सज्जनता मनुष्य
का आभूषण
Sajjanta Manushya ka Aabhushan
जिस प्रकार से
गहने शरीर की बाहरी सुन्दरता को बढ़ाते है उसी प्रकार से मानव की आन्तरिक सुन्दरता
के लिए उसके पास सज्जनता का जन्मजात गहना होता है। जिसके सहारे वह किसी भी तरह के
झूठ का सहारा लिए बिना अपने-आप को पा सकता है। मनुष्य इसे बढ़ाकर, नित नये तरीके से उसका प्रयोग करके उसका असीमित
विस्तार कर सकता है। और इसकी वजह से सबका प्रिय बन सकता है। लेकिन अपने इस अनमोल
आभूषण को वह पहचान ही नही पाता है। और यदि पहचान भी लेता है तो अपने छोटे से
स्वार्थं के लिए उसे उठाकर फेंकने से पूर्व एक बार भी नही सोचता है। और फिर वह
कहीं का नही रह जाता है। जन्म से ही मुफ्त मिलने वाले इस आभूषण का नाम सभी लोग
जानते है। ‘सज्जनता यानि सत् जन
होना।‘ अर्थात् जो सच्चा और
श्रेष्ठ जन है , वही सज्जन है।
मानवता को ही सबसे बढ़कर मानने वाला व्यक्ति ही सज्जन होता है। कोई भी व्यक्ति
सज्जन तभी कहलाता है जब उसके पास सज्जनता हो। जिस प्रकार से गहने और अच्छे कपड़े
पहनने से आदमी के शरीर की सुन्दरता बढ़ जाती है, ठीक उसी प्रकार अच्छे गुणों और व्यवहार से आदमी में मानवता
की भावना में निखार आ जाता है। और इससे उसे जो लोकप्रियता, मान यश प्राप्त होता है वास्तव में वही सज्जनता रूपी गहने
से बढ़ने वाली शोभा है। रहीम दास जी ने कहा है -
जो रहीम उत्तम
प्रकृति का, का करि सकत
कुसंग।
चन्दन विष व्यापत
नाहिं, लिपटे रहत भुजंग।
अर्थात् अच्छे
लोगो का कुसंगति वाले लोग उसी प्रकार कुछ नही बिगाड़ सकते, जिस प्रकार से चन्दन के पेड़ पर साँप लिपटकर भी उसकी सुगन्ध
और शीतलता को प्रभावित नही कर सकते है। हर स्थिति में अच्छे और मानवीय भाव से
युक्त रहना ही सज्जनता है। सज्जन व्यक्ति हमेशा सागर के समान मोती भरे गहरे हृदय
वाला तथा धरती की तरह अच्छा-बुरा सब कुछ सहन करके भी अच्छा देने वाला,हिमालय के समान शांत, स्थिर और उच्च भावों वाला होता है। वह चन्दन की तरह विष की
जलन को भी शांत करने वाला होता है , जहरीले नाग के समान मानवता को हानि पहुँचाने वाला कभी नही बनता है। प्रत्येक
के काम आना, नम्र होना,निःस्वार्थ होना ही सज्जनता होती है। दूसरों के
घावों पर मरहम बन जाना ही सज्जनता कहलाती है। यदि ऐसी मानवता धरती है तो इसका अर्थ
है कि सज्जनता जीवित है और हमेशा जीवित रहकर मनुष्यता को विभूषित करती रहेगी।
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