मोदी और आर्थिक विकास 
Modi aur Aarthik Vikas

भारतीय अर्थव्यवस्था का आकलन जी.डी.पी. द्वारा किया जाता है। मोदी जी के शासनकाल में जी.डी.पी. की दर में वृद्धि हुई है। अनेक योजनाओं जैसे- जनधन योजना, स्टार्ट अप, स्मार्ट सिटी, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर आदि के जरिये देश के विकास में आम आदमी की भागीदारी बढ़ाने की प्रक्रिया प्रारंभ की गई है। लेकिन इसमें कई बाधाएँ भी हैं। भूमि अधिग्रहण कानून अभी तक पारित नहीं हो पाया है। श्रम कानूनों में परिवर्तन भी अभी तक नही हुए है। पोस्को परियोजना भी अटकी हुई है। यह परियोजना 5000 करोड़ की है। अर्थव्यवस्था की गति में तेजी तो आई है। लेकिन इससे आम लोगों को अभी तक लाभ नही मिल पाया है।

नई सरकार द्वारा विदेशी निवेश को अनेक नये क्षेत्रों में छुट दे दी गई है। यू.पी.ए. ने स्वदेशी और विदेशी बड़ी कंपनियों के भरोसे भारतीय अर्थव्यवस्था को चलाने का प्रयास किया था। लेकिन इससे आम आदमी की नौकरी खतरें में आ गई थी। एक बड़ी टैक्सटाइल कम्पनी में लगे आॅटोमेटिक लूम से सैकड़ों छोटे-छोटे पाॅवरलूम बंद हो गये, और हजारों कामगर बेकार हो गये। अर्थव्यवस्था में विदेशी सीधा निवेश स्वदेशी व्यवस्था को बर्बाद कर देगा और स्थानीय स्तर पर छोटे-छोटे उद्योगों में बनने वाले उत्पाद बेकार हो जाएँगे और बेकार होने वाले लोगों को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।

वैश्विक रेटिंग एजेन्सी फोब्र्स द्वारा कारोबार के लिहाज से वर्ष 2015-16 में 144 देशों की सूची जारी की जिसमें भारत 97वें स्थान पर विराजमान है। इसका कारण देश में कारोबारी और उद्योगों का माहौल न होना है। कारोबार की स्थानीय स्तर पर कठिनाइयां, मौद्रिक स्वतंत्रता का अभाव, इंस्पैक्टर राज और सबसे बढ़कर भ्रष्टाचार इसके लिए जिम्मेदार है। नये उद्योगों को तीन साल तक कई छूट देने का प्रस्ताव स्टार्ट अपयोजना में है। इसके अलावा उन्हें इंस्पैक्टर राज से भी छुटकारा मिलेगा। लेकिन पुराने कारोबारों और उद्योगों के हालात में कोई सुधार नही हो पायेगा। उद्योग संगठन द्वारा ईज आॅफ डूइंग इण्डैक्समें यह आशंका जताई है कि भ्रष्टाचार, जमीन अधिग्रहण में बाधाएँ और कराधान नीति के कारण भारत में उद्योग और कारोबार अपने लक्ष्य को प्राप्त नही कर पा रहे है। देशी निवेशक विदेशों की रुख करने लगे हैं और विदेशी निवेश की गति बहुत धीमी है।

गत कुछ सालों में निर्यात की मात्रा में कोई परिवर्तन नही हुआ है, बल्कि ऊर्जा के क्षेत्र में आयात की मात्रा को बढ़ाना पड़ा है। उद्योग ऋण नही चुका पा रहे है। जिसके कारण बैंको में नाॅन परफाॅर्मिंग एसेट्स की वृद्धि हो रही है। और राष्ट्रीयकृत बैंको के साथ ही बड़े निजी बैंक भी वित्तीय संकट से गुजर रहे है। इसके अलावा देश में आर्थिक सुधार वैश्विक बाजार की अपस्फीति से भी प्रभावित हो रहे हैं।

कुछ लोगों का कहना है कि दिल्ली और बिहार में एन.डी.ए. की असफलता का एक कारण यह है कि आम जनता ऐसा महसूस करती है कि उसे आर्थिक सुधार का कोई लाभ नही मिल पा रहा है। और दैनिक जीवन में इस्तेमाल होने वाली उपभाक्ता वस्तुओं के मूल्य बढ़ते जा रहे है। विश्व स्तर पर पिछले कुछ समय में आर्थिक व्यवस्थाा में शून्य उभार है, लेकिन भारत के युवाओं के लिए अधिक रोजगार उपलब्ध करवाने के लिए भूमि अधिग्रहण, श्रम कानून से जड़ता हटानी होगी ।