों भी वहाँ गये और चाय पी।
ट्रेन के चलने
में अभी काफी समय था। कुली ने हमारा सामान भी अच्छे से लगा दिया था। लेकिन फिर भी
डिब्बे में भीड़ का सामना करना पड़ा। सर्दी का मौसम होने के बावजूद भी चेहरे पर
पसीने आ रहे थे। इतनी परेशानियों के बावजूद मन में एक विशेष ही उल्लास था। निश्चित
समय पर गार्ड ने हरी झण्डी दिखाई। ट्रेन चली और थोड़े ही समय में इसने अपनी सामान्य
गति पकड़ ली। कुछ देर ता गपशप करने के बाद हमें नींद आने लगी तो हमने सुरक्षित बर्थ
पर अपने बिस्तर लगा लिए। और कंबल ओढ़कर दोनों सो गये। कोई स्टेशन आने पर हम देख
लेते। रेलगाड़ी अब बहुत तेजी से अपनी मंजिल की ओर बढ़ रही थी। इसके बाद हमें नींद ओ
गई। अगली सुबह एक जगह पर देखा कि बिजली के छोटे-छोटे बक्से अपने आप ही खिसक रहे
थे। पूँछने पर पता चला कि चण्डीगढ़ कारखाने में आॅटोमैटिक क्रम द्वारा पत्थर ढ़ोये
जा रहे थे। कुछ समय पश्चात् ही हम कालका जी पहुँच गये। डिब्बे से उतरते ही सबसे
पहले हमने सर्दी से बचने के लिए चाय पी। सामने बहुत दूर तक ऊँचे-ऊँचे काले पहाड़
दिखाई दे रहे थे।
कालका जी शिमला
जाने के लिए हमने टेªन बदली। हमारे
सामान को साथ वाले डिब्बे में रख दिया गया। उस पर नम्बर और हमारे नामों की एक
पर्ची लगा दी गई। कुछ समय बाद ही हमें नीचे की तरफ मैदान दिखाई देने लगे।
धीरे-धीरे सालन हैसे छोटे-छोटे कई स्टेशन आते रहे। अचानक से गड़गड़़ाहट हुई और ट्रेन
की सभी लाइटें जल गई। बाद में पता चला कि वहां एक सुरंग थी। इसी तरह से कई और
सुरंगे भी आईं। कुछ समय बाद ही शिमला स्टेशन आ गया। यहाँ एक तरफ तो स्टेशन था और
दुसरी ओर खाइयाँ, पेड़ तथा पहाड़ियाँ
थी जो कि बर्फ से ढकी हुई थी।
स्टेशन पर उतरते
ही हमें सर्दी लगने लगी। हमने गर्म कपड़े पहन लिए। इसके बाद हमने कुली को सामान
लदवा दिया और होटल की खोज में निकले। आसपास के सभी होटल भरे हुए थे। बड़ी मुश्किल
से हमें एक कमरा मिला। हमने कुछ समय तक होटल के कमरे में विश्राम किया और भोजन
करने के बाद मालरोड़ पर घूमने के लिये निकल पड़े। वहाँ बहुत चहल-पहल थी। अगले दो
दिनों तक हमने जाखू मन्दिर, करोड़ा देवी का
मन्दिर, शल्पा देवी, संजोली, कुफरा, टूटी कड़ी,
चिड़ियाघर, राजभवन और छोटा शिमला आदि देखे। नव वर्ष की तैयारी में
शिमला दुल्हन को एक दुल्हन की तरह सजाया गया था। हम वहाँ से टैक्सी से वापस लौट
आये। हमारी यह शिमला की यात्रा सदा याद रहेगी।
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