वन संरक्षण
Van Sanrakshan
टादिमानव का जन्म और उसकी सभ्यता संस्कृति का विकास वनों में ही हुआ है। वह इन्ही वनो में पला बढ़ा है। उसकी खाद्य, आवास आदि की समस्याओं का हल करने के साथ ही उसकी रक्षा भी ये वन ही करते थे। वेदों, उपनिषदों की रचना वनो में ही हुई है और आरण्यक जैसे ज्ञान-विज्ञान के भण्डार कहे जाने वाले ग्रन्थ भी वनो ही लिखे गये है इसी कारण इन्हें ‘आरण्यक‘ कहा जाता है। यहाँ तक कि महाकवि वाल्मीकि द्वारा रचित महाकाव्य ‘रामायण‘ भी एक तपोवन में ही लिखा गया था।
भारत ही नही , अपितुु विश्व की सभी सभ्यताओं के विकास में वनो का अत्यधिक मूल्य तथा महत्त्व रहा है। इस बात का प्रमाण प्रत्येक भाषा के प्राचीनतम साहित्य में देखा जा सकता है। जिनमें वनलिपों साधनों का वर्णन सजीव तरीके से किया गया है। अतः मानव-सभ्यता संस्कृति की रक्षा,कई तरह की वनस्पतियों और औषधियों की रक्षा के लिए हमें वन संरक्षण की आवश्यकता है। वन पशु-पक्षियों की कई प्रजातियों कर एकमात्र आश्रय स्थल थे और आगे भी रहेंगे। इनमें कई आदिवासी जनजातियाँ भी निवास करती है। इनकी रक्षा और जीविका को केवल वनो को संरक्षित करके ही की जा सकती है।
आज जिस तरह की नयी परिस्थितियाँ बनी हुई हेैं, जिस तेजी से नये-नये उद्योग-धन्धों की स्थापना की जा रही है, नए-नए रसायन,गैसे, अणु,उदजन आदि बम्बों का निर्माण तथा परिक्षण जारी है, अस्त्र-शस्त्र बनाये जा रहे है,इन सब से निकलने वाले धुएँ तथा कचरे से मानव ही नही अवितु सभी जीव-जन्तुओं का पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है। केवल वन ही जो इस मारक प्रभाव से प्राणी जगत् को बचा सकता है। उनके होने से ही समय पर सही मात्रा में वर्षा होकर धरती पर हरियाली बनी रह सकती है। और सिंचाई की समस्या का हल भी वन संरक्षण से ही हो सकता है। वर्तमान समय की तरह यदि अब भी हम निरन्तर काटते रहे तो धीरे-धीरे सभी समस्त प्राणियों का अंत सुनिश्चित है।
इन सभी बातों को ध्यान में रखकर ही आज वैज्ञानिक, सभी समझदार लोग तथा पर्यावरण विशषज्ञ वन संरक्षण पर जोर दे रहे है। सरकार ने वन्य जीवों की रक्षा के लिए कुछ अभ्यारण्य बनाये है तथा उन्हें संरक्षित किया है जहाँ शिकार करना तथा और पेड़ो की कटाई पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है। आज पर्यावरण हमारी गलतियों के कारण प्रदूषित होता जा रहा हैं अतः वन संरक्षण को बढ़ावा देना हमारा भी नैतिक कत्र्तव्य है। ऐसा करके ही हम न प्राणीमात्र का भविष्य सुरक्षित कर सकते है।
वन संरक्षण जैसा कार्य केवल वर्ष में एक वृक्षारोपण जैसे सप्ताह मनाने से संभव नही है। इसके लिए हमें आवश्यक योजनाएँ बनाकर कार्य करने की आवश्यकता है। जिस प्रकार से हम अपने बच्चों का पालन-पोषण करते है उसी प्रकार हमें वनांे का संरक्षण करना होगा। तभी धरती और उसका पर्यावरण एवं उसकी हरियाली को बनायें रखा जा सकता है।
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