आत्म सम्मान
Atma Samman
प्राचीनकाल में
भारतीय लोगों में आत्म-सम्मान की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। लेकिन कुछ काल तक
पराधीन रहने के कारण यह भावना प्रायः लुप्त सी हो गयी थी। आज हम आजाद है और इस
भावना को और अधिक मजबूत बनाना चाहिए। यही मानवता की सीढ़ी है। इसके ना होने पर हम
पशुओं की तरह ही रह जाते है।
आत्म-सम्मान की
रक्षा के लिए आत्म-विश्वास को आगे रखना होगा। इसी से आत्म-सम्मान का महल खड़ा होता
है। अपने मन की आकांक्षाओं पर जब तक हमें पूरा विश्वास नही होगा तब तक हम उनको
पूरा नही कर पाएंगे। और इसी कमी की पूर्ति आत्म-विश्वास से हो जाती है। इसके लिए
वह अंहकार और स्वाथ के लिए झूठ बोलते हैं,चोरी करते हैं और धोखा देते है। इतना ही नही समय आने पर वह अपने आत्म-सम्मान
को कौड़ियों के मोल में ही दे डालते है। ऐसे लोगो का आत्म-सम्मान से दूर-दूर तक कोई
नाता नही होता है। अतः ऐसे लोगो को ऐसे जीवन से दूर रहकर अपनी आत्मा को निष्कंलक
और पवित्र बनायें। तभी उन्हें समाज में आदर मिल सकता है।
आत्म-सम्मान एक
ऐसी निर्मन धारा होती है जोकि हमारी बुरी भावनाओं को धो देती है। राष्ट्र को हम पर
गर्व होगा। हमारी आत्मा सुख और शान्ति से पूर्ण होगी। हमारे साथी हम पर विश्वास कर
सकेंगे। समाज में सम्मान प्राप्त होगा। इसी के बल पर हम अपनी संस्कृति और सभ्यता
की रक्षा कर सकते है। इसी के कारण हमें सफलता मिलती है। अतः प्रत्येक व्यक्ति को
अपने आत्म-सम्मान की रक्षा अवश्य करनी चाहिए।
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