पर्वतीय प्रदेश की यात्रा का वर्णन 

Hill Station ki Yatra ka Varnan


छुटियों में हमने पर्वतीय प्रदेश की यात्रा का कार्यक्रम बनाया। प्रतिदिन की व्यस्तता से मन और मस्तिष्क बहुत बोझिल हो गए थे। स्फूर्ति व उमंग के संचार के लिए प्राकृतिक रमणीयता से बेहतर उपचार नहीं हो सकता. यह सोचकर सबने इस बार नैनीताल की यात्रा करने का निर्णय लिया। कार्यक्रम तय होने के बाद से ही मन में अदभुत उल्लास पैदा हो गया था।


निश्चित तिथि पर हम दिल्ली से शताब्दी एक्सप्रेस द्वारा काठगोदाम पहुंच गए। यह स्थान समतल प्रदेश है, पर यहाँ से पर्वतों की अदभुत छटा देखी जा सकती है। यहाँ से नैनीताल जाने के लिए टैक्सियाँ चलती हैं। रेलवे स्टेशन से बाहर आते ही इन टैक्सी चालकों की भीड़ ने हमें घेर लिया। टैक्सी में सामान रख हम आगे बढ़े। यहाँ के इन वाहनचालकों की क्षिप्रता व कुशलता देखते ही बनती है।


सामने ऊँची-ऊँची पहाड़ियाँ दिखाई दे रही थीं। पहाड़ियों पर गोलगोल घूमती काली सड़क साँप-सी दिखाई पड़ती थी। पहाड़ी पर ऊपर-नीचे होते हुए टैक्सी आगे बढ़ रही थी। ज्यों-ज्यों हम आगे बढ़ रहे थे. त्यों-त्यों हवा में ठंडक आ रही थी। कोई पहाड़ी हरी-भरी लगती थी तो कोई वृक्ष-विहीन आकाश को ताकती लगती थी। पहाड़ों से दृष्टि हटी तो दिल काँप उठा। बगल में गहरी खाई देखकर मेरी छोटी बहन ने आँखें बंद कर लीं। इन खाइयों में ऊंचे-ऊँचे देवदार, चीड आदि वक्ष उगे थे। तभी चीं-चीं करती हुई टैक्सी रुक गई। सामने बंदरों का काफ़िला पहाड़ से उतरकर खाई की तरफ जा रहा था। बड़ी शांति से उन सबने सड़क पार की। पर्यटकों का आना-जाना उनके लिए काफ़ी जाना-पहचाना था। हम आगे बढ़े।


लगभग एक घंटे की यात्रा के बाद हम नैनीताल पहुँच गए। सामान लेकर होटल में पहुंचे। ठंडी हवा, आसमान में छाए बादल तथा नैनीताल का सुंदर नजारा - हम सब बहुत प्रसन्न थे। होटल के ठीक सामने ताल दिखाई दे रहा था। इस ताल के एक किनारे पर नैना देवी का मंदिर है। यहाँ के लोगों की मान्यता है कि दक्ष यज्ञ में जब अपमान होने पर सती ने हवन कुंड में प्राण त्याग दिए थे और भगवान शिव उन्हें उठाकर हिमालय पर्वत ले जा रहे थे तब मार्ग में इस स्थान पर उनकी आँखें गिर गई थीं। इसलिए यहाँ पर नैना देवी का मंदिर बनाया गया। इसी के नाम पर ताल का और शहर का नाम रखा गया।


नैनीताल का यह प्रमुख ताल चारों तरफ से हरी-भरी पहाड़ियों से घिरा है। इन पहाड़ियों पर हरे-हरे वृक्ष गर्व से मस्तक ऊँचा उठाए शहर व ताल की सुंदरता में चार चांद लगाते हैं। चारों तरफ़ की हरियाली के मध्य ताल का जल भी हरा लगता है। लगभग डेढ किलोमीटर लंबा व आधा किलोमीटर चौडा यह ताल वर्षभर जल से लबालब भरा रहता है। इस ताल में अनेक नौकाएँ नौकायन के लिए चलती हैं। हमने स्वयं चलानेवाली नौका ली और ताल में विचरण करने लगे। ताल का जल बर्फ-सा शीतल था। इसमें छोटी-छोटी मछलियाँ भी तैर रही थीं। हमने कैमरा निकाला और प्रकृति की इस छटा को कैमरे में बंद कर लिया। घंटाभर नौकायन का आनंद लेने के पश्चात हम ताल से बाहर आए। ताल के एक किनारे पर माल रोड है। यहाँ पर स्थानीय कला और शिल्प की विभिन्न वस्तुओं की दुकानें हैं। लकड़ी पर कटाई, नक्काशी व चित्रकारी की सुंदर कलाकृतियाँ, मोम की विभिन्न मूर्तियाँ खरीदने वालों की भीड़ देखते ही बनती है। खाते-पीते और यहाँ के सुंदर नजारों का आनंद लेते-लेते ही शाम कब हो गई, इसका आभास ही न हुआ।


धीरे-धीरे अँधेरा और ठंड दोनों बढ़ने लगे। ताल के चारों तरफ की पहाड़ियाँ रात्रि के अंधेरे में विलुप्त हो गई। पहाड़ियों पर बने घरों की रोशनी, आसमान में चमकता चाँद तथा हवा के झोंकों से ताल का लहराता जल अत्यंत मोहक लग रहा था।


अगले दिन हम सात ताल देखने निकले। यहाँ ऊँची पहाड़ियों से घिरा गरुड़ के आकार का एक ताल है। जिसके चारों तरफ़ लीची व खुमानी के वृक्ष हैं। जगह-जगह देवदार के वृक्षों के फूल गिरे हुए थे। हम सबने इन सूखे फूलों को बटोरा। सूखे फूल लकड़ी के अद्भुत नमूने से जान पड़ते थे। यहाँ की लोकमान्यता के आधार पर प्रति अमावस्या की रात्रि को परियाँ देवलोक से ताल में स्नान करने आती हैं। हम सब यह जानकर विस्मित रह गए।


इससे कुछ दूर पर भीमताल है। इस ताल के एक किनारे में कमल के फूल लगे हैं। लगभग पाँच सौ मीटर की दूरी तक ताल का ऊपरी भाग कमल की लताओं से घिरा है। इन लताओं से झाँकते गुलाबी कमल अत्यंत मोहक प्रतीत हो रहे थे। भीमताल का जल अत्यंत स्वच्छ था। आकाश की। छाया से जल नीला जान पड़ता था। इसमें छोटी-छोटी अनेक मछलियाँ। थीं। पानी साफ़ होने के कारण किनारों की चट्टानें और उनमें पड़े पत्थर साफ़ दिखाई पड़ रहे थे।


ताल के चारों तरफ़, पहाड़ियों पर तरह-तरह के फूलों वाली झाड़ियाँ। थीं। लाल-पीले-जामुनी रंग के फूल मानो पर्यटकों को देखकर मुसकरा रहे थे। दूर-दूर तक वृक्षों का आँचल ओढ़े पहाड़ों के शिखर झाँक रहे थे। यहाँ से लौटते वक्त हम हनुमान गढ़ी गए।


हनुमान गढ़ी एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ की गहरी खाइयाँ दिल दहला देती थीं। हनुमान तथा राम मंदिर में दर्शन कर सब प्रकति के सुंदर दृश्यों को देख रहे थे। इन ऊँची पहाड़ियों पर से सर्यास्त अनुपम लग रहा था। दूर पहाड़ियों के पीछे ढलता सूरज मानो पीछे छिपता जा रहा था। सारा आसमान लाल हो गया था। यह दृश्य अत्यंत मोहक था। यहाँ हवा अत्यंत तीव्र चल रही थी। शाम ढलते ही हम होटल लौट पड़े।


नैनीताल की हरियाली और अनुपम छटा मन व मस्तिष्क को अनोखी शांति प्रदान कर रही थी। प्रतिदिन नैनीताल में नौकायन का आनंद लेते हुए। सप्ताह बीत गया। पहाड़ियों पर चढ़ना भी अदभुत आनंद प्रदान करता था। समतल पर निरंतर रहने के बाद का यह अनभव काफी दिनों तक मन को आह्लादित करता रहा। सीढ़ीनुमा खेत, बलखाती सड़कें, दर चमकती बर्फीली पर्वत श्रृंखलाएँ, हरी-भरी झाड़ियाँ, लहराते ताल, नृत्यरत चीड़ व देवदार के वृक्ष, रंग-बिरंगे पक्षी, शीतल बयार के रूप में प्रकति नटी के सुंदर दर्शन मन को अब भी बार-बार उस शस्य श्यामल पर्वतांचल की ओर आकर्षित करते हैं।