मेरा प्रिय
उपन्यासक – प्रेमचंद
Mera Priya Upanyaskar Premchand
.मेरे प्रिय
उपन्यासकार मुंशी प्रेमचन्द जी है। वह भारत के एक अमर कथाकार भी हैं। इनका जन्म 31 मई 1880 को काशी में हुआ। इनका वास्तविक नाम ‘धनपतराय’ था। इनकी माता नाम आनन्दी देवी था। पिता बाबू अजायब राय
डाकखाने में 20 रू मासिक वेतन
पर मुंशी का काम करते थे।
प्रेमचन्द जी ने 5वर्ष की उम्र में ही अक्षर ज्ञान प्रारंभ कर
दिया था। इन्होंने सबसे पहले उर्दू सीखी और 1898 में काॅलेज में हाईस्कूल की परीक्षा पास की। इसके बाद
प्रयाग में सरकारी नौकरी में आकर सी.टी. और इंटर की परीक्षा पास की और स्कूलों के
सब-डिप्टी इंस्पेक्टर बन गए। लेकिन स्वास्थ्य खराब होने के कारण इन्होंने नौकरी
छोड़ दी और आजीविका के लिए सरकारी स्कूल में पढ़ाने लगे। वहां से गोरखपुर आकर बी.ए.
की परीक्षा पास की। सन 1921 में देश की
स्थिति को देखते हुए नौकरी छोड़ दी। इसके बाद ‘माधुरी’ का संपादन किया।
फिर काशी में आकर प्रेस खोली। और ‘हंस और जागरण’
मासिक पत्र निकाले। लेकिन इनसे लाभ के स्थान पर
हानि हुई। इसके बाद अर्थोपार्जन के लिए मुंबई गए। लेकिन स्वास्थ्य खराब होने के
कारण वापिस लौट आए। 8 अक्टूबर 1936 को इनका निधन हो गया।
मेरे प्रिय
उपन्यासकार प्रेमचंद ने जीवन की सभी निर्मम परिस्थितियों का डटकर सामना किया। इस
बात का प्रमाण इनकी रचनाओं में स्पष्ट रूप से मिलता है। इनका साहित्य ग्रामीण जीवन
से ओत-प्रोत है। इनके साहित्य में अशिक्षा, शोषण, हर्ष, मोह तथा लिप्सा का सजीव चित्रण किया गया है।
इनका दृष्टिकोण सर्वत्र मानवता वादी था।
प्रेमचंद जी अपने
समय के महान कलाकार थे। इन्होंने 200 कहानियां लिखी। जिनमें कर्मभूमि, कायाकल्प, निर्मला, प्रतिज्ञा, वरदान, रंगभूमि, सेवासदन, गबन और गोदान, प्रेम की बेटी रूहानी शादी रूठी रानी और चंद्रहार (नाटक) आदि लिखें। इनके
अलावा निबंध, जीवन-चरित्र और
बाल साहित्य पर भी इनकी मजबूत पकड़ थी। प्रारंभ में प्रेमचंद जी उर्दू के लेखक थे।
लेकिन बाद में हिन्दी में लिखना प्रारंभ किया। इनकी भाषा सरल तथा साधारण बोलचाल की
भाषा है। संस्कृत, अरबी, फारसी और अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी इनकी
रचनाओं में कही-कहीं मिलता है।
प्रेमचंद जी की
शैली बहुत ही आकर्षक तथा मार्मिक है। इन्होंने उपन्यासों और कहानियों में
वर्णनात्मक शैली, निबंधों में
विचारात्मक और सामाजिक कुरूतियों तथा धार्मिक पाखंडों के चित्रों में भावनात्मक
शैली का प्रयोग किया है। प्रेमचंद जी का हिन्दी साहित्य में विशिष्ट स्थान हैं
इनके ‘गबन’ और ‘गोदान’ उपन्यासों पर तो चल-चित्र
भी बन चुके है। ‘निर्मला’ पर बना धारावाहिक दूरदर्शन पर दिखाया जा चुका
है। हिन्दी साहित्य में इनकी कीर्ति सदा अमर रहेगी।
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