बढ़ती हुई
जनसंख्या की समस्या
Badhti Hui Jansankhya ki Samasya
हमारे देश ने
आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक और औधोगिक आदि सभी क्षेत्रों में
प्रगति की है।इस यांत्रिक युग में अच्छा स्वास्थ्य नई-नई औषधियों की देन है।
परिणामस्वरूप मानव में प्रजनन प्रक्रिया में वृद्धि देखी गयी है। मानव जीवन की
समस्त खुशी उसके परिवार में ही निहित होती है। लेकिन यदि यह परिवार अधिक बड़ा हो
जाए तो यह सुख के स्थान पर दुःख का कारण बन जाता है। विगत कुछ वर्षों में हमारे
देश की आबादी में बहुत ज्यादा वृद्धि देखी जा रही है और इसमें कोई कमी भी नही आ
रही है। भारत में हर वर्ष जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या आस्ट्रेलिया महाद्वीप
की कुल जनसंख्या से 6 गुना अधिक होती
है। प्रति सहस्र जनसंख्या में वृद्धि दर बढ़ती जा रही है।
विश्व में
जनसंख्या की दृष्टि से भारत का चीन के बाद दूसरे नम्बर पर है। लगातार बढ़ती
जनसंख्या के लिए भोजन, आवास, वस्त्र, शिक्षा, रोजगार आदि की
व्यवस्था कर पाना हमारी सरकार के लिए मुश्किल होता जा रहा है। जनसंख्या वृद्धि से
देश में बेकारी की समस्या के साथ-साथ भुखमरी की समस्या भी बढ़ती जा रही है। इसीलिए
हमारे देश के अधिकांश लोग निर्धनता के कारण दम तोड़ते जा रहे है।
निर्धनता,
अंधविश्वास, अशिक्षाख् धार्मिक विश्वास और स्वास्थ्य के प्रति अवैधानिक
दृष्टिकोण ही हमारे देश की जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख कारण हैं। इनके कारण ही
भारतीय लोग संतानोत्पत्ति को ईश्वर का वरदान मानते और कृत्रिम उपायों से गर्भ
निराध उनकी दृष्टि में एक पाप है।
लेकिन वास्तव में
तो यह केवल एक सामाजिक समस्या है, जिसका धर्म से
कोई संबंध नही है। इस संसार का कोई सा भी धर्म सोचे-समझे पारिवारिक व्यवस्था चलाने
के लिए नही कहता है। हर धर्म का मूल अंत केवल जनकल्याण ही है। और यह तभी संभव हो
सकता है। जब मनुष्य अपनी सामथ्र्य के अनुसार ही अपने परिवार को बढ़ाये। ऐसे ही
बच्चों का सही तरीके से लालन-पालन हो सकता है। उन्हें अच्छी शिक्षा दी जा सकेगी।
और वे देश के अच्छे नागरिक बन पाएँगे।
यदि हम अपने
परिवार, समाज और देश को सुखी,समृद्ध और उन्नत बनाना है तो हमें परिवार
कल्याण योजनाओं को घर-घर पहुँचाना ही होगा। इसी में हम सबका कल्याण निहित है।
0 Comments