सैनिक शिक्षा 
Sainki Shiksha

शिक्षा का मनुष्य जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। शिक्षा ही बालक के मानसिक, बौद्धिक और शारीरिक विकास का उत्तम माध्यम है। नई शिक्षा नीति का निर्माण समाज की विसंगतियों को दूर करने तथा देश को इक्कीसवीं शताब्दी में अन्य देशों की तुलना में खड़ा करने हेतु किया गया। था। इस उद्देश्य की उपलब्धि के लिए यह आवश्यक समझा गया कि छात्रों को सैनिक शिक्षा देना अनिवार्य किया जाए।

अनिवार्य सैनिक शिक्षा से समाज व राष्ट्र दोनों को लाभ होता है। सैनिक शिक्षा व्यक्ति को उत्कृष्ट नागरिक बनाने में सक्षम होती है। छात्र जीवन में जो अच्छे संस्कार विद्यार्थी में डाले जाते हैं, वही संस्कार उनके जीवन का अभिन्न अंग बन जाते हैं, यह एक सत्य है। उत्कृष्ट विदयार्थी ही एक अच्छा नागरिक सिद्ध हो पाता है।

सैनिक शिक्षा के माध्यम से बालक आत्मरक्षा करने में सक्षम हो पात। हैं। धीरे-धीरे समाज की रक्षा का दायित्व भी उनको सौंपा जा सकता है। संसार के अनेक ऐसे देश हैं, जहाँ समय-समय पर सैनिक शिक्षा का अनिवार्य बनाया गया था। जर्मनी, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस आदि देश इसके उदाहरण हैं। सैनिक शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी समय के साथ-साथ अनेक गुणों से यक्त हो जाते हैं। एक उत्कृष्ट, संयमित व अनुशासित ढंग से काम करते हए वे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं।

विद्यार्थियों के लिए सैनिक शिक्षा उनमें अनेक क्षमताओं को उत्पन्न करने में सहायक होती है। अपने पाठ्यक्रम और खेलकूद से समय निकालकर जब विद्यार्थी सैनिक प्रशिक्षण पाता है तो वह स्वभावतः परिश्रमी व न्यायप्रिय हो जाता है। विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों में। आत्मरक्षा करते हुए अपने बल-बुद्धि तथा अस्त्र-शस्त्र संचालन की निपुणता उसकी बुद्धि व प्रतिभा में निखार लाती है। बीता समय फिर हाथ नहीं आता, सोचकर वह अपने जीवन के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करता

सैनिक शिक्षा से आत्मबल में वृद्धि होती है। स्कूल व महाविद्यालयों में सैनिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद नवयुवक व नवयुवतियाँ संकट के समय देश के काम आते हैं। बाढ़, सूखा तथा महामारी के संकट में वे अपने बुद्धि कौशल व परिश्रम से देश सेवा में जुट जाते हैं। ऐसी शिक्षा प्राप्त विद्यार्थी संकट के समय में समय नहीं गंवाते। वे सोच-विचार कर तत्काल परिस्थितियों का अनुमान लगा लेते हैं। यही कुशलता उन्हें जीवन में विभिन्न सफलताओं का पात्र बनाती है।

सैनिक शिक्षा से बालकों का सर्वांगीण विकास संभव हो पाता है। बालकों में आत्मनिर्भरता तथा स्वावलंबन की भावना जागृत होती है। सैनिक शिक्षा के दौरान छात्रों के समय-समय पर कैंप लगाए जाते हैं। वहाँ उन्हें अभ्यास कराया जाता है कि वे अपने कार्यों के लिए दूसरों पर निर्भर । न रहे। स्वावलंबन की भावना न केवल व्यक्ति अपितु राष्ट्र की उन्नति का आधार बनती है। व्यक्ति अपने कार्य स्वयं कर आनंद पाता है। कर्मरत रहकर राष्ट्र की सेवा करते रहना जब धर्म बन जाता है, तो ऐसे नागरिकों सयुक्त राष्ट्र शीघ्र ही उन्नति करता है। किसी भी देश के विकास के लिए स्वावलंबी नागरिकों की आवश्यकता होती है।

सैनिक शिक्षा केवल व्यायाम, अस्त्र-शस्त्र संचालन, कि गुण व अनुशासन का ही पर्याय नहीं है। शारीरिक बल, नैतिक, चारित्रिक उत्कृष्टता के साथ-साथ आमोद-प्रमोद को भी इस शिक्षा अनिवार्य अंग कहा जा सकता है। कठिन परिश्रम के पश्चात खेल नृत्य-संगीत भी इसके आवश्यक अंग हैं। कोई भी व्यक्ति जब उत्साहपूर्वक काम नहीं करता तब तक न तो काम ही उत्कृष्ट कोटि हो पाता है, न ही उस व्यक्ति को काम में आनंद आता है। मानसिक स्वास्थ्य व प्रसन्नता के लिए मनोरंजन के महत्त्व को सैनिक शिक्षा समझा गया है। छात्रों को जल और थल के विभिन्न रोचक खेलों - प्रशिक्षण विशेष शिविरों में दिया जाता है। दिनभर के कठिन परिश्रम के बाद जब विदयार्थी अगले दिन उठता है तो वह तन-मन में विशेष स्फूर्ति व उल्लास का अनुभव करता है।

सैनिक शिक्षा के माध्यम से छात्र मिल-जुलकर प्रेमपूर्वक रहना भी। सीखता है। यह भावना समाज को स्वस्थ बनाती है। आपसी भाईचारे प्रेम की प्रवृत्ति व्यक्ति तथा समाज दोनों के लिए अनिवार्य है। स्वस्थ तन और मन से युक्त प्राणी ही अपने आसपास के वातावरण को आनंदमय व प्रगतिशील बना सकता है। देखा जाए तो सैनिक शिक्षा के अभाव में शिक्षा अधुरी है। सैनिक शिक्षा छात्रों में संयम, मनोबल, अनुशासन समयपालन आदि सद्गुणों का विकास करती है। उन्हें कर्मठ, सत्यप्रिय, न्यायप्रिय नागरिक बनाने की दिशा में यह एक सुदृढ व उत्कृष्ट कदम है।

समाज में आपराधिक प्रवृत्तियों को समाप्त करने हेतु भी सैनिक शिक्षा अच्छा माध्यम है। सैनिक शिक्षा से देश में उत्तरोत्तर अनशासित नागरिको की वृद्धि होगी तथा उपद्रवकारी असामाजिक तत्व स्वतः कम होते जाएंगे। जिससे राष्ट्र उन्नति के पथ पर अग्रसर होगा। किसी भी राष्ट्र को संकट काल से निबटने के लिए भरपूर मात्रा में सैनिक मिल जाते हैं।

अंततः कहा जा सकता है कि किसी भी प्रगतिशील राष्ट्र की उन्नति का यह अचूक मंत्र है जो नागरिकों को शारीरिक, मानसिक व चारित्रिक दृष्टि से प्रशिक्षित करता है। विद्यालय स्तर के छात्र-छात्राओं को अनिवार्य सैनिक शिक्षा के माध्यम से अनेक प्रकार के चारित्रिक व नैतिक गुण प्रदान किए जा सकते हैं। भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने भी कहा था कि-आज आवश्यकता इस बात की है कि विद्यालयों तथा विश्वविदयालयों में शिक्षा के साथ सैनिक शिक्षा अनिवार्य कर दी जाए। हमें अपने देश के भावी राष्ट्र के निर्माताओं की बौद्धिक उन्नति के साथ-साथ शारीरिक उन्नति पर अत्यधिक ध्यान देना चाहिए।